दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.
ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.
दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.
सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,
रोने लगा रुवां रुवां, चल दिल चलें अपने जहाँ.
ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.
ज़ख़्मी हुयी सहर सहर, शामें भी खूं से तर बतर,
हर सू से मैं बेआस हूँ, पूछो न क्यूँ उदास हूँ,
वो कर गया है बेज़बां, चल दिल चलें अपने जहाँ.
ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.
Comment
धन्यवाद् @गणेश लोहानी जी
@सौरभ भैया आपको मेरा प्रयास रुचिकर और सार्थक लगा ... मै हृदय की गहराईयों से आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
@अरुण जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका ... मेरे लिए आप जैसे वरिष्ठ की सराहना पथ प्रदर्शन की तरह है
दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.
ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ
अति सुन्दर इमरान जी कुछ पंक्तियाँ बहुत नायाब बन पड़ी है हार्दिक बधाई !!
एक रचनाकार अपनी भावनाओं को लेखन की कई-कई विधाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता है. इमरानभाई की यह कोशिश बहुत रंग लायेगी, इसका भान है. सतत प्रयत्नशील रहें, इमरान भाई.
बहुत-बहुत बधाई.
वो कर गया है बेज़बां, चल दिल चलें अपने जहाँ.
ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.
बधाई
आपका हार्दिक आभार @छोटू सिंह जी.
बहुत बहुत धन्यवाद् @प्रदीप कुमार जी.
आपका पुरखुलुस शुक्रिया @राजेश कुमारी जी.
दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.
सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,
bahut khoob. badhai.
इमरान खान जी बहुत सुन्दर रचना बधाई आपको
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