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सियासी जमातो! ग़दर कर दिया है,
वतन को लहू की नज़र कर दिया है।
निशाँ भी नहीं है कहीं रोशनी का,
के हर सू अँधेरा अमर कर दिया है।
डरी और सहमी है औलादे आदम,
ज़हन पर कुछ ऐसा असर कर दिया है।
नई नस्ले नफरत को पाने की धुन में,
रगों में रवाना ज़हर कर दिया है।
यहाँ कल तलक थी हज़ारों की बस्ती,
बताओ के उसको किधर कर दिया है।
ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।
गबन बेतहाशा किये इतने सारे,
के क़ौमी ख़ज़ाना सिफर कर दिया है।
निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
समसामयिकता को बखूबी स्वर मिले हैं. बहुत खूब !
दाद कुबूल करें भाई.
हालाते हाज़रा पर बहुत ही शानदार पुरसर अश'आर हुए हैं आ० इमरान खान जी
डरी और सहमी है औलादे आदम,
ज़हन पर कुछ ऐसा असर कर दिया है।...........बहुत खूब
निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है।.............उफ्फ! कितनी लाचारगी है.न दिखाई देता है न सुनायी देता है..की लोग चाहते ही नहीं देखना और सुनना ...बहुत खूब
बहुत बहुत बधाई
अदरणीय इमरान भाई सभी अशआर रवानगी लिए हुये हैं। कहने का अंदाज़ भी बहुत उम्दा है। हमारी तरफ से शानदार गज़ल के लिए मुबारकबाद ..
बहुत खूब इमरान साहब, अच्छी ग़ज़ल है। दाद कुबूलें।
आदरणीय इमरान साहेब
खूब तंज़ किया है आपने.. अच्छे अश्आर कहे है आपने.
ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।
गबन बेतहाशा किये इतने सारे,
के क़ौमी ख़ज़ाना सिफर कर दिया है।
निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है।
बहुत खूब
वाह जनाब क्या गजल कही है,
आदरणीय इमरान जी बेहतरीन ग़ज़ल ..हर शेर उम्दा है ..बिशेष रूप से ये शेर मुझे बेहद भाये ..आपको तहे इल बधाई के साथ सदर
नई नस्ले नफरत को पाने की धुन में,
रगों में रवाना ज़हर कर दिया है।
ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।
निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है
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