काफिया :अर ; रदीफ़ :दिल –ओ- दिलदार
बहर : १२१२ ११२२ १२१२ २२(१ )
कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार
जिसे तलाशती’ मेरी नज़र दिल-ओ-दिलदार |
हवा के’ झोंके’ ज्यों’ आते सदा सनम मेरे
नसीम शोख व महका मुखर दिल-ओ-दिलदार |
सूना उसे कई’ गोष्टी में’, फिर भी’ प्यासा मन
अज़ीज़ है वही आवाज़ हर दिल-ओ-दिलदार |
कभी हुई न समागम, कभी नहीं कुछ बात
हिजाब में सदा रहती मगर दिल-ओ–दिलदार |
गए विदेश को’ महबूब छोड़कर मुझको
ख़याल में बसे’ चारो पहर दिल-ओ-दिलदार |
कभी नहीं सके’ हम भूल, वर्ष कई बीते
शरीर मेरा’ उसी का जिगर दिल-ओ-दिलदार |
सनम मेरे है’ निराला, अनन्य दुनिया में
जवाहरों में’ अनूठा, गुहर दिल-ओ-दिलदार |
विरह के’ शोक में. डूबी है’ प्रेयसी ‘काली’
उसे नहीं पता’ कुछ, वज्द बेखबर दिलो दिलदार |
शब्दार्थ : नसीम = मृदुल हवा ; वज्द = आत्म विस्मृत
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सादर आभार आ सलीम जी
आद मुहम्मद आरिफ जी ,आदाब हौसला अफजाई के लिए थे दिल से शुक्रिया , सादर
आदरणीय सलीम रज़ा रेवा साहिब ,आदाब हौसला अफजाई केलिए सादर आभार | आपने जो बहर का खंड बताया है वह मेरे लिए नया है | मेरे पास जो बहरों की लिस्ट है उसमे यह नहीं है | मेरे पास १२१२ ११२२ १२१२ २२/२२१ था | अगर इसको १२१२१ १२२१ २१२ २२/२२१ करे तो क्यों करे या रचना में किस प्रकार का अंतर होगा ? क्रपया थोड़ा विस्तार से बताइए | सादर
आदरणीय काली प्रसाद जी ,
वाह. क्या खूब ग़ज़ल हुई है, रदीफ़ की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। बहुत बहुत मुबारक़बाद।
बहर का खंड आपने ग़लत अंकित किया है,,,, यूँ कर लें
१२१२१ // १२२१ //२१२ // २२
आदरणीय शेख साहजाद उस्मानी जी ,आदाब , हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आपका
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