तेरी याद के अम्बार लिए बैठे हैं,
गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं.
क़त्ल कर.. दफना गया है तू जिसको,
हाथो मे वोही प्यार लिए बैठे हैं.
जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,
हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.
दुश्मन भी शरमा गया.. अब मुझसे,
सीने मैं, इतने वार लिए बैठे हैं.
पत्थर का, मुझे देखके दिल भर आया,
आँखों मैं वोह. गुबार लिए बैठे हैं,
'उफ़' नहीं मेरी कभी दुनिया ने सुनी,
सदा-ए-दिल सर-ए-बाज़ार लिए बैठे हैं.
ताउम्र ग़म हो गया है हमसाया,
'फौत' खुशियों का ये मज़ार लिए बैठे हैं.
इम्काँ नहीं .. तेरे आने का मगर,
दिल-ए-जिद्द मे.. इंतज़ार लिए बैठे हैं,
इजाफा.. तेरी इज्ज़त मे हो गया होगा.
तेरे क़दमो मे ये दस्तार लिए बैठे हैं,
तहरीर मायूस हो गयी है मेरी,
ग़म मे डूबे हम अशआर लिए बैठे हैं,
इमरोज़ तड़पता रहे 'प्यासा पंछी',
लोग पहलु मे छुपा आब लिए बैठे हैं.
चाक है सीना जिगर पे वार करो, '
इमरान' खुद को.. तैयार लिए बैठे हैं...
Comment
इमरान भाई बहुत ही खुबसूरत ख्यालात से भरी ग़ज़ल कही है आपने, सभी शे'र अच्छे लगे, केवल एक शे'र में काफिया निभाने में आपने गलती कर दिया है ..........
इमरोज़ तड़पता रहे 'प्यासा पंछी',
लोग पहलु मे छुपा आब लिए बैठे हैं.
लोग पहलु में आब बेकार लिए बैठे है
कुछ इस तरह किया जा सकता है |
दाद कुबूल कीजिये इस ग़ज़ल पर |
तेरी याद के अम्बार लिए बैठे हैं,
गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं.
जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,
हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.
जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,
हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.
दुश्मन भी शरमा गया.. अब मुझसे,
सीने मैं, इतने वार लिए बैठे हैं.
इम्काँ नहीं .. तेरे आने का मगर,
दिल-ए-जिद्द मे.. इंतज़ार लिए बैठे हैं,
इजाफा.. तेरी इज्ज़त मे हो गया होगा.
तेरे क़दमो मे ये दस्तार लिए बैठे हैं,
bhai waah bade achche ache sher post kiye hai pasand aaye mujhe khoobi hai in shero me
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