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चेहरा तो चाँद सा है मगर दिल ख़राब है......

ज़ाहिर है पाक साफ़ तख़य्युल ख़राब है,

चेहरा तो चाँद सा है मगर दिल ख़राब है।

कहते हैं मुझसे चीख़ के रंजो मलाले दिल,

राहें तेरी हसीन थी मन्ज़िल ख़राब है।

अपनी अना के ख़ोल में जो खुद छुपा रहा,

उसने भी अलम दे दिया महफिल खराब है।

करते हैं शेख़ जी भी यहाँ ऐबदारियाँ,

इस दौर में तन्हाँ नहीं बातिल ख़राब है।

इक राह आख़िरी थी बची वो भी खो गई,

लगता है ये नसीब मुकम्मिल ख़राब है।

इक दौर में बुलन्दी मेरी आसमाँ पे थी,

अब तो है सच यही मेरा तिल तिल ख़राब है।

'ग़मगीन' ज़िन्दगी से जो मुझको छुड़ा गया,

ये झूठ बात है के वो क़ातिल ख़राब है.

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Comment by आशीष यादव on February 14, 2012 at 5:37am
बहुत शानदार गज़ल। सभी शे'र बहुत अच्छे लगे।
Comment by Nazeel on February 13, 2012 at 8:00pm

nice

Comment by वीनस केसरी on February 13, 2012 at 7:05pm

हाँ जनाब है तो ऐसा ही कुछ कुछ
आपकी ग़ज़ल मुजारे की मुज़ाहिफ बह्र पर है जिसकी मात्रा  २२१ / २१२१ / १२२१ / २१२   है
आप तख्तीय करके खुद बे-बह्र मिसरों को पहचान सकते हैं

Comment by इमरान खान on February 13, 2012 at 4:57pm

@वीनस भाई .. बहुत शुक्रिया आपकी तारीफ़ नयी ऊर्जा का संचार कर रही है ...
इस ग़ज़ल के मुन्दर्जा जैल दो शेरों में मुझे ऐसा लगता है शायद लय की गड़बड़ है... क्या आपको भी लगता है?

अपनी अना के ख़ोल में जो खुद छुपा रहा,
उसने भी अलम दे दिया महफिल खराब है।
करते हैं शेख़ जी भी यहाँ ऐबदारियाँ,
इस दौर में तन्हाँ नहीं बातिल ख़राब है।

Comment by इमरान खान on February 13, 2012 at 4:53pm

@राजेश कुमारी जी .. हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ..

Comment by वीनस केसरी on February 13, 2012 at 2:51pm

कहते हैं मुझसे चीख़ के रंजो मलाले दिल,

राहें तेरी हसीन थी मन्ज़िल ख़राब है।

गजब गजब गजब

'ग़मगीन' ज़िन्दगी से जो मुझको छुड़ा गया,

ये झूठ बात है के वो क़ातिल ख़राब है.

जिंदाबाद
जिंदाबाद
जिंदाबाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 13, 2012 at 11:01am

bahut pasand aai aapki ghazal.

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