For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज कुछ यूँ हुआ कि ...

घोंसला टूटा गिरा था पेड़ के नीचे

एक नन्ही जान बैठी आँखें थी मींचे

उसकी माँ मुँह में दबाए थी कोई चारा

ढूँढती फिरती थीं नजरें आँख का तारा

हाथ मैंने जब बढाया मदद की खातिर

उसने समझा ये शिकारी है कोई शातिर

माँ हो चाहे जिसकी भी वो एक सी बनी

आज नन्हे पंछी की इंसान से ठनी

उसी टूटे नीड़ को रखा उठा फिर पेड़ पर

पंछी बनाते घोंसले इंसान तो बस घर..

सुबह आकर देखा तो हालात कल से थे

बारिश हुई थी और तिनके पेड़ के नीचे

ज़ब्त कर जज़्बात देखा डाल से ऊपर

बैठी थी वो माँ–बाप के संग कुछ टहनियों पर

माँ ने समझा आ गया फिर से शिकारी वो

करने लगी बाजीगरी मुझको डराने को..!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 4, 2017 at 12:35pm
हार्दिक आभार
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 4, 2017 at 11:52am
सुन्दर भावों का शानदार समावेश हुआ है..बधाई
Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 3, 2017 at 9:15pm

सर मेरा मतलब भी 'साथ' से ही है। वो नन्हीं चिड़िया पेड़ की टहनियों पर अपने माँ - बाप के संरक्षण में पहुँच चुकी थी और उनके साथ सही सलामत थी।

Comment by Samar kabeer on August 3, 2017 at 6:16pm
'बैठी थी वो माँ-बाप के संग कुछ टहनियों पर'
इस पंक्ति में 'संग'शब्द का अर्थ 'साथ होता है,और 'बैठी थी'शब्द बता रहा है 'माँ',इस पर थोड़ा ग़ौर कीजियेगा ।
Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 3, 2017 at 3:47pm

आदरणीय कबीर साहब, सादर नमन

यह कमेंट मैंने कल रात ही लिखा था किंतु न जाने वो कहाँ गुम हुआ, दिखाई नहीं दिया तो दोबारा लिख रहा हूँ -

प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन हेतु ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ, आशा है भविष्य में भी लाभान्वित होता रहूँगा। प्रस्तुत रचना का अंत वैसा ही है जैसा की वास्तव में हुआ था, मैंने उसमें अलग से कुछ नहीं जोड़ा। ये घटना मेरे विद्यालय में घटित हुई थी जिसमें बुलबुल चिड़िया का बच्चा घोंसला समेत जमीन पर आ गिरा था। "बैठी थी वो माँ बाप के संग कुछ टहनियों पर" इसलिए लिखा क्योंकि वो आम का पेड़ था जिसकी एक पतली टहनी पर बच्चा और आस - पास की दो टहनियों पर माँ बाप बैठे थे।

आपने जिस सुधार (ज़ब्त कर जज़्बात) की सलाह दी थी वो मैंने कर लिया है।

Comment by Samar kabeer on August 2, 2017 at 10:14pm
जनाब श्याम किशोर सिंह जी आदाब,रचना बहुत उम्दा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
रचना का अंत कुछ और बहतर होता तो ठीक लगता,एक दो बातों की तरफ़ ध्यान दिलाना चाहूँगा,'जज्ब कर ज़ज्बात' को "ज़ब्त कर जज़्बात"होना चाहिये,
'बैठी थी वो माँ-बाप के संग कुछ टहनियों पर'
इस पंक्ति में 'कुछ टहनियों पर'का क्या मतलब हुआ ?वो दोनों एक ही टहनी पर बैठेंगे,बहुत सी टहनियों पर कैसे ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service