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आपकी दाद का बेहद शुक्रिया गुमनाम साहब.
एकदम सही पकड़ा अपने, बहुत खूब कहा...
मैं खुद भी नौसिखिया हूँ, यहाँ सब इसी तरह से सीखते और सिखाते हैं, बेस्ट ऑफ़ लक.
वाह सर जी इस तरह तो मैंने सोचा ही नही खूब बहुत खूब सर फिर से दाद कबूलें रही बात कमेंट की गोली मारो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरे दिल को तो चैन आ गया
इक नया पाठ सिखला गया
क्या मैं सही कह पाया
माफ़ कीजियेगा गुमनाम साहब गलती से आपका कमेंट डिलीट हो गया मुझसे .
गुमनाम जी आपकी बधाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...
ये शेर देखिये....
मेरे दिल को न चैनायेगा,
उम्र सारी मलालायेगा।
नूर मुझसे ख़फ़ा है तो फिर,
बस अँधेरा करीबायेगा।
अब ग़ज़ल पर नज़रे सानी करें शायद अब काफिया और रदीफ़ सही समझ में आये....
जी सौरभ भय्या सही कहा अपने, ग़ज़ल के मिसरों का वज्न २१ २२१२ २१२ ही है. आगे से परिपाटी के पालन की पूरी कोशश करूंगा. ग़ज़ल की सराहना के लिए मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आपका.
बहुत शुक्रिया रविकर साहब और जीतेन्द्र गीत साहब हौसला अफजाई के लिए आपका भी शुक्रगुज़ार हूँ मैं.
गुल है 'इमरान' बिखरा भी तो,
ज़र्रे ज़र्रे को महकायेगा।
एक अरसे के बाद इ मंच पर आपकी उपस्थिति प्रसन्न कर गयी. अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत् दाद कुबूल कीजिये.
मिसरे का वज़्न दे देते तो एक परिपाटी का पालन हो जाता है.
मेरे हिसाब से वज़्न यों होगा - २१ २२१२ २१२
बताइयेगा..
शुभेच्छाएँ.
नूर मुझसे ख़फ़ा है तो फिर,
बस अँधेरा करीब आयेगा।...........वाह! खुबसूरत शेर
दाद कुबूल कीजिये इमरान साहब
बढ़िया है आदरणीय-
बधाई-
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