हुकूमत तुम ग़रीबों के सरों पर हाथ रक्खेगी,
दबे कुचले हुए लोगो! तुम्हें अब तक भरोसा है?
सियासत अपने मंसूबों में तुमको साथ रक्खेगी,
मसाइल से घिरे लोगो! तुम्हें अब तक भरोसा है?
तुम्हारी आंख से निकले हुए आंसू को वो देखें?
तुम्हारी सिसकियाँ देखें या फॉरेन टूर को देखें?
तुम्हारी फस्ल ना आने के मातम को मनायेगें,
या जाकर वेस्ट कंट्री से वो एफडीआई लायेंगे?
मिटाना चाहते हैं वो दुकानों को बाज़ारों से,
कोई…
ContinueAdded by इमरान खान on December 3, 2015 at 3:00pm — 13 Comments
आज किस तरह ज़िन्दगी खोई,
पास क्या दूर भी नहीं कोई.
एक तस्वीर दिल पे है चस्पा,
रूह जिसको लिपट-लिपट रोई.
रात भर बेकली रही मुझ पर,
और दुनिया सुकून से सोई.
फूल आंगन में अब न तुम ढूंढो,
फस्ल काँटों भरी अगर बोई.
वक़्त अपना कुछ इस तरह बीता,
हमनशीं हो गई गज़लगोई.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by इमरान खान on August 6, 2015 at 4:30pm — 7 Comments
अपनी जान बचा तो पाया,
डूबा था पर बाहर आया।
जब इल्ज़ामों की बारिश थी,
पास नहीं था मेरे साया।
मुझको गैर बताकर उसने,
हाय गजब ये कैसा ढाया।
तन्हाई में खाली दिल ने,
साज़ उठाया नग़मा गाया।
जबसे सच्चाई जानी है,
हर रिश्ते से दिल घबराया।
प्यार भरा दिल तोड़ा जिसने,
मानो उसने मंदिर ढाया।
कुछ मिसरे ये टूटे फूटे,
हैं मेरा सारा सरमाया।
हम…
Added by इमरान खान on July 26, 2015 at 3:18pm — 8 Comments
हर क़दम पर मात खाकर रह गई,
जिंदगी सर को झुका कर रह गई.
देख लो पहचान मेरी हो जुदा,
एक खुदसर में समाकर रह गई.
होगी मलिका सल्तनत की वो मगर,
मेरी खातिर कसमसा कर रह गई.
रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,
हर दफा बस छटपटा कर रह गई.
सोजे दिल पानी से भी ना बुझ सके,
आंख भी आंसू बहा कर रह गई.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by इमरान खान on December 4, 2014 at 3:58pm — 16 Comments
दुश्मन से मिलकर रहता है,
बस मीठी बातें करता है,
वो शख़्स मुनाफिक़* लगता है।
माने तो दिलजोई करना,
रूठे तो मनमानी करना,
है लाज़िम झगड़ा भी करना।
मन में जो आये कह देना,
दिल में पर मैल नहीं रखना,
ये ही मोमिन# का है गहना।
छल, पाप, कपट, मक्कारी है,
माना हर सू बदकारी है,
पर नेकी सब से भारी…
Added by इमरान खान on August 4, 2014 at 2:04pm — 4 Comments
122 122 122 122
सियासी जमातो! ग़दर कर दिया है,
वतन को लहू की नज़र कर दिया है।
निशाँ भी नहीं है कहीं रोशनी का,
के हर सू अँधेरा अमर कर दिया है।
डरी और सहमी है औलादे आदम,
ज़हन पर कुछ ऐसा असर कर दिया है।
नई नस्ले नफरत को पाने की धुन में,
रगों में रवाना ज़हर कर दिया है।
यहाँ कल तलक थी हज़ारों की बस्ती,
बताओ के उसको किधर कर दिया है।
ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।
गबन…
Added by इमरान खान on April 15, 2014 at 1:30pm — 11 Comments
Added by इमरान खान on April 6, 2014 at 8:30pm — 31 Comments
जो पाँच साल दहाड़े थे गिड़गिड़ाने लगे,
हमें ही वोट दो कहकर करीब आने लगे।
तुम्हारी ज़ात के नेता हैं हम तुम्हारे हैं,
ग़रीबों को ये बताकर गले लगाने लगे।
तुम्हारा हाल बदल देंगे एक मौका दो,
गली गली उसी ढपली को फिर बजाने लगे।
जो भीड़ आई है रैली में, है किराये की,
वो जिसके ज़ोर पे क़द को बड़ा दिखाने लगे।
बहा के ख़ून के दरिया सभी सियासतदां,
हर एक ख़ून के क़तरे से फ़ैज़ उठाने लगे।
ये देस लूट रहे हैं हमारे नेता जी,
जिसे आज़ाद कराने…
Added by इमरान खान on March 11, 2014 at 1:30pm — 20 Comments
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आज दिल उनका होने वाला है
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बहरे खफीफ मुसद्दस मखबून
फ़ायलातुन मुफाएलुन फालुन
2122 1212 22
होश लगता है खोने वाला है,
आज दिल उनका होने वाला है.
हर ख़ुशी जागने लगी दिल की,
ग़म थका है तो सोने वाला है.
कल जो जारो कतार था मंज़र,
हँस रहा देखो रोने वाला है.
रूह ये धूल से भरी मेरी,
आज आकर वो धोने वाला है.
