ये कैसी, अनहोनी होई |
दिल रोया, पर आँख ना रोई ||
चाहूँ लाख, जगाना उसको |
कम करे, तदबीर ना कोई ||
सब बेचारा, कह देते हैं |
जो लिखा है , होगा सोई ||
याद नहीं है, क्या बोया था |
दिल की बस्ती, बंज़र होई ||
अँधेरा है, कैसे ढूँढूँ |
यारो, अपनी किस्मत खोई ||
तन्हाई अच्छी, लगती है |
तन्हाई सा, मीत ना कोई ||
बन्ज़ारों सा, घूम रहा हूँ |
अपना पक्का, ठौर, ना कोई ||
कब अपने से, मिल पाऊँगा |
कब मेरा भी, होगा कोई ||
अब तक उससे, मिल ना पाया |
जिसकी खातिर, सुध-बुध खोई ||
वक़्त ज़ख्म दे, वक़्त ही मरहम |
वक़्त रखे, बीमार ना कोई ||
सुन रक्खा है, मीठा बोलो |
लफ़्ज़ों सी, तलवार ना कोई ||
जैसे रोता, ‘शशि’ को देखा |
कभी, कहीं, बरसात ना रोई ||
Comment
//तन्हाई अच्छी, लगती है |
तन्हाई सा, मीत ना कोई ||//
आदरणीय शशि मेहरा जी, बहुत ही प्यारी और अर्थपूर्ण रचना, एक एक बंद गहरे भओं को समेटे हुए है, बहुत दिनों बाद आपका ओ बी ओ पर आना हुआ, इस रचना हेतु बहुत बहुत बधाई , उम्मीद है कि आगे भी आपकी रचनाओं एवं अन्य सदस्यों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों से हम सभी लाभान्वित होते रहेंगे |
अब तक उससे, मिल ना पाया |
जिसकी खातिर, सुध-बुध खोई ||.... Sirji Behad hi Shaandaar.. Behad hi Khoobsurat Lines.... Meri tarf se Badhai Swikaar karein...
सुन रक्खा है, मीठा बोलो |
लफ़्ज़ों सी, तलवार ना कोई ||
जैसे रोता, ‘शशि’ को देखा |
कभी, कहीं, बरसात ना रोई || दिल को छूती हुई मार्मिक रचना बहुत बधाई आपको
आदरणीय शशि मेहरा जी सादर बधाई
बहुत ही बढ़िया लगी
दिल रोया पर आँख न रोई... गहराई है
याद नहीं है, क्या बोया था |
दिल की बस्ती, बंज़र होई ||....बहुत ही जोरदार है ..दिल के बंजर होने कि बात दिल को छू लिया
तन्हाई सा मीत ना कोई ......सटीक कथन
आदरणीय बेहद मार्मिक मर्मस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक आभार
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