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हमें ख़ुशियाँ नहीं क्यों ग़म मिला है
नहीं माँगा वही हरदम मिला है

अधूरी चाहतें लेकर जिये हैं
हमेशा चाहतोंसे कम मिला है

नहीं फ़रियाद बस सजदे किये हैं
कहो जन्नतमें’ क्यों मातम मिला है

सफ़र कांटोभरा क्या कम नहीं था
हमें बेज़ार क्यों मौसम मिला है

मनानेके सभी फ़न बेअसर हैं
बड़ा ही संगदिल हमदम मिला है


१२२२,१२२२,१२२ “अम” मिला है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Samar kabeer on August 3, 2018 at 11:31am

जनाब किशोर कांत जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

यूँ तो पूरी ग़ज़ल में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, और:-

/नहीं फ़रियाद बस सजदे किये हैं//

इस मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर है, देखियेगा ।

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