For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222     1222      122

जमाने भर की बातें सोचता हूँ
मगर मैं खुद में अब कितना बचा हूँ

सुहानी भोर किस्मत में नहीं है
भला मैं रात भर क्यों जागता हूँ

मुहब्बत एक हरजाई का घर है
मैं उस घर से निकाला जा चुका हूँ

तरफदारी से तेरी क्या है हासिल
मैं अपनों में अकेला पड़ गया हूँ

गुजारी जिंदगी सारी जहाँ पर
मैं अब उस शहर में बिल्कुल नया हूँ

तुझे आवाज देने का सबब है
मैं अब तन्हाई से डरने लगा हूँ

तरक्की कर रही है सारी दुनिया
मैं अपनी हार पर पछता रहा हूँ

किसी की मद भरी आंखों के फन से
कदम रखता हूं गिरता कांपता हूँ

शिकारी आ गए हैं देख सारे
गजाला की सदा में चीखता हूँ

मुझे कितनी समझ है जिंदगी की
मैं अपने शेर पढ़कर सोचता हूँ

जमाने को शिकायत हो गई है
मैं बच्चों को फरिश्ता कह रहा हूँ

तुम्हारे खत के टुकड़े हाथ में हैं
मैं बीते कल को फिर से जोड़ता हूँ

नहीं है इस ग़ज़ल का छोर कोई
मुसलसल शेर कितने कह गया हूं

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 469

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on October 16, 2019 at 7:19pm

इस जानकारी के लिए बेहद शुक्रिया सर

मैं इस शेर पर पुनः विचार करता हूँ

सादर

Comment by Samar kabeer on October 16, 2019 at 7:13pm

"ग़ज़ाला" का अर्थ है हिरन का मादा बच्चा ।

और "ग़ज़ाल" का अर्थ है हिरन का बच्चा ।

Comment by मनोज अहसास on October 14, 2019 at 11:29pm

आदरणीय समर कबीर साहब,नमस्कार

सर मैंने इस शब्द को हिरण के बच्चे के अर्थ में प्रयोग किया है बाकी आप मार्गदर्शन देने की कृपा करें

हार्दिक आभार

सादर

Comment by Samar kabeer on October 14, 2019 at 2:48pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'शिकारी आ गए हैं देख सारे 
गजाला की सदा में चीखता हूँ'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है, 'गजाला' का अर्थ क्या है?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service