For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अगला कदम उठाते ही उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे सैकड़ों टन का भार उसके पैरों पर रखा हो, वह लड़खड़ा उठा और उसने अपने साथी के कंधे का सहारा लिया, लेकिन साथी भी बहुत थका हुआ था, वह डगमगा गया, बर्फ के पर्वत पर चढ़ते हुए सेना के उन दोनों जवानों ने तुरंत एक-दूसरे