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kya bachpan hota hai yar ab bachpan ki kimat samajh aati hai us waqt lagta tha ki jaldi se bara ho jaun to koi padhne ke liye nahi kahega khele aur ghumne ki puri aajadi hogi. result nikalne se 1 din pehle ye manata tha ki bhagwan is par kisi tarah pass kar do next class me man laga ke padhenge. kya ajib sab khel humlog khelte the

1. budhiya kabaddi
2. kabbadi
3. noon tha
4 Gilli danda
5. Goli
6. Lakri choo
7. cricket jisme wicket 9-10 bricks se bante the
8. hockey wo bhi hockey stick se nahi
9. footbal
10. badminton
11. chuachi
12. uttha baithi
13. nuka chippi
14. chor sipahi
15. vyapar, chess, carom (Indoor game)

or bhi bahut sare khel jiska naam hi nahi pata

school ka lunch pehli hi ghanti me class chalte waqt hi kar leta tha wo bhi first bench per hi baith kar. lunch ke waqt sadhu bhai( ek jhilli bhechne wala) ka jhillia kahta tha jitne paise ki kharidta tha usse jyada ke phau(taste karna) me hi kha jata tha..:) cricket khelne waqt saam ke time first inning me batting kar ke ghar bhag jaya karta tha or agar toss opposite party jita to ye kah ke nahi khelna ki ball to ab dikh hi nahi raha hai choro kya kheloge. jab middle school me padta tha tab phatak(Ek jagah ka naam hai sahibganj me) par ke safatu ka per hota tha wahan jaa ke safatu(A type of fruit) torta tha or use divider(Do sui wali compas) se nikal kar khata tha kuch white type ki chij nikalti thi jo mitthi hoti thi.
bahut kuch hai kehne ko phir sunaunga time mila to

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 10:46am
इन देसी खेलों कि अकस्मात मृत्यु की वजह से ही आज बचपन शब्द के अर्थ भी बदलते जा रहे हैं ! इन खेलों के माध्यम से आपस में प्यार और अपनत्व आता था बच्चों के दिल में, जबकि आधुनिक खेलों से प्रतिस्पर्धा की भावना ही उत्पन्न होती है ! येही प्रतिस्पर्धात्मक सोच समाज में एक दूसरे के बीच खायीं का काम कर रही है ! ये ही कारण है कि आज हम अपनी जड़ों और परमपरायों से बड़ी तेज़ी से विमुख होते जा रहे हैं !
Comment by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 2:47pm
ajit ji
goh lamaria , chikka , aur khel hain.
Comment by Kanchan Pandey on June 3, 2010 at 12:54pm
waah aajkal sabhi log bachpan ko yaad kar rahey hai, achha likhey hai,
Comment by Admin on June 2, 2010 at 1:53pm
आदरणीय अजीत जी प्रणाम, सबसे पहले मै ओपन बुक्स ऑनलाइन पर आपके पहले ब्लॉग का स्वागत करते है, बहुत ही अच्छी रचना है, बिलकुल बचपन के दिन याद आ गये, बहुत खूब, धन्यबाद है इस पोस्ट के लिये,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 1, 2010 at 11:32pm
वाह अजीत जी वाह आप तो बिल्कुल बचपन मेलौटा दिये है, बहुत बढ़िया , आगे आप के और ब्लॉग का इंतजार रहेगा, धन्यबाद
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 1, 2010 at 9:26pm
bahut sahi likha hai aapne ajit jee....ekdam bachpan ki yaad aa gayi....sach me kitne suhane din the naa wo bhi.....ab wo baat kahan ab to....jab bachpan ki baatein yaad aati hain to hasi bhi aati hai aur saath me rona bhi aata hai kyuki itne acche din chale gaye jo ab nahi aa sakte....
ek sheyar kahna chahunga ispar.....
jab chote the tab bade hone ki badi tamanna thi,,magar ab pata chala ki adhure ehsaas aur tute sapne se acchhe adhure homework aur tute khilone the......

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