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पुरानी औरत (कहानी)

शादी को ३ महीने हुए थेI सुबह करीब १०.३० बजे, चित्रा नहा धो कर बाहर निकली और एक प्याला गर्म चाय का ले कर अपना LP प्लेयर ओंन कर दिया I यह वह समय था जब वह एकांत में चाय के साथ कोई ग़ज़ल या गीत सुनती है I यह वक़्त किसी के साथ भी शेयर करना उसे पसंद ना था I ख़ास तौर पर, पति के साथ I उन दोनों के स्वभाव का अंतर इस वक़्त और मुखर हो कर उसे डसने लगता था I इसलिए उनके जाने के पश्चात वह फारिग हो, कुछ समय नितांत अपने लिए चुनती थी, और यह वही समय था I आँखें बंद किये मेंहदी हसन की आवाज़ उसके अंतर में पहुँच रही थी I चाय के घूँट के साथ मिल कर उनकी आवाज़ का सुकून घुलता जा रहा था शिराओं में.."गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले....."
फ़ोन की कर्कश घंटी ने उसे कठोर धरातल पर फिर लौटा दिया I उसने बढ़कर फ़ोन उठाया,
"हेल्लो .. कौन ?"
"आप कौन बोल रही हैं ?" एक औरत की आवाज़ थी I
"आपको किस से बात करनी है ?..मैं मिसेज़ माथुर हूँ "
"मिस्टर माथुर हैं क्या ? उनसे बात करनी है.." आवाज़ में झिझक स्पष्ट थी I
"वे ऑफिस गए हैं.."
"ओह.." (एक हताशा )
"आप कौन ? मैं मेसेज ले सकती हूँ उनके लिए "
"उनसे कहियेगा निशा का फोन आया था I एक्चुअली मेरे कुछ पैसे थे उनकी तरफ .."
"कैसे पैसे ? ( अब चित्रा के कान खड़े हो गए )
"जी बिज़नस डीलिंग थी एक , उसके पैसे थे"
"पर वह तो बिज़नस करते नहीं.. फिर ?"
"बस आप उन्हें बता दीजिये .. उन्हें पता है "
"ठीक है..बता दूंगी "
"और एक बात ...."
"जी कहिये ..."
"उनके पास मेरे कुछ लेटर्स हैं, वे मुझे वापिस कर दें "
"कैसे लेटर्स ?.. लव लेटर्स ?? "
कुछ क्षण की बेचैन चुप्पी के बाद,
'' जी "
"मुझे डर है कहीं मिसयूज न हो जाएँ.."
"डोंट वोर्री.. मिसयूज नहीं होंगे "
"पर प्लीज यदि वापिस लौटा दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.."
"वापिस का कह नहीं सकती पर मिसयूज न होने का आश्वासन दे सकती हूँ.. यदि मुझे मिले तो मैं खुद ही जला दूंगी , मुझ पर भरोसा कर सकती हैं "
"ओह.. थैंक यू .. बस यही चाहती थी "
फिर थोडा रुक कर.. "आप बहुत अच्छी हैं "
"मैं भी लड़की हूँ "..
कुछ क्षण चुप्पी ! शब्द जैसे तुल रहे थे शायद I फिर फ़ोन कट गया....
हवा में घुटन बढ गयी I ज़िक्र तो किया था विनोद ने इस लड़की का जब पहली बार विनोद से मिली थी I शादी से पहले एक रेस्टोरेंट में कॉफ़ी पीते हुए अपने वॉलेट से एक फोटो निकाल कर दिखाई थी उन्होंने, और कहा था,
"एक यह लड़की है.. जाने कब से पीछे पड़ी है.. मैं घास नहीं डालता इसे.. हो सकता है तुमसे आकर कुछ कहे, पर तुम इसकी बातों में ना आना.. मुझे पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है I" चित्रा मुस्कुरा दी थी I उसने यह भी ना पूछा, कि फिर उसकी तस्वीर क्यूँ लिए फिरते हो साथ साथ I इतनी दूर तक सोचा ही न था उसने I
