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श्वेत धवल सी ओ झरना
जीवन मेरा सहज कर देना
कैसे तुम वेगमय हो
इसका राज मुझे बतला देना .... ॥

सब कहते है ऊपर जाओ
पर तुम नीचे क्यों आती हो
क्यों अपने साथ -साथ
पथ्थरो पर कहर बरपाती हो ॥

जीवों के तुम तृप्तिदायक
माना , संगीत तुम्हारा है पायल
पर , अपने थपेड़ों से तुमने
वृक्षों को क्यों कर दिया घायल ॥

भर बरसात उछलती हो तुम
पक्षियो जैसी साल भर नहीं कूकती
गर्मियों में जब हलक हो आतुर
उसी समय तुम क्यों सूखती ॥

एक बात मानोगे मेरी
अपनी उर्जा बचा कर रखना
शक्तिहीन हो गए है जो
उनको तुम संभालकर रखना ॥

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Comment

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Comment by asha pandey ojha on July 18, 2010 at 1:57pm
waah Baban bhiya bahut khoob likhee aapne yah rachna dil khush ho gya
एक बात मानोगे मेरी
अपनी उर्जा बचा कर रखना
शक्तिहीन हो गए है जो
उनको तुम संभालकर रखना bahut khoob surat panktiyan

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 11, 2010 at 6:38pm
बबन भैया सुन्दर छायावाद.. परन्तु कही लगता है आप नदी की बात कर रहे है और कही लगता है झरने की. फिर भी एक अच्छी कृति .

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 8:09pm
एक बात मानोगे मेरी
अपनी उर्जा बचा कर रखना
शक्तिहीन हो गए है जो
उनको तुम संभालकर रखना ॥

अच्छी रचना है बब्बन भईया, प्रकृति के सौंदर्य का बर्णन करती हुई यह कविता आँखों के सामने झरने को गिरते हुए महसूस कराती है, बहुत बढ़िया,

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