दिल की बंज़र पड़ी ज़मीनों पर,…
Added by इमरान खान on February 24, 2014 at 9:00pm — 5 Comments
मैं तेरी याद को सीने में चल दिया लेकर,
मेरा भी दिल था जो तूने मसल दिया लेकर।
किसी के वास्ते खुद को तबाह कर लेना,
खुदा किसी को न अब तू ये हौसला देना।
सज़ा मैं कौन से जुर्मों की जाने सहता हूँ,
किसी हुजूम में रहकर भी आज तन्हा हूँ।
क्यों मेरे दिल का ठिकाना बदल दिया लेकर,
मेरा भी दिल था जो तूने मसल दिया लेकर।
न जाने आग में कब तक जला करूँगा मैं,
यूँ किस तरह से भला और जी सकूँगा मैं।
मिटाऊंगा…
ContinueAdded by इमरान खान on February 10, 2014 at 6:43pm — 4 Comments
Added by इमरान खान on August 16, 2013 at 11:55am — 19 Comments
तमाम उम्र भी ये बात हो नहीं सकती,
हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती।
हर एक ख्वाब की ताबीर मिल सके हमको,
कोई भी ऐसी करामात हो नहीं सकती।
गुरूब हो चुका मेरे नसीब का सूरज,
अब और नूर की बरसात हो नहीं सकती।
मैं रात हूँ मुझे सूरज मिले भला कैसे,
हो शम्स पास तो फिर रात हो नहीं सकती।
बजाय हमको मनाने के कह गये है वो,
के छोडो हमसे इल्तजात हो नहीं सकती।
कोई गुनाह बहुत ही कबीर है मेरा,
कबूल जिसकी मुनाजात हो नहीं…
Added by इमरान खान on December 2, 2012 at 10:30pm — 19 Comments
२१२ २१२
मैं जहाँ भी रहूँ,
तू भी आती है क्यूँ।
मैं अकेला कहाँ,
तेरी यादों में हूँ।
ठोकरें भी लगें,
तो भी चलता रहूँ।
मेरी बर्बादियाँ,
चल रही दू ब दूँ।
कत्ले अरमाँ या जाँ,
बोल दे क्या करूँ।
जिस्म ठंडा हुआ,
रूह जलती है क्यूँ।
है तेरी याद में,
दीद में खूँ ही खूँ।
ज़ख़्मी सारा जिगर,
दर्द कैसे सहूँ।
आशियाना नहीं,
बेठिकाना फिरूँ।
यार भी छल…
Added by इमरान खान on November 20, 2012 at 11:30pm — 9 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२
पुर-शुआ पुर-शुआ था हमारा शहर, रोशनी में नहाया हुआ था समाँ,
आज लेकिन न जाने ये क्या हो गया, हो गया है अँधेरा अँधेरा जवाँ।
हैं तवारीख में दास्तानें सभी, वक्त की मार से खाक में मिल गये,
जो जवाहर सजाते रहे ताज में, और ताबे रहा जिनके सारा जहाँ।
उल्फतों से यही हाय कहता रहा, मैं तुम्हारा बना हूँ सदा के लिये,
पर अचानक उसी ने गज़ब ये किया, चल दिया ठोकरें दे न जाने कहाँ।
बन्द कर के निगाहें भरोसा किया, जानो…
Added by इमरान खान on November 17, 2012 at 2:00pm — 3 Comments
Added by इमरान खान on November 15, 2012 at 11:26am — 8 Comments
आज मुझ पे हसीं इल्ज़ाम लगाया उसने,
मेरे सोते हुए बातिन को जगाया उसने।
मुझसे बोला के ये क्या रोग लगा बैठा है,
धूप निकली है अन्धेरे में छुपा बैठा है?
तुझको दुनिया की जो तकलीफ का हो अन्दाज़ा,
अपनी मायूसियों के खोल से बाहर आ जा।…
ContinueAdded by इमरान खान on August 6, 2012 at 3:33pm — 7 Comments
जिसका अंक है कोई, न रूप आकार है,
जो प्रकाश पुंज है, जो निर्विकार है,
कणों कणों से एक सुर में ये पुकार है,
वही तो सृजनकार है, वही तो सृजनकार है।
ये नगर ये…
ContinueAdded by इमरान खान on May 8, 2012 at 1:00pm — 8 Comments
दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.
ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.
दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.
सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,
रोने लगा रुवां रुवां, चल दिल चलें अपने…
ContinueAdded by इमरान खान on May 6, 2012 at 11:41am — 7 Comments
जिनसे इंसां का भी दर्जा नहीं पाया हमने,
मुद्दतों ऐसे ही इंसानों को पूजा हमने.
.
प्यार की पौध के मिटने से तो मर जायेंगे,
खून के अश्क से बागान को सींचा हमने.
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हाँ उजाला नहीं होना मेरी इन राहों में,
शम्स ए पुरनूर से पाया ये अँधेरा हमने.
.
हमने मुंसिफ के भी हाथों में जो खंजर देखे,
कांपता दिल था मुक़दमा नहीं डाला हमने.
.
वहशी लोगों में किसी कांच से नाज़ुक हम थे,
हुज्जतों से बड़ी दामन ये बचाया…
ContinueAdded by इमरान खान on April 21, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
ज़ाहिर है पाक साफ़ तख़य्युल ख़राब है,
चेहरा तो चाँद सा है मगर दिल ख़राब है।
कहते हैं मुझसे चीख़ के रंजो मलाले दिल,
राहें तेरी हसीन थी मन्ज़िल ख़राब है।
अपनी अना के ख़ोल में जो खुद छुपा रहा,
उसने भी अलम दे दिया महफिल खराब है।
करते हैं शेख़ जी भी यहाँ ऐबदारियाँ,
इस दौर में तन्हाँ नहीं बातिल ख़राब है।
इक राह आख़िरी थी बची वो भी खो गई,
लगता है ये नसीब मुकम्मिल ख़राब है।
इक दौर में बुलन्दी मेरी…
ContinueAdded by इमरान खान on February 12, 2012 at 1:10pm — 7 Comments
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