मैं घायल सा परिंदा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं,
हैं पर टूटे मैं सहमा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.
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यही किस्मत से पाया है, जो अपना था पराया है,
परीशां हूँ मैं तनहा हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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भले तपता ये सहरा हो, तुम्हें अपना बनाया तो,
घना साया सा पाया हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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तुम्ही से जिंदगी मेरी, तुम्ही से हर ख़ुशी मेरी,
तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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मेरी गजलें अधूरी थी, तुम्हें पाया तो पूरी की,
मैं सब कुछ तुम से पाता हूँ, कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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Comment
जी नहीं,,,,, पिछले शेर से मफहूम नहीं लिया जा सकता
हर शेर में स्वतंत्र रूप से बात पूरी होनी चाहिए
भाव पक्ष के लिए मैं यह सोचता हूँ कि प्राथमिकता अपनी संतुष्टि को देनी चाहिए
यदि आप संतुष्ट हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योकि १० लोग पसंद करेंगे तो २-३ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिनको रचना जियादा पसंद ना आये
आपने शेर के मिसरा ए ऊला में भी काफिया को निभाने की कोशिश कैसे की है समझ नहीं पाया ...
वीनस भाई मैं शुक्रगुज़ार हूँ आपका ... मुझे भी ये ग़ज़ल गुनगुनाने में ही ठीक लगती है... आपका मार्गदर्शन मुझे आनंदित कर रहा है...
आपने जो चौथे शेर की बात की है .. दरअसल मैंने तीसरे शेर में जो कहना चाहा है के 'आप मुझे जलते सेहरा में साए की मानिंद पाए हैं' ... सहरा में तो साया मिल गया .. चौथे शेर में भी मैं उसी बात को जारी रखने की कोशिश कर रहा हूँ...
मेरी उत्सुकता है के क्या फिछले शेर से मफहूम नहीं लिया जा सकता?
वैसे जलने का मतलब 'दिल जलने' से भी तो होता है ... जैसे कहते हैं के तुमने अगर मुझे छोड़ दिया तो मेरा दिल जलता रहेगा... एक गाना भी याद आया .. 'जिया जले जाँ जले .....'
दूसरे इस ग़ज़ल मैं मैंने हर शेर के मिसरा ए ऊला में भी काफिया को निभाने की कोशिश की है .. इसके बारे में कुछ बताइए, कुछ फर्क पड़ता है या नहीं इस बात से?
वाह वाह वाह
उम्दा
रदीफ "कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं" में जो दोहराव आ रहा है वह शेर में अतिरिक्त आनंद दे रहा है
अच्छे शेर हुए हैं
हार्दिक बधाई
गुनगुनाकर पढ़ने में ग़ज़ल आनंददायक है
एक बात महसूस हुई है तो उसे कहने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ
तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, चौथे शेर में जस्टीफाई नहीं हो पा रहा है यदि इस बात को यदि तीसरे शेर में पिरोया जाता तो तीसरा शेर और अच्छा बनता क्योकि उसमें सहरा की बात की गई है
जैसे -
भले तपता है यह सहरा, घना साया मिले हो तुम
तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
सादर
@ नीरज जी
@ अविनाश जी
@ राज शर्मा जी
आप सभी की हसला अफजाई के लिए में शुक्रगुज़ार हूँ.. :))
मोहतरम गणेश जी बागी साहब... आपके शब्दों ने मेरे प्रयास को सार्थक कर दिया है... आपके इस और इसी तरह के अनुमोदन मेरे जैसे नौसिखिये के लिए प्रेरणा का स्रोत साबित होते हैं... आपका हार्दिक धन्यवाद् :)
@मुकेश भाई दर्द की इन्तहा के बाद ही तो ख़ुशी का भी एहसास होता है... शुक्रिया आपका..
wah Bahut khoob!
shandar
इमरान भाई , लम्बे रदीफ़ के साथ ग़ज़ल को निभा जाना मामूली बात नहीं है, सभी शेर भी ठीक ठाक निकाले है, बधाई स्वीकार करे |
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