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जब अपने वश मे अहंकार कर लिया मैने
तब अपनी हार को स्वीकार कर लिया मैने

उसे घमंड कि उसने मुझे मिटा डाला
मुझे ये गर्व कि एक वार कर लिया मैने

तुम्हे भी याद रहे मेरा सुर्खरु होना
लो अपने रक्त से श्रृगार कर लिया मैने

जो मेरे मित्र ने भेजा था प्यार से तोहफा
उसी कफ़न हि को दस्तार कर लिया मैने

बड़े ही प्रेम से जीवन के हर मरुस्थल को
तुम्हारा नाम लिया पार कर लिया मैने

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Comment by Babita Gupta on May 19, 2010 at 12:24pm
bahut badhiya hai, tarif key liyey shabd nahi hai, kafi achhi ghazal hai,thanks
Comment by fauzan on May 17, 2010 at 11:55pm
Yograj Bhai
Bahut mohabbat hai aapki..Shukriya
Comment by fauzan on May 17, 2010 at 11:53pm
Pritam bhai ,Kanchan aur Asha ji
Aap logon ko bahut bahut dhanyawad.
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 16, 2010 at 4:33pm
जब अपने वश मे अहंकार कर लिया मैने
तब अपनी हार को स्वीकार कर लिया मैने
bilkul sahi likha hai aapne fauzan bhai.....jo ahankar ko apne bas me kar liya samjho wo haar ko bhi sweekar kar liya....
bahut hi badhiya gazal likha hai aapne ye.....
Comment by Kanchan Pandey on May 16, 2010 at 3:13pm
waah waah , bahut hi badhiya Gazal hai, Asha didi sahi kah rahi hai, aapkey tarif mey jo bhi likhana chaahti hu wo shabd ees rachna key aagey chhota pad jaa rahey hai, bahut umdda gazal hai,
Comment by asha pandey ojha on May 16, 2010 at 2:20pm
Waah ..kamal ...gzab ...bahut hee umda ,,gzal ..Ek sher yaad aa rha hai ..
tareef me jinkee shbd hee kho jayen
kaise karen unkee tareef aap hee btayen....shbd khoo gaye ..

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 16, 2010 at 12:01pm
इक तो ये दिलकश अंदाज़-ए-बयान - ऊपर से गंगा जमनी शीरीं ज़ुबान ! कुर्बान - कुर्बान - कुर्बान - कुर्बान भाई जान ! ये खाकसार आपकी शायरी पर कुर्बान ! खुदारा भाभी जी से कहें की हर रोज़ आपकी नजर उतारा करें !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 15, 2010 at 8:32am
बड़े ही प्रेम से जीवन के हर मरुस्थल को
तुम्हारा नाम लिया पार कर लिया मैने

सर जी ग़जब का लिखा है आपने, जबरदस्त ग़ज़ल की प्रस्तुतु है ये , एक एक अल्फाज़ अर्थपूर्ण है, बहुत बढ़िया ,
Comment by Admin on May 14, 2010 at 11:50pm
जब अपने वश मे अहंकार कर लिया मैने
तब अपनी हार को स्वीकार कर लिया मैने

जो मेरे मित्र ने भेजा था प्यार से तोहफा
उसी कफ़न हि को दस्तार कर लिया मैने

आदरणीय फैजान साहब, प्रणाम, सबसे पहले तो मै आपके पहले ब्लॉग का ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर स्वागत करता हू, आपने बहुत ही उम्द्दा ग़ज़ल लिखा है, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी का मै तहे दिल से शुक्रिया करता हू की उन्होने ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार मे आप जैसे बेहतरीन फनकार के रूप मे एक अनमोल हिरा दिया है, आपके ग़ज़ल पोस्ट हनी से पहले योगराज जी ने आपकी उबूरे-कलम की काफी तारीफ किया था , जो बिलकुल सही निकला, बहुत ही सुंदर और ससक्त अभिव्यक्ति है ये गजल आपका, आगे भी आप की रचना का इन्तजार रहेगा, धन्यवाद,

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