आज मुझ पे हसीं इल्ज़ाम लगाया उसने,
मेरे सोते हुए बातिन को जगाया उसने।
मुझसे बोला के ये क्या रोग लगा बैठा है,
धूप निकली है अन्धेरे में छुपा बैठा है?
तुझको दुनिया की जो तकलीफ का हो अन्दाज़ा,
अपनी मायूसियों के खोल से बाहर आ जा।
अपने कमरे से निकलकर जो मैं बाहर आया,
तेज़ सूरज से हर एक शख्स को जलता पाया।
हर तरफ शोर था अब धूप न सह पायेंगे,
गर न बारिश हो तो बेमौत मारे जायेंगे।
बस कबूल अब तो हमारी ये सिफारिश कर दे,
धूप झुलसाती है अल्लाह तू बारिश कर दे।
मैं ये हैरतज़दा सा सोचने लगा यकदम,
अजब इंसान हैं मखलूके खुदा कैसे हम।
ये वही धूप है जिसके लिए तरसे थे कभी,
सर्द मौसम में इसकी आस में रहते थे सभी।
कैसा इंसान है हर वक्त ये रोता जाये,
अपनी उम्मीद के जैसा ही हमेशा चाहे,
वक्त कैसा भी हो चुपचाप मैं सह लेता हूँ,
दर्द कितना भी हो हर हाल में खुश रहता हूँ।
मुझसे बेकार की बातें नहीं देखी जाती,
इसलिए ही तो ये तन्हाई मेरी है साथी।
Comment
मुहतरम अम्बरीश साहब बहुत बहुत शुक्रिया आपका
मुझसे बोला के ये क्या रोग लगा बैठा है,
धूप निकली है अन्धेरे में छुपा बैठा है?
वाह जनाब वाह क्या बात है, दाद कुबूल कीजिये
वक्त कैसा भी हो चुपचाप मैं सह लेता हूँ,
दर्द कितना भी हो हर हाल में खुश रहता हूँ।खुबसूरत नज्म पर बहुत बहुत बधाई
'दर्द कैसा भी हो हर हाल में खुश रहता हू', बहु सुन्दर सन्देश भाई इमरान खान जी, बधाई
बस कबूल अब तो हमारी ये सिफारिश कर दे,
धूप झुलसाती है अल्लाह तू बारिश कर दे।.....aameen....bhai ji ...sudnar
कैसा इंसान है हर वक्त ये रोता जाये,
अपनी उम्मीद के जैसा ही हमेशा चाहे,
वक्त कैसा भी हो चुपचाप मैं सह लेता हूँ,
दर्द कितना भी हो हर हाल में खुश रहता हूँ।
प्रिय इमरान जी बहुत अच्छा सन्देश और अच्छी नज्म .....मुबारक हो जनाब ..अल्लाह सुनें फ़रियाद और झमाझम बारिस हो
//
वक्त कैसा भी हो चुपचाप मैं सह लेता हूँ,
दर्द कितना भी हो हर हाल में खुश रहता हूँ।//
वाह इमरान जी वाह ......खूबसूरत नज़्म के लिए मुबारकबाद ....
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