एक बेचैन सा इंतज़ार पसर गया था कमरे में I विनोद के व्यक्तित्व का ऊपरी खोल उधड़ने लगा था I यह तो पता था की वे दोनों बहुत अलग अलग शक्सियत के हैं, पर माँ कहती थी कि बिलकुल अपने मन माफिक रिश्ते मिलते कहाँ हैं ! या तो इन्हें ढालना पड़ता है या फिर खुद ही ढल जाना पड़ता है I घडी की सुईयां सुस्त हो चली थीं I वह एकाएक उठ कर स्टडी रूम में चली गयी I उसने स्टडी रूम में रक्खे गत्ते के बंद पैकेट खोलने शुरू कर दिए I एक एक कर कई ख़त, और उन दोनों के इंटिमेट फोटो बाहर निकल कर विनोद के झूट की तस्दीक करने लगे I किसी लड़की की भावनाओं की आड़ में उसका शारीरिक शोषण ! एक लिज़ेलिज़े एहसास से भर गयी वो ! एक उबकाई सी आ गयी उसे I उसने वह सब फोटो और ख़त तुरंत निकाल कर आग में झोंक दिए I
शाम को चाय के बाद पति से ,
"आज किसी निशा का फ़ोन आया था "
"कौन निशा?"
विनोद का चौंकना स्वाभाविक था I चित्रा चुप रही, विनोद को सँभलने व समझने का वक़्त मिल गया I कुछ पल और चुप्पी छाई रही I अब तक विनय भी जान गया था कि मुकरना फिजूल है I
"अच्छा उसकी यह मजाल !! यहाँ तक पहुँच गयी वो !! " .वह अब तैश में आ गया था..
"कुछ पैसे व खतों का ज़िक्र कर रही थी I " चित्रा अब भी शांत थी.."कैसे ख़त ? और कौन से पैसे ?.. अरे वह दो कौड़ी की लड़की है ! उसकी बातों में ना आना ! घाट घाट का पानी पिया है उसने!"
विनोद की बेचैनी चरम सीमा पर थी I उत्तेजना से उसके मुह से थूक गिरने लगा I
चित्रा से चुप न रहा गया I
"मैंने उसके सब ख़त और फोटो जला दिए I " बहुत तठस्त भाव से बोली वह I
विनोद की सारी उत्तेजना पर ठंडा पानी पड गया था I
"अम्मम्.... "
वह बगलें झाँकने लगा I जाने क्यूँ चित्रा को तरस आ गया विनोद पर I उससे सहन नहीं हुआ तो वह उठकर चली गयी I पति पत्नी के रिश्ते की गरिमा भी तो बनाए रखनी थी I कुछ वक़्त दे दिया विनोद को खुद को समेटने का I अभी तो शुरुआत थी उनके दाम्पत्य जीवन की, अभी तो जाने कितने झटके झेलने होंगे आगे आगे I माँ सच कहती थी, यदि रिश्ते निभाना हो तो कभी कभी दूध में पड़ी मक्खी भी आँख मूंद निगलनी पडती है I शायद ऐसे ही चलते हों जीवन सब के ! क्या पता !!


एकाएक वह छः फुटा सुंदर कद्दावर जवान कितना बौना और भद्दा लगने लगा था उसे I निबाह तो कर लेगी उससे जीवन पर्यन्त ..पर.. इज्ज़त ??
आज कुछ कुछ समझ आ रहा था उसे कि माँ अलमारी में से बाबू जी की रक्खी ब्रांडी का घूँट 'कडवी दवा' कह कर क्यूँ भरती थी कभी कभी I एक कडवे घूँट की तलब उसे भी ज़ोर मारने लगी अभी...

पूनम डोगरा

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by mrs manjari pandey on December 10, 2014 at 8:38pm
पत्नी प्रायः रिश्ते को बचाने के लिए ऐसा करती है बदले में घुट घुट कर जीना उसे नसीब होता है. बधाई भावपूर्ण कहानी के लिए ।
Comment by somesh kumar on December 10, 2014 at 8:18pm

दुसरे पार्टनर की कमियों को ढकना और रिश्ते को बचाए रखने के लिए मक्खी को निगलना पड़ता है| अच्छी कहानी 

Comment by Shyam Narain Verma on December 10, 2014 at 5:45pm

इस सुंदर संदेशप्रद लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई सादर.......................

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