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मेरा भी दिल था जो तूने मसल दिया लेकर

मैं तेरी याद को सीने में चल दिया लेकर,

मेरा भी दिल था जो तूने मसल दिया लेकर।

किसी के वास्ते खुद को तबाह कर लेना,

खुदा किसी को न अब तू ये हौसला देना।

सज़ा मैं कौन से जुर्मों की जाने सहता हूँ,

किसी हुजूम में रहकर भी आज तन्हा हूँ।

क्यों मेरे दिल का ठिकाना बदल दिया लेकर,

मेरा भी दिल था जो तूने मसल दिया लेकर।

न जाने आग में कब तक जला करूँगा मैं,

यूँ किस तरह से भला और जी सकूँगा मैं।

मिटाऊंगा जो सभी को रहे हैं मुझ से गिले,

ऐ मेरी मौत चली आ के कुछ सुकून मिले।

ये कैसा दिल को वफाओं का फल दिया लेकर,

मैं तेरी याद को सीने में चल दिया लेकर।

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Comment

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Comment by इमरान खान on March 18, 2014 at 12:53am

मोहतरमान जनाब रमेश कुमार व जीतेन्द्र गीत साहब, और मोहतरमा जनाब मीना पाठक साहिबा मेरी इस नज़्म को पसंद करने के लिए पुरखुलूस शुक्रिया कुबूल करें.

Comment by Meena Pathak on February 13, 2014 at 3:18pm

बहुत खूब ... ढेरों दाद कुबूलकीजिये 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 12, 2014 at 10:09am

मिटाऊंगा जो सभी को रहे हैं मुझ से गिले,

ऐ मेरी मौत चली आ के कुछ सुकून मिले।.......वाह! बहुत खूब

हार्दिक बधाई आदरणीय इमरान भाई

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 8:58pm

भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिये बधाई

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