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ग़ज़ल


भारत  माता  माँग  रही  है - इस  नीति  से  पूर  विधान |
जिसमें हों सब  भाई बराबर, जाति - धर्मं से दूर, समान ||

जिसमें किसी की हो न उपेक्षा, मिले बराबर का अधिकार,
सब  हों  माँ  के एक से बेटे- अधिकारी, मजदूर, किसान ||

तंग  दिलों  से  बाहर  आ  कर, आओ,  रचें हम वह संसार.
जिसमें  सुख की हो सुगंध पर हों न दुखों के क्रूर निशान ||

बात   जोहती   है  भारत माँ , बेटों   के  इस   न्याय   का ,
जिसकी  हो  सर्वत्र  प्रशंसा, दूर - दूर  तक जिसका गान ||

नीति  बदल  दो  वह  सारी  जो करे किसी पर अत्याचार,
वर्ना, सुनो  क्रांति  का  दस्तक, नहीं रहा जो दूर सिमान ||


                      रचनाकार - अभय दीपराज

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Comment by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 25, 2010 at 9:12pm
प्रिय मित्र गणेश जी, रचनाओं को पढ़ने सराहना द्वारा रचनाधार्मिता को प्रोत्साहित करने की आपकी मानसिकता को मेरी तरफ से धन्याबाद | मैं अन्य रचनाकारों की रचना पर अपनी टिप्पणी इन दिनों समय के अभाव में नहीं दे पा रहा हूँ किंतु निस्संदेह मैं ओपन बुक ओंन लाइन मंच और इसके सभी रचनाकारों का हृदय से आभारी हूँ| आप सब का - अभय दीपराज

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2010 at 8:34pm
देश भक्ति से ओत प्रोत यह ग़ज़ल बेहद खुबसूरत है, एक सार्थक सपना आपने देखा है, काश ऐसा ही हो , बेहतरीन अभिव्यक्ति पर बधाई, उम्मीद है कि आगे भी आपकी ग़ज़ल और अन्य रचनाओं पर भी टिप्पणियाँ पढने को मिलेगी |

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