जो डूब चुका है कंठ तक झूठ के सवालों में
उससे ही हम न्याय की उम्मीद लगा बैठे ।
देश आज फंस चुका है गद्दारों के हाथों में
हमारी आपसी मतभेद का फाइदा उठा बैठे ।
हमसे मांगते मंदिर का सबूत न्यायालय में
भारत में भी तालिबानी फरमान सुना बैठे ।
राम के मंदिर के लिए लड़ रहे न्यायालय में
सुबह की रोशनी में अपना अस्तित्व देख बैठे ।
आज न्यायालय ही खड़ा हो गया सवालों में
जो संविधान को अलग रख निर्णय ले बैठे ।
न्यायाधीस को शर्म नहीं निर्णय सुनने में
रविदासजी का मंदिर आनन फानन तोड़ बैठे ।
अक्षरधाम मंदिर दिखा नहीं उस जमाने में
खुद तो सड़क पर मंदिर, मस्जिद बना बैठे ।
संत रविदास के मंदिर को ल दिया सवालों में
बेशर्म हिन्दू होकर भी हिन्दू मंदिर गिरा बैठे ।
प्रजातन्त्र में देर नहीं सत्ता विहीन होने में
चुनाव में जनता तुम्हारी औकात न बता बैठे ।
अब भी वक्त है संभल जाओ इसी जमाने में
वरना पता नहीं प्यादा कब वजीर बन बैठे ॥
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