बाढ़ ने फिर बाँध तोड़े
लुट गया घरबार फिर से
जो संभाले थे बरस भर
टिक न पाए एक भी क्षण
देखते ही देखते सब
ढह गया कुछ बचा ना अब
त्रासदी हर साल की है
क्या कहानी हाल की है?
क्यों नहीं हम जागते हैं?
व्यर्थ ही बस भागते हैं।
क्यों नहीं निस्तार करते
नदियों का विस्तार करते?
पथ कोई हो जिसमें चल के
प्राणदा खुद को संभाले।
हम बनाते घर सभी हैं
सोचते क्या पर कभी हैं?
नदी में…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on September 4, 2017 at 3:46pm — 3 Comments
डिग्री धारी एक कवि ने पूछा इक बेडिग्रे से
कैसे लिखते हो कविताएँ दिखते तो बेफिक्रे से।
अलंकार रस छंद वर्तनी कैसे मैनेज करते हो
करते हो कुछ काट - चिपक या फिर अपना ही धरते हो।
पिंगल और पाणिनि को पढ़ मैं तो सोचा करता हूँ,
मात्रिक वार्णिक वर्णवृत्त मुक्तक में लोचा करता हूँ।
यति गति तुक मात्रा गण आदि सभी अंगों को ढो लाते
जरा बताओ ज्ञान कहाँ से इतने सब कुछ का पाते?
-- तब बेचारे हकबकाए क्वैक कवि ने उत्तर दिया --
भाई मैंने आज ही जाना इतने…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 22, 2017 at 8:25pm — 4 Comments
कौन जाने क्या हुआ है धरा क्यों है भीत।
हो रहा संक्रमित कैसे मौसमों का रीत।
गुम हुए हैं घरों के खग
छिपकली हैं शेष,
क्या पता कौए गए हैं
दूर कितने देश।
कब उगेंगे वृक्ष नूतन होगी कल - कल नाद
कैसे होगी पत्थरों पर हरीतिमा की शीत।
धूप की गर्मी बढ़ी है
सूखती है दूब,
आस का पंछी तड़पता
धैर्य जाता डूब।
क्षीण होती जा रही है अब दिनोदिन छाँव
कब सुनाई देगी वो ही मौसमी संगीत।
आ धमकती सुबह से ही
गर्म किरणें…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 21, 2017 at 9:54pm — 7 Comments
ये क्या है जो मुझे चलाती?
कभी मंद कभी तेज भगाती।
क्या पाया क्या पाना चाहा,
हरदम मुझको याद दिलाती।
विधना ने क्रंदन दुःख लिखा,
यह प्रेरित करती हर्षाती।
कभी शिथिल होकर बैठा जो,
उत्प्रेरित कर मुझे जगाती।
जलते जीवन में भी हँसकर,
बढ़ते जाना मुझे सिखाती…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 17, 2017 at 10:00pm — 6 Comments
बस यूँ ही दशरथ माँझी...
माझी नहीं बस नाव को जो खींच ले मँझधार से
‘माँझी’ तो है जो रास्ता ले चीर नग के पार से।
प्रेम था वो दिव्यतम जिसमें भरी थी जीवनी
वो फगुनिया थी मरी पर दे गई संजीवनी।
एक कोशिश ला मिलाती गंग को मैदान से
एक कोशिश रास्ता लेती विकट चट्टान से।
ले हथौड़ी और छेनी पिल पड़ा वो वीर था
हो गया भूशाई जो दुर्दम्य पर्वत पीर था।
ताज और विक्टोरिया से है हमारा वास्ता,
पर नमन के योग्य है गहलौर का वो रास्ता!!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 15, 2017 at 10:28pm — 5 Comments
एक बाँसुरी, एक ही धुन से, स्नेह सुधा बरसाते हैं,
सूरदास, मीरा – रसखान, रहीम को एक बनाते हैं।
ले लकुटी संग ग्वाल बाल के, नंद की गाय चराते हैं,
त्रस्त प्रजा को क्रूर कंस से, राजा मुक्त कराते हैं।
हैं प्रेरक श्रीकृष्ण नीति, गीता और प्रेम सिखाते हैं,
सुधि जन निर्मल मन से सादर, सहज प्रेरणा पाते हैं।
.
किशोर करीब (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 14, 2017 at 7:00pm — 3 Comments
दिन की गर्मी के बाद रात आती है शीतल,
जैसे आता हरित देश बीते जब मरुथल।
समय चक्र ही दुःख की घड़ी बिता सुख लाता,
मृत्यु न होती तो क्या प्राणी जीवन पाता?
सूर्य ज्वलित ना होता तो क्या वसुधा होती?
चन्द्रकिरण से क्या अमृत की वर्षा होती?
लक्ष्य कठिन, दुर्गम्य राह, निश्चय से बनता है सरल।
सूखी रेत, कठोर प्रस्तरों के नीचे ही होता है जल।।
- किशोर करीब (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 11, 2017 at 5:37pm — 4 Comments
एक कोयल कूकती है पास की अमराई में,
आजकल मैंने सुना है रात की गहराई में।
हो रहा था मेघ गर्जन साथ ही वृष्टि घनी,
क्या बुलाती है किसी को या हुई वो बावली?
फिर ये सोचा हो न मुश्किल की कहीं कोई घड़ी,
भीग शीतल नीर थर – थर काँपती हो वो पड़ी।
कुहू – कुहू सुनते हुए मैं मन ही मन गुनता रहा..
पक्षियाँ तो शाम ढलते नीड़ में खो जाती हैं,
घिरते तिमिर के साथ ही वो नींदमय हो जाती हैं।
तभी कौंधा मन, अरे ! ये धृष्टता दिखलाती है,
दुष्ट पंछी मधुर…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 9, 2017 at 8:32pm — 3 Comments
गहराई में ही जीवित रहता शीतल जल
सश्रम ही पाता तृषित मनुज वह नीर विमल ... ||
गंभीर ज्ञान ज्ञानी का बसता अंतः तल
आता समक्ष जब स्वागत में हों ध्वनि करतल ... ||
ज्ञान अधूरा हो या छिछला - उथला जल
दिखता सुदूर पर प्राप्य सहज, करता मन चंचल ... ||
.
- करीब (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 8, 2017 at 3:00pm — 4 Comments
आज राखी बँध रहे थे, खूब राखी बँध रहे थे,
भाई भी सब सज रहे थे, पहन कुरते जँच रहे थे!
हीरे – मोती सोने – चाँदी, से सजे रेशम के धागे,…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 7, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
यूँ तो सावन जाने को है, फिर भी ...
आया सावन मास सखी री
हरी हो गई घास सखी री
हरी चूड़ियाँ बिंदी साड़ी
हाथों में मेहँदी रंग गाढ़ी
झूले हो गए खास सखी री
गहराई है आस सखी री
श्वेत श्याम बादल उड़ आते
प्रियतम का संदेशा लाते
भरें कुलाँचे साँस सखी री
आया सावन मास सखी री
रंग गेरुआ घर घर डोले
जिसको देखो बम बम भोले
मन में है उल्लास सखी री
सुंदर वर की आस सखी री
ज्यों ज्यों सावन बीता जाए
मन उछाह से भर भर जाए
रक्षा…
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 4, 2017 at 12:00pm — 4 Comments
मैंने देखी आज रंगोली..
टी० वी० पर दूरदर्शन वाली
पहले भी देखा है कई बार
इसके अनेकों रूप कई प्रकार
कभी स्कूल के प्रांगण में सजी
कभी घर की देहली पर,
कभी दिवाली में तो कभी ब्याह–शादी में
रंग-बिरंगी, अनोखी-अलबेली
जब बनती तो अनोखा उत्साह होता
पहले धीरे-धीरे आकार लेती
उत्सुकता का कारण बनती
फिर अलग-अलग रंगों से
सजती-सँवरती, बनती-बिगड़ती
जब बन कर तैयार हो जाती
बच्चे खुश हो तालियाँ बजाते
युवा सेल्फी…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 3, 2017 at 7:28am — 2 Comments
आज कुछ यूँ हुआ कि ...
घोंसला टूटा गिरा था पेड़ के नीचे
एक नन्ही जान बैठी आँखें थी मींचे
उसकी माँ मुँह में दबाए थी कोई चारा
ढूँढती फिरती थीं नजरें आँख का तारा
हाथ मैंने जब बढाया मदद की खातिर
उसने समझा ये शिकारी है कोई शातिर
माँ हो चाहे जिसकी भी वो एक सी बनी
आज नन्हे पंछी की इंसान से ठनी
उसी टूटे नीड़ को रखा उठा फिर पेड़ पर
पंछी बनाते घोंसले इंसान तो बस घर..
सुबह आकर देखा तो हालात कल से थे
बारिश हुई थी और तिनके…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 2, 2017 at 7:30pm — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |