For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं....

तेरी याद के अम्बार लिए बैठे हैं,

गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं.

 

क़त्ल कर.. दफना गया है तू जिसको,

हाथो मे वोही प्यार लिए बैठे हैं.

 

जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,

हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.

 

दुश्मन भी शरमा गया.. अब मुझसे,

सीने मैं, इतने वार लिए बैठे हैं.

 

पत्थर का, मुझे देखके दिल भर आया,

आँखों मैं वोह. गुबार लिए बैठे हैं,

 

'उफ़' नहीं मेरी कभी दुनिया ने सुनी,

सदा-ए-दिल सर-ए-बाज़ार लिए बैठे हैं.

 

ताउम्र ग़म हो गया है हमसाया,

'फौत' खुशियों का ये मज़ार लिए बैठे हैं.

 

इम्काँ नहीं .. तेरे आने का मगर,

दिल-ए-जिद्द मे.. इंतज़ार लिए बैठे हैं,

 

इजाफा.. तेरी इज्ज़त मे हो गया होगा.

तेरे क़दमो मे ये दस्तार लिए बैठे हैं,

 

तहरीर मायूस हो गयी है मेरी,

ग़म मे डूबे हम अशआर लिए बैठे हैं,

 

इमरोज़ तड़पता रहे 'प्यासा पंछी',

लोग पहलु मे छुपा आब लिए बैठे हैं.

 

चाक है सीना जिगर पे वार करो, '

इमरान' खुद को.. तैयार लिए बैठे हैं...

Views: 429

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by इमरान खान on June 15, 2011 at 6:05pm
वंदना जी शानदार तो नहीं थी मगर आपकी दाद ने शानदार बना दी..शुक्रिया दिल से..
Comment by इमरान खान on June 13, 2011 at 10:35am
बहुत शुक्रिया गणेश भाई, अपने दाद दी ये ख़ुशी की बात है मगर आपने मेरी इस्लाह की ये बहुत बड़ी ख़ुशी की बात है... बिलकुल सच कहा अपने उस शेर मैं तरमीम की ज़रुरत है....

हिलाल भाई मेरे लिए आप जैसे महफ़िल वाले लोगों को मुझ जैसे खुदी मैं डूबे रहने वाले शख्स के शेर पसंद आये...क्या कहूं अल्फाज़ ही नहीं मेरे पास जो ख़ुशी बयां कर सकें ..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 13, 2011 at 10:03am

इमरान भाई बहुत ही खुबसूरत ख्यालात से भरी ग़ज़ल कही है आपने, सभी शे'र अच्छे लगे, केवल एक शे'र में काफिया निभाने में आपने गलती कर दिया है ..........

इमरोज़ तड़पता रहे 'प्यासा पंछी',

लोग पहलु मे छुपा आब लिए बैठे हैं.

 

लोग पहलु में आब बेकार लिए बैठे है

 

कुछ इस तरह किया जा सकता है |

दाद कुबूल कीजिये इस ग़ज़ल पर |

Comment by Hilal Badayuni on June 13, 2011 at 9:46am

 

तेरी याद के अम्बार लिए बैठे हैं,

गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं.

जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,

हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.

जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,

हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.

दुश्मन भी शरमा गया.. अब मुझसे,

सीने मैं, इतने वार लिए बैठे हैं.

 

इम्काँ नहीं .. तेरे आने का मगर,

दिल-ए-जिद्द मे.. इंतज़ार लिए बैठे हैं,

 

इजाफा.. तेरी इज्ज़त मे हो गया होगा.

तेरे क़दमो मे ये दस्तार लिए बैठे हैं,

 

 

bhai waah bade achche ache sher post kiye hai pasand aaye mujhe khoobi hai in shero me
Comment by इमरान खान on June 12, 2011 at 10:20am
बहुत शुक्रिया गणेश जी क्या यह रचना गजल की श्रेणी में आती है..?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
11 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service