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दशहरा मनाते हर साल हम, 

पुतला जलाते सदियों बीतीं

 कहाँ मरा है रावण अब भी ?

कहा है सुरक्षित अब भी सीता ?.

.

 रंग गुलाल उड़ते थे कभी

आती थी जब जब भी होली

भर रहा है बच्चा वच्चा

बम बारूद से अपनी झोली 

.

खुशियों के दीप जलते थे

जगमग करती थी दिवाली

लपटें उठती हैं शोलों से

बस्ती जलती है अब खली

.

एकता का पाठ भूले हम

भूल गए मानवता के नारे
काम, क्रोध, लोभ की आग में
सुख शांति सब जल गए सारे.
.

(प्रवीण सागर) -9958521821,9311788846)

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 13, 2012 at 3:41pm

रंग गुलाल उड़ते थे कभी

आती थी जब जब भी होली

भर रहा है बच्चा वच्चा

बम बारूद से अपनी झोली 

बहुत सुन्दर कहा आप ने ..आइये सब मिल बच्चों को प्यार और संस्कार दें 

भ्रमर ५ 

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