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तन-बदन सब लाल पीला और काला हो गया


बह्र:-2122-2122-2122-212

तन-बदन सब लाल पीला और काला हो गया 

"ये ख़बर ज्यूँ ही मिली कि तू पराया हो गया

धुंध छा जाती न आँखें रोक पाती अश्क अब।
तेरे बिन जीवन यूँ मेरा टूटी माला हो गया।।

कैसे खुद को मैं बचाता प्यार का है रंग चटख।
प्रेम के रंग से लिपट जब ईश ग्वाला हो गया।।

कुछ बताया अश्क ने यूँ अपनी इस तक़दीर पर।
जब से प्याली में वो टपका तब से हाला हो गया।।

ठोकरें बदली मुक़द्दर, गन्दगी मन जब हटी।
स्नेह की बरखा हुई तब मैं नहाया हो गया।।

वक्त की ज़ुल्मी हवाओं से उलझ कर आजकल।
सच कहूं अपना मुक़द्दर खोया पाया हो गया ।।

रूठ कर जाना, न आना, भूल जाना बे वजह।
था यही हिस्सा हमारा और आला हो गया।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Harash Mahajan on March 15, 2018 at 6:33pm

आ० आमोद श्रीवास्तव जी बहुत ही बेहतरीन कोशिश आपकी...बहुत ही उम्दा भाव पक्ष |

"वक्त की ज़ुल्मी हवाओं से उलझ कर आजकल।
सच कहूं अपना मुक़द्दर खोया पाया हो गया ।।"...वाह क्या बात है |

पर मतले के ऊला में जो आपने शब्द "जीस्त" इस्तेमाल किया है वो स्त्रिलिंग  है |
आपने उसको पुल्लिंग लेकर इस्तेमाल किया है | बाकी गुनिजन ही ज्यादा बता पायेंगे |

इस अच्छी ग़ज़ल के लिए आपकी बधाई |

सादर |

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