For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी सर को झुका कर रह गई...

हर क़दम पर मात खाकर रह गई,

जिंदगी सर को झुका कर रह गई.

देख लो पहचान मेरी हो जुदा,

एक खुदसर में समाकर रह गई.

होगी मलिका सल्तनत की वो मगर,

मेरी खातिर कसमसा कर रह गई.

रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,

हर दफा बस छटपटा कर रह गई.

सोजे दिल पानी से भी ना बुझ सके,

आंख भी आंसू बहा कर रह गई.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by इमरान खान on December 14, 2014 at 5:24pm

आदरणीय योगराज जी आपकी बधाई और निरंतर छत्र-छाया के लिए धन्यवाद....

देख लो पहचान मेरी हो जुदा,
एक खुदसर में समाकर रह गई.

इस शेर में मैं कहना चाह रहा हूँ कि मैंने खुद को किसी के लिए इतना समायोजित किया कि मैं मैं नहीं रहा, पहचान तक खो गई, और वो पहचान एक खुदसर में समा गई.

इस शेर पर भी नज़र डालियेगा...
/देखकर लोग मुझे नाम तेरा लेते हैं, इस पे मैं खुश हूँ, इश्क का ये अंजाम तो है/

अगर मफहूम अब भी पूरी तरह स्पष्ट न हो रहा हो, तो इस्लाह की दरकार ....

Comment by इमरान खान on December 14, 2014 at 5:14pm

आपका हार्दिक धन्यवाद राजेश कुमारी जी, अजय शर्मा जी, मीना पाठक जी. गिरिराज भंडारी जी आपका भी बेहद शुक्रिया.

Comment by इमरान खान on December 14, 2014 at 5:12pm

आदरणीय बागी जी सौभाग्य की बात है कि मेरी ग़ज़लगोई पसंद आई. मुझ ओबीओ के उत्पाद को ओबीओ के सरपरस्तों की सराहना मिल रही है, मेरी इससे बड़ी कोई और उपलब्धि हो ही नहीं सकती. मैं दिल की गहराइयों से शुक्रगुज़ार हूँ आपका.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 11:12am

हर क़दम पर मात खाकर रह गई,

जिंदगी सर को झुका कर रह गई.  --- बहुत खूब , आदरणीय इमरान भाई गज़ल के लिये और इस शे र के लिये बधाई !

Comment by Meena Pathak on December 9, 2014 at 8:07pm

बहुत खूब 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 12:12pm

ग़ज़ल बढ़िया हुई है भाई इमरान खान जी, जिस हेतु बधाई भी पेश है। लेकिन दूसरा शेअर ऊपर से निकल गया भाई।

Comment by इमरान खान on December 6, 2014 at 4:54pm

हार्दिक धन्यवाद .... डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव, narendrasinh chauhan एवं Rahul Dangi जी.

Comment by इमरान खान on December 6, 2014 at 4:22pm

बहुत शुक्रिया हरि प्रकाश दूबे जी...

Comment by इमरान खान on December 6, 2014 at 4:21pm

धन्यवाद सोमेश कुमार जी ... दीवारों की परवाह करते नहीं हैं, जो हद से गुज़रते हैं डरते नहीं हैं....

Comment by ajay sharma on December 5, 2014 at 9:59pm

रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,

हर दफा बस छटपटा कर रह गई.  behatreen sher ..............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service