काफिया –आँ , रदीफ़ –पर
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कुटिल जैसे बिना कारण, किया आघात नादाँ पर
भरोषा दुश्मनों पर है, नहीं है फ़क्त यकजाँ पर |
अयाचित आपदा का फल, कहे क्या? अब पडा जाँ पर
गुनाहों की सज़ा मिलती है’, फिर क्यों प्रश्न जिन्दां पर ?
चुनावों में शरारत कर, सभी सीटों को’ जीता है
सिकंदर है वही जो जीता,’ क्यों आरोप गल्तां पर ?
वो’ मूसलधार बारिश, कड़कती धूप सूरज की
सभी मिलकर उजाड़े बाग़ को, निंदा गुलिस्ताँ पर |
बुराई ही नहीं अच्छाई’ भी है, फिल्म में जो कुछ
बताती है कहानी पूर्ण, क्यों आक्षेप उन्वाँ पर |
विपक्षी नेता’ के आरोप बेबुनियाद, पर अब तक
कभी कोई नहीं आपत्ति की, उसके नमकदां पर |
की’. मानव ने ही’ सब बर्बाद अंतरजात सुन्दरता
मनोहरता हुई खुद ध्वस्त, क्यों आरोप तूफाँ पर ?
बसें रेलें चली सब किन्तु हाई स्पीड है गायब
किया है खर्च बेहद, रेल गाड़ी छोड़ अरमां पर |
अरण्य अब और ज्यादा है नहीं, थोड़ा बचा ‘काली’
उजाडो मत हरी धरती, फसल निर्भर बयाबाँ पर |
शब्दार्थ : यकजाँ=घनिष्ट ,दिली
जिन्दां=कैद , गल्तां= लुडके हुए, हारे हुए
उन्वाँ=शीर्षक , नमकदां=नमक छिड़कना
बयाबाँ=जंगल
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब ,आदाब , हौला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |
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