नाम भले पहचान है, किन्तु बड़ा है कर्म
है जीवन में वो सफल, जो समझा ये मर्म।१।
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महिमा कहते कर्म की, जग में संत कबीर
नाम-नाम ही जो रटे, समझो सिर्फ फकीर।२।
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नामीं द्विज भी रह गये, कर्म फला रैदास
पुण्य कर्म आशीष को, गंगा माई पास।३।
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केवल कर्म बखानता, जग में है इतिहास
सूरज जैसा कर्म ही, देता नाम उजास।४।
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दबे कोख इतिहास की, कर्महीन जो गाँव
किन्तु उजागर हो गये, सदा कर्म के पाँव।५।
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लिखे कर्म की लेखनी, चमक चाँदनी नाम
कर्महीन को हो गयी, यहाँ भोर भी शाम।६।
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किसे नाम के बल मिला, बोलो गत में काम
किन्तु कर्म ने कर दिया, कितनों का है नाम।७।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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