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ये कैसी, अनहोनी होई |

दिल रोया, पर आँख ना रोई ||

चाहूँ लाख, जगाना उसको |

कम करे, तदबीर ना कोई || 

सब बेचारा, कह देते हैं |

जो लिखा है , होगा सोई ||

याद नहीं है, क्या बोया था |

दिल की बस्ती, बंज़र होई ||

अँधेरा है, कैसे ढूँढूँ |

यारो, अपनी किस्मत खोई ||

तन्हाई अच्छी, लगती है |

तन्हाई सा, मीत ना कोई ||

बन्ज़ारों सा, घूम रहा हूँ |

अपना पक्का, ठौर, ना कोई ||

कब अपने से, मिल पाऊँगा |

कब मेरा भी, होगा कोई ||

अब तक उससे, मिल ना पाया |

जिसकी खातिर, सुध-बुध खोई ||

वक़्त ज़ख्म दे, वक़्त ही मरहम |

वक़्त रखे, बीमार ना कोई ||

सुन रक्खा है, मीठा बोलो |

लफ़्ज़ों सी, तलवार ना कोई ||

जैसे रोता, ‘शशि’ को देखा |

कभी, कहीं, बरसात ना रोई ||  

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2012 at 10:40am

//तन्हाई अच्छी, लगती है |

तन्हाई सा, मीत ना कोई ||//

आदरणीय शशि मेहरा जी, बहुत ही प्यारी और अर्थपूर्ण रचना, एक एक बंद गहरे भओं को समेटे हुए है, बहुत दिनों बाद आपका ओ बी ओ पर आना हुआ, इस रचना हेतु बहुत बहुत बधाई , उम्मीद है कि आगे भी आपकी रचनाओं एवं अन्य सदस्यों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों से हम सभी लाभान्वित होते रहेंगे |

Comment by Harvinder Singh Labana on September 21, 2012 at 7:48pm

अब तक उससे, मिल ना पाया |

जिसकी खातिर, सुध-बुध खोई ||.... Sirji Behad hi Shaandaar.. Behad hi Khoobsurat Lines.... Meri tarf se Badhai Swikaar karein...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 21, 2012 at 5:37pm

सुन रक्खा है, मीठा बोलो |

लफ़्ज़ों सी, तलवार ना कोई ||

जैसे रोता, ‘शशि’ को देखा |

कभी, कहीं, बरसात ना रोई ||  दिल को छूती हुई मार्मिक रचना बहुत बधाई आपको 

Comment by UMASHANKER MISHRA on September 21, 2012 at 12:30pm

आदरणीय शशि मेहरा जी  सादर बधाई

बहुत ही बढ़िया लगी

दिल रोया  पर आँख न रोई... गहराई है 

याद नहीं है, क्या बोया था |

दिल की बस्ती, बंज़र होई ||....बहुत ही जोरदार है ..दिल के बंजर होने कि बात दिल को छू लिया 

तन्हाई सा मीत ना कोई ......सटीक कथन 

आदरणीय बेहद मार्मिक मर्मस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक आभार 

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