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ईट -भट्टे के मजदूर

वे इटे थापते है
बाल-बच्चो सहित
वर्षा ने कहर बरपाया
पानी ...
सर्वत्र पानी
वे वेरोजगार है आज से ॥

इधर सरकार का बेरोजगारी
दूर करने की योजना
मनरेगा भी बंद हो गया
२८ जून के बाद
हर साल की तरह ॥

मगर उनके बच्चो का
सुनहला दिन लौट आया है
केकड़ा पकड़ना
और ....दिन भर
खेतों में /तालाबों में
मछली मारना ॥

शाम को
माँ को मछली देना
और रात के खाने में
मछली -चावल का इंतज़ार॥


उन बच्चों को नहीं पता
उसकी माँ
चावल कहां से लाएगी ॥

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 7, 2010 at 9:00pm
उन बच्चों को नहीं पता
उसकी माँ
चावल कहां से लाएगी ॥

बहुत ही मार्मिक बर्णन किया है बब्बन भैया आपने इस कविता मे, यह कविता ज़मीन से जुड़ीएक सत्य है, बहुत खूब ,

कृपया ध्यान दे...

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