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ग़ज़ल -कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार

काफिया :अर ; रदीफ़ :दिल –ओ- दिलदार

बहर : १२१२  ११२२  १२१२  २२(१ )

कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार

जिसे तलाशती’ मेरी नज़र दिल-ओ-दिलदार |

हवा के’ झोंके’ ज्यों’ आते सदा सनम मेरे  

नसीम शोख व महका मुखर दिल-ओ-दिलदार |

सूना उसे कई’ गोष्टी में’, फिर भी’ प्यासा मन

अज़ीज़ है वही आवाज़ हर दिल-ओ-दिलदार |

कभी हुई न समागम, कभी नहीं कुछ बात

हिजाब में सदा रहती मगर दिल-ओ–दिलदार |

गए विदेश को’ महबूब छोड़कर मुझको

ख़याल में बसे’ चारो पहर दिल-ओ-दिलदार |

कभी नहीं सके’ हम भूल, वर्ष कई बीते

शरीर मेरा’ उसी का जिगर दिल-ओ-दिलदार |

सनम मेरे है’ निराला, अनन्य दुनिया में

जवाहरों में’ अनूठा, गुहर दिल-ओ-दिलदार |

विरह के’ शोक में. डूबी है’ प्रेयसी ‘काली’

उसे नहीं पता’ कुछ, वज्द बेखबर दिलो दिलदार |

शब्दार्थ : नसीम = मृदुल हवा ; वज्द = आत्म विस्मृत

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 17, 2017 at 9:54am

सादर आभार आ सलीम जी 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 10:24am
आप सही हैं. सादर
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 15, 2017 at 10:12am

आद मुहम्मद आरिफ जी ,आदाब  हौसला अफजाई के लिए थे दिल से शुक्रिया , सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 15, 2017 at 10:10am

आदरणीय सलीम रज़ा रेवा साहिब ,आदाब हौसला अफजाई केलिए सादर आभार | आपने जो बहर का खंड बताया है वह मेरे लिए नया है | मेरे पास जो बहरों की लिस्ट है उसमे यह नहीं है | मेरे पास १२१२  ११२२  १२१२  २२/२२१  था | अगर इसको १२१२१  १२२१  २१२   २२/२२१  करे तो क्यों करे या रचना में किस प्रकार का अंतर होगा ? क्रपया थोड़ा विस्तार से बताइए | सादर

Comment by Mohammed Arif on October 15, 2017 at 7:39am
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब, बहुत ही ख़ूबसूरत अहसासों का चमन ग़ज़ल बन के खिल गया । आदरणीय सलीम रज़ा साहब की बात पर गौर करेंं ।दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 14, 2017 at 9:07pm

आदरणीय काली प्रसाद जी ,
वाह. क्या खूब ग़ज़ल हुई है, रदीफ़ की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। बहुत बहुत मुबारक़बाद।
बहर का खंड आपने ग़लत अंकित किया है,,,, यूँ कर लें
१२१२१ // १२२१ //२१२ // २२

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 14, 2017 at 8:16pm

आदरणीय शेख साहजाद उस्मानी जी  ,आदाब , हौसला अफजाई के लिए  तहे दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2017 at 7:34pm
बढ़िया रदीफ़ और काफ़ियों के साथ दिलचस्प भावपूर्ण ग़ज़ल। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब कालीप्रसाद मण्डल साहब।

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