For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी सर को झुका कर रह गई...

हर क़दम पर मात खाकर रह गई,

जिंदगी सर को झुका कर रह गई.

देख लो पहचान मेरी हो जुदा,

एक खुदसर में समाकर रह गई.

होगी मलिका सल्तनत की वो मगर,

मेरी खातिर कसमसा कर रह गई.

रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,

हर दफा बस छटपटा कर रह गई.

सोजे दिल पानी से भी ना बुझ सके,

आंख भी आंसू बहा कर रह गई.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by इमरान खान on December 14, 2014 at 5:24pm

आदरणीय योगराज जी आपकी बधाई और निरंतर छत्र-छाया के लिए धन्यवाद....

देख लो पहचान मेरी हो जुदा,
एक खुदसर में समाकर रह गई.

इस शेर में मैं कहना चाह रहा हूँ कि मैंने खुद को किसी के लिए इतना समायोजित किया कि मैं मैं नहीं रहा, पहचान तक खो गई, और वो पहचान एक खुदसर में समा गई.

इस शेर पर भी नज़र डालियेगा...
/देखकर लोग मुझे नाम तेरा लेते हैं, इस पे मैं खुश हूँ, इश्क का ये अंजाम तो है/

अगर मफहूम अब भी पूरी तरह स्पष्ट न हो रहा हो, तो इस्लाह की दरकार ....

Comment by इमरान खान on December 14, 2014 at 5:14pm

आपका हार्दिक धन्यवाद राजेश कुमारी जी, अजय शर्मा जी, मीना पाठक जी. गिरिराज भंडारी जी आपका भी बेहद शुक्रिया.

Comment by इमरान खान on December 14, 2014 at 5:12pm

आदरणीय बागी जी सौभाग्य की बात है कि मेरी ग़ज़लगोई पसंद आई. मुझ ओबीओ के उत्पाद को ओबीओ के सरपरस्तों की सराहना मिल रही है, मेरी इससे बड़ी कोई और उपलब्धि हो ही नहीं सकती. मैं दिल की गहराइयों से शुक्रगुज़ार हूँ आपका.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 11:12am

हर क़दम पर मात खाकर रह गई,

जिंदगी सर को झुका कर रह गई.  --- बहुत खूब , आदरणीय इमरान भाई गज़ल के लिये और इस शे र के लिये बधाई !

Comment by Meena Pathak on December 9, 2014 at 8:07pm

बहुत खूब 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 12:12pm

ग़ज़ल बढ़िया हुई है भाई इमरान खान जी, जिस हेतु बधाई भी पेश है। लेकिन दूसरा शेअर ऊपर से निकल गया भाई।

Comment by इमरान खान on December 6, 2014 at 4:54pm

हार्दिक धन्यवाद .... डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव, narendrasinh chauhan एवं Rahul Dangi जी.

Comment by इमरान खान on December 6, 2014 at 4:22pm

बहुत शुक्रिया हरि प्रकाश दूबे जी...

Comment by इमरान खान on December 6, 2014 at 4:21pm

धन्यवाद सोमेश कुमार जी ... दीवारों की परवाह करते नहीं हैं, जो हद से गुज़रते हैं डरते नहीं हैं....

Comment by ajay sharma on December 5, 2014 at 9:59pm

रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,

हर दफा बस छटपटा कर रह गई.  behatreen sher ..............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अंतिम दो पदों में तुकांंत सुधार के साथ  _____ निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी _____ निवृत सेवा से हुए अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न बैठने दें पोतियाँ माँगतीं…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Dec 16

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service