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सटीक बात की’, आक्षेप बाँधनू क्या है
ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?
नया ज़माना’ नया है तमाम पैराहन
अगर पहन लिया’ वो वस्त्र, फ़ालतू क्या है |
हसीन मानता’ हूँ मैं उसे, नहीं शोले
नजाकतें जहाँ’ है इश्क, तुन्दखू क्या है |
किया करार बहुत आम से चुनावों में
वजीर बनके’ कही रहबरी, कि तू क्या है ?
हो’ वुध्दिमान मिला राज, अब करो कुछ भी
उलट पलट करो’ खुद आप, गुफ्तगू क्या है |
ये’ कर्ण फूल, गले हार, हाथ में कंगन
पहन लिया सभी’ कुछ, और आरजू क्या है ?
जला जो’ आग से’ कश्मीर, भष्म में है क्या
वो’ खंडहर में’ बची लाश जुस्तजू क्या है ?
सभी को’ है पता’ मंत्री बना अभी “काली”
नहीं तो’ देश में’ उसकी भी’ आबरू क्या है |
शब्दार्थ :-
बाँधनू – मन गढ़ंत , खरसान –तेज , बू –गंध
तुन्दखू-गुस्सैल;तेज मिज़ाज़, जुस्तजू –खोज, गवेषणा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत अच्छी कोशिश हुई है आदरणीय बहुत बहुत बधाई
इसे थोड़ा वक़्त और देंगे तो और अच्छी हो जायेगी
वो’ खंडहर में’ बची लाश की’ जुस्तजू क्या है ?---इसकी बह्र भी ठीक करें ये मिसरा सुधार चाहता है
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय | बधाई स्वीकारें |
आदरणीय राज नवादवी ,आदाब, कुछ सीखने के लिए मैंने ग़ालिब की जमीन को चुना | कोशिश कर रहा हूँ विधा को समझने की |आदरणीय समर कबीर साहब मेहरबान हैं , मेरी गलती को सुधार देते है | आप सबका आभारी हूँ | विनम्र कोशिश पर हौसला अफजाई करते है | आशा है आगे भी करते रहेंगे | आदाब
आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहिब ,आदाब , हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया | आपकी सलाह पर अमल करने की कोशिश करूंगा | आदाब
वाह भाई वाह जनाब काली प्रसाद जी, आपने ग़ालिब की ज़मीन पर एक अत्यंत नये अंदाज़ में ग़ज़ल लिखकर सुखद रूप से विस्मित किया है. बधाई हो. ग़ज़ल के शिल्प एवं अन्य तकनीकी विषय पर सुधिजन आगे बतायेंगे. सादर
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