For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद

२१२२  ११२२  ११२२  २२(१)/ ११२(१)  ११२२

 

रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद

रौशनी हीन अलग चाँद दिखा तेरे बाद |

जीस्त  में कुछ नया’ बदलाव हुआ तेरे बाद

मैं नहीं जानता’ क्यों दुनिया’ खफा तेरे बाद |

हरिक त्यौहार में’ आनन्द मिला तेरे साथ

जिंदगी से हुए’ सब मोह जुदा तेरे बाद |

रात छोटी हो’ गयी और बहुत लम्बा दिन

अब तो’ जीना हो’ गई एक सज़ा तेरे बाद |

साथ आई थीं’ वो’ आपत्तियाँ’, तुझको ले’ गयी

नहीं’ अब तक टली’ वो बलवा’ बला तेरे बाद |

इश्क में मस्त थे’ हम जिंदगी’ में साथ सदा

अब मुहब्बत से’ भी’ दिलगीर हुआ तेरे बाद |

बेखुदी में था’सदा तेरे’ मुहब्बत-मय में 

साकिया से भी’ मे’रे ध्यान हटा तेरे बाद |

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 8, 2017 at 1:26pm

इस कोशिश के लिए धन्यवाद आदरणीय कालीपद जी. 

नया जैसे शब्द का या को गिराना उचित नहीं है. और बहर को साधने में गेयता भी बनी रहे इसका ध्यान रखें तो शेर और प्रभावी दिखेंगे. 

शुभ-शुभ

Comment by Samar kabeer on October 5, 2017 at 10:20pm
आप 'ग़ालिब'की किस ग़ज़ल के बारे में कह रहे हैं जनाब ?
इस ऐब को 'हर्फ़-ए-शिकस्त-ए-नारवा'कहते हैं ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 5, 2017 at 10:10pm

आ समर कबीर साहिब , आदाब ,आपके निर्देश अनुसार लास्ट रचना में सुधार  कर दिया है | गालिब  के गजलों में मैंने पाया  कि उन्होंने शिकस्ता नारवा दोष को कोई महत्व नही दिया है | दरअसल इसे दोष मानने से अभिव्यक्ति और भाव सम्प्रेषण में बाधा उत्पन होती है | शायद इसी वजह उन्होंने इसका नज़रंदाज़ लिया होगा या उस वक्त इसको दोष माना नहीं जाता होगा जैसे दाग के पहले शुतुर्गुरबा दोष को नहीं मानते थे | सादर 

Comment by Samar kabeer on October 5, 2017 at 12:29pm
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service