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मुझे भी हक है
कुछ भी करूँ.
दूँ सबको दुख-दर्द
या करुँ किसी का कत्ल.
सबको मारूँ,
लाशों की ढेर पर नाचूँ,
देखकर मेरा मृत्युताण्डव,
काँप जाएँ,भाग जाएँ,
मौत का खेल खेलनेवाले दानव.
मुझे भी हक है
दूँ सबको गाली,
हो जाएँ
अपशब्द की पुस्तकें खाली.
ना देखूँ मैं,
माँ,बहन,भाई,
लगूँ मैं कसाई.
देखकर मेरा ऐसा रंग,
मर जाए मानवता,भाईचारा
और प्रेम का तन.
जब मैं ऐसा हो जाऊँगा,
थर्रा जाएँगे,
अपशब्द बोलने वाले,
इज्जत से खेलने वाले.
मूक हो जाएँगे,
बिन सोचे समझे
जुबान डुलाने वाले.
मुझे भी हक है
कुछ भी पिऊँ,
व्हिस्की पिऊँ,
इतना पिऊँ कि
मुझे देखकर,बिन पिए,
हो जाएँ मदहोश,
शराब पीने वाले.
बंद हो जाएँ
फैक्ट्रियाँ शराब की,
रोएँ,शराब बनाने वाले.
मुझे भी हक है
कुछ भी गाऊँ,
माँ,बहन,के
सामने गाऊँ,
सेक्सी,सेक्सी,सेक्सी
ऐसा गाऊँ,
इतना गाऊँ कि रुँध जाए,
ऐसा गाने वालों का कंठ,
ना कोई कहलाना चाहे लंठ.
मुझे भी हक है
डांस करूँ,मौजमस्ती करूँ,
सुरा को मुँह में लगा के,
सुंदरी को बाहों में भरूँ.
दुनिया के सामने करूँ ऐसी
अश्लील हरकत,ताकि
ये देखकर,
उनकी रुहें भी काँप जाएँ
जो ऐसा करते हैं,
कुछ भी कहते हैं...
किसी को भी नहीं है हक.
कि वह जो चाहे वही करे.

-प्रभाकर पाण्डेय

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Comment by Prabhakar Pandey on July 13, 2010 at 9:29am
सादर धन्यवाद, भाई गणेशजी।।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 12, 2010 at 11:57pm
प्रभाकर भईया ये आपका हक़ की लिस्ट देखकर तो मैं डर गया हू कही आपको ये हक मिल गया तो क्या होगा , भाई हम लोग तो विरोध शुरू कर देंगे ,
बहुत ही सुंदर , सजीव, एवं व्यंगात्मक अभिव्यक्ति है प्रभाकर भईया , बधाई इस खुबसूरत रचना पर,
Comment by Prabhakar Pandey on July 12, 2010 at 2:27pm
धन्यवाद भाई रविजी ।। ताहे दिल से धन्यवाद।।
Comment by Rash Bihari Ravi on July 12, 2010 at 2:22pm
bahut badhia किसी को भी नहीं है हक.
कि वह जो चाहे वही करे.

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