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ये रातें जल रही हैं,

वो बातें खल रही हैं
लगा दी ठेस तुमने दिल के अंदर
नसें अंगार बनकर जल रही हैं

मौसम सर्द है,

जीवन में लेकिन
लगी है आग,

तन मन जल रहा है।
जिसे उम्मीद से बढ़कर था माना
वही घाती बना है छल रहा है।

तुम्हारी ठोकरों के बीच आकर
बहुत टूटा हुआ हूँ, लुट गया हूँ
तेरा सम्मान खोकर, स्नेह खोकर
स्वयं ही बुझ चुका हूँ, घुट गया हूँ।

यहाँ हालात क्या से क्या हुआ है
नहीं कुछ सूझता निरुपाय हूँ मैं
कहाँ आकर फसा हूँ दलदलों में
विवश लाचार हूँ असहाय हूँ मैं।

इधर दुनिया के ताने मेहनें है
उधर दुनिया मेरी बर्बाद सी है
छिपाऊँ किस तरह से भेद सारे
बनी यह जिंदगी संवाद सी है।

वहीं सूखे से बूढ़े वृक्ष नीचे
सघन छाया में पलना चाहता था
कि जिन उँगली को थामे चल रहा था
उन्हीं के साथ चलना चाहता था।

सभी कुछ रुक गया है जिंदगी में
बची कुछ साँस हैं, कब तक चलेंगीं?
चला तो जाऊँगा मैं छोड़ सब कुछ
मगर यादें मेरी तुझको खलेंगीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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