हमनशीं राह पे बस और ना छल दो मुझको,
मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको।
मसनुई प्यार से अच्छा है के नफरत ही करो,
शर्त बस ये है के नफरत भी असल दो मुझको।
दिले बीमार ने बस कोने मकाँ माँगा है,
मेरी चाहत ये कहाँ ताजो महल दो मुझको।
मेरे बिगड़े हुए हालात में तुम आ जाओ,
वक़्त ए आखिर है के दो पल तो सहल दो मुझको।
डबडबाई हुई आँखों से न रुखसत करना,
बड़ा लम्बा है सफर खिलते कँवल दो मुझको।
Comment
@विपुल भाई ... आपने मेरी ग़ज़ल पर गहरी नज़र डाली
बहुत ही खूबसूरती से आपने मेरी इस्लाह की है... आपकी बताई हुयी हर के बात का आगे से मैं ख्याल रखूंगा ...
दिल की गहराईयों से शुक्रिया आपका .. उम्मीद है के आप आगे भी मेरी इसी तरह इस्लाह फरमाते रहेंगे :))
Bahut hi achhi ghazal kahi hai Imran bhai. behad khubsurati se takhayyul ko parvaz di hai. vale kuchh khaamiyaN haiN jinki janib aapka dhyan khenchna chahunga. (2 misroN ki bahr ke baare meN aapko pahle bhi Veenas sahab bata chuke haiN)
मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको।
ise yun kar sakte haiN "mujhko seene se lagao"
"Asal" aur "sehal" alfaz ko 12 ke wazn par lena shayad sahi nahiN hai. ye alfaz darasl apni mool zabaanoN meN yuN haiN "asl"/"sehl". so inheN 21 par hi liya jana chahiye. (mujhe maloolm nahin k hindi kavya meN inheN 12 par lene ki swatantrata mil gayi hai ya nahiN. lekin shayad aisa nahiN hona chahiye. alfaz apne mool roop meN hi istemal hote haiN. aur deegar shaura ne bhi inheN 21 par liya hai)
बड़ा लम्बा है सफर खिलते कँवल दो मुझको।
ise yuN kar sakte haiN "kitna lamba hai safar"
baaqi ghazal bahut umda hai. khuda kare aapka qalam hamesha yuN hi ehsas ki paziiraayi farmata rahe...
हाँ भाई ! कथ्य और विधा दोनों के लिये.
सौरभ भैया आपके आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत शुक्रिया :)
भैया 'संभाल' शब्द क्या अपने बह्र के लिए इस्तेमाल किया है?
मसनुई प्यार से अच्छा है के नफरत ही करो,
शर्त बस ये है के नफरत भी असल दो मुझको।
बहुत सुन्दर ! बधाई इमरान भाई, इस बेहतरीन संभाल के लिये.
मतले का मिसरा ए सानी और आख़िरी शेर का मिसरा ए सानी पुनः देख लें
बह्र में दो स्वतन्त्र लघु को इस सुंदरता से निभाना काबिलेतारीफ़ है
पुनः बधाई
वीनस भाई आपने मेरी इस हकीर सी कोशिश को सराहा मेरे लिए मसर्रतों का मकाम है... लय जहाँ पर भंग हुयी है अगर कुछ इशारा दें तो मेरे लिए मिसरों को सुधारने में आसानी हो जाएगी...
बरा ए मेहरबानी बह्र के पेचीदा होने पर भी कुछ रोशनी डाल दीजिये ..
AVINASH भाई बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए :)
इमरान जी
ग़ज़ल में सुन्दर भाव के साथ पेचीदा बह्र का पालन किया गया है
हार्दिक बधाई
कुछ मिसरों में लय भंग होती महसूस हुई, यदि नजर-ए-सानी कर लें तो ग़ज़ल और निखर जायेगी
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online