मेरी आंखों में बीते कल के सरमाये की छाया है।
तुम्हें ख्वाबों में मैंने खत नया फिर लिखके भेजा है।।
(1)
लिखा है प्यार तुमको ढेर सारा सबसे पहले ही,
तुम्हारी खैरियत पूछी लिखी बातें मोहब्बत की।
फिर उसके बाद तुमको दिल का अपने हाल बतलाया,
लिखा है बिन तुम्हारे जिंदगी का दर्द गहराया।
बता सकता नहीं मैं जाने जां हालत तुम्हें अपनी,
ये जीवन यूं है जैसे पेड़ की लटकी हुई टहनी।
वो रिश्ते जिनकी खातिर तुमको खुद से दूर कर डाला,
उन्हीं सबने मेरे सीने का दर्पण चूर कर डाला।
पुराने वक्त में खत को भी पहुंचाने के खतरे थे,
तुम्हारे खत मगर फिर भी सदा मुझ तक पहुंचते थे।
आज के वक्त में तो गुफ्तगू के लाख जरिए हैं,
बता पैगाम तेरे किसलिए आने से डरते हैं।
नहीं है रीत तुममें क्या वो अब पावन मुहब्बत की,
मुझे खत लिखकर भेजो बात रह जाए शराफत की ।
मगर लिखना वो ही जो के सदा अधिकार मेरा है।।
(2)
उसी सपने में मुझ पर फिर बड़ी जुंबिश का साया था,
कोई कासिद कहीं से खत तुम्हारा लेके आया था।
तू अच्छे वक्त पर आया है क़ासिद लेके खत उनका,
जरा सी देर हो जाती तो मेरा दम निकल जाता।
सुना पढ़कर लिखा है क्या मेरे रूठे मसीहा ने,
क्या अपनी धड़कनों का हाल भेजा आबगीना ने।
दुआ भेजी है या भेजा है कोई मशवरा बेहतर,
क्या उनकी उंगलियों में है वही लज्जत बता पढ़कर।
सलाम ओ शुक्रिया जो भी लिखा है मुझको बतला दे,
तकल्लुफ का भी कोई लफ्ज़ है क्या इतना समझा दे।
मुझे खामोशी से तेरी बुरा महसूस होता है,
अरे! ये क्या कि तू तो हिचकियां के साथ रोता है।
ला मुझको दे मैं खुद पढ़ लूं तेरा चाहत से क्या नाता,
तू या तो नासमझ है या तुझे पढ़ना नहीं आता।
मेरे महबूब की बातें भला तू कैसे समझेगा,
जो पढ़ लेगा तो फिर आहें भरेगा और तड़पेगा।
मेरे हाथों में दे दे कर रहा क्यों वक्त जाया है।।
(3)
लिखा था उसने अपने मुल्क के हालात बिगड़े हैं,
वही छोटे बड़े कद हैं वही मजहब के झगड़े हैं।
वो जिनके चलते हम एक दूसरे के हो नहीं पाये,
अभी भी उतने ही लंबे हैं उस दीवार के साये।
मेरी इज्जत की खातिर पी लिया था जहर जो तुमने,
जो अब कोई नहीं करता किया बलिदान वो तुमने।
हवस के मारे जोड़े आज सब कुछ भूल जाते हैं,
बस अपने वास्ते मां-बाप का सीना जलाते हैं ।
यकीनन एक दिन मुझको फकत तुमसे मुहब्बत थी,
तुम्हारे हाथों में मेरी जमाने भर की दौलत थी।
मुहब्बत को अक़ीदे से शराफत से निभाया था,
ये रूहों का मिलन है तुमने ही तो ये सिखाया था।
मुझे समझाने वाले आज फिर यह डगमगाहट क्यों,
तेरे खत में पढ़ी है मैंने बेताबी की आहट क्यों ।
कभी जीवन में फिर से गर हमारा सामना हो तो,
मेरी चाहत में तुमने क्या कमाया बस दिखाना वो।
मैंने भी सपनों में तुमको बहुत बेचैन देखा है।।
(4)
लिखा था आगे अब तुम वक्त की बदली नज़र देखो,
क्या चाहत में वही शिद्दत है खुद से पूछ कर देखो।
मैं खत में फूल भेजूं तो अब उनका अर्थ क्या बाकी,
न सीने में कोई हलचल न यादें खुशनुमा बाकी।
अब आंगन में है फूलों से महकते चांद से बच्चे,
क्यों इनके कल पर भारी हो हमारे ख्वाब अधकचरे।
मना सकते हो खुद को तो मना लो बात ये कहकर,
हमें वो सब बचाना है बनाया है जो सबसे सहकर।
कोई भी स्वार्थ कर्तव्य से भारी हो नहीं सकता,
मैं समझाती हूं तुमको जो तुम्हें मुझ को था समझाना।
मिला है जो उसे स्वीकार कर आगे बढ़े चलना,
तुम्हारी चेतना की साक्षी है प्रेरणा रचना।
पराई हो गई हूँ मैं यकीनन कल तुम्हारी थी,
वहाँ अब फर्ज है केवल जहाँ केवल खुमारी थी।
नए रिश्तो में अपनी जिंदगी को रंग लिया मैंने,
रहो खुश साथ उनके जिनको जीवन दे दिया तुमने।
पढ़ी बातें सभी उसकी तो मानस थरथराया है।।
(5)
जो सपना टूटा तो फिर मैंने कितनी देर तक सोचा,
भले ही ख्वाब का खत यकीनन था बहुत सच्चा।
मुझे अब खुद के मायाजाल से आगे निकलना है,
मेरे महबूब ने जो भी कहा है उस पे चलना है।
जो उसने त्याग का बलिदान का रास्ता बताया था,
वही खत के बहाने कल मेरे सपने में आया था।
तेरी यादों के बिन जीवन बड़ा मुश्किल है ये प्रिया,
मुझे मिल जाए इस असमंजस में कोई कर्मफल गीता।
सुधा बिंदु जगा दे मुझ में फिर से मेरी पावनता,
नया उद्देश्य हासिल कर सकूं मैं अपने जीवन का।
धड़कनें दिल की लेकिन खुशनुमा होने से डरती है,
तड़पती हैं सिसकती हैं मचलकर आहे भरती हैं।
निगाहों को बड़े दिन से तेरे दर्शन की चाहत है,
मैं सब कुछ सोच कर कहता हूं कि तुझसे मुहब्बत है।
है इतनी इंतजा एक बार मेरे रूबरू आओ,
जो खत में था लिखा वो अपने होठों से सुना जाओ।
ये जीवन जितना तेरा है सिर्फ उतना ही मेरा है।।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहब इस लंबी नजम पर किसी का ध्यान नहीं गया लेकिन आपने अपने दो शब्द कहकर मुझे आश्वस्त कर दिया कि मैंने थोड़ा बहुत ठीक काम कर दिया है आशीर्वाद बनाए रखिए सादर आभार
जनाब मनोज अहसास जी आदाब,अच्छी नज़्म लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
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