ज़ाहिर है पाक साफ़ तख़य्युल ख़राब है,
चेहरा तो चाँद सा है मगर दिल ख़राब है।
कहते हैं मुझसे चीख़ के रंजो मलाले दिल,
राहें तेरी हसीन थी मन्ज़िल ख़राब है।
अपनी अना के ख़ोल में जो खुद छुपा रहा,
उसने भी अलम दे दिया महफिल खराब है।
करते हैं शेख़ जी भी यहाँ ऐबदारियाँ,
इस दौर में तन्हाँ नहीं बातिल ख़राब है।
इक राह आख़िरी थी बची वो भी खो गई,
लगता है ये नसीब मुकम्मिल ख़राब है।
इक दौर में बुलन्दी मेरी आसमाँ पे थी,
अब तो है सच यही मेरा तिल तिल ख़राब है।
'ग़मगीन' ज़िन्दगी से जो मुझको छुड़ा गया,
ये झूठ बात है के वो क़ातिल ख़राब है.
Comment
nice
हाँ जनाब है तो ऐसा ही कुछ कुछ
आपकी ग़ज़ल मुजारे की मुज़ाहिफ बह्र पर है जिसकी मात्रा २२१ / २१२१ / १२२१ / २१२ है
आप तख्तीय करके खुद बे-बह्र मिसरों को पहचान सकते हैं
@वीनस भाई .. बहुत शुक्रिया आपकी तारीफ़ नयी ऊर्जा का संचार कर रही है ...
इस ग़ज़ल के मुन्दर्जा जैल दो शेरों में मुझे ऐसा लगता है शायद लय की गड़बड़ है... क्या आपको भी लगता है?
अपनी अना के ख़ोल में जो खुद छुपा रहा,
उसने भी अलम दे दिया महफिल खराब है।
करते हैं शेख़ जी भी यहाँ ऐबदारियाँ,
इस दौर में तन्हाँ नहीं बातिल ख़राब है।
@राजेश कुमारी जी .. हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ..
कहते हैं मुझसे चीख़ के रंजो मलाले दिल,
राहें तेरी हसीन थी मन्ज़िल ख़राब है।
गजब गजब गजब
'ग़मगीन' ज़िन्दगी से जो मुझको छुड़ा गया,
ये झूठ बात है के वो क़ातिल ख़राब है.
जिंदाबाद
जिंदाबाद
जिंदाबाद
bahut pasand aai aapki ghazal.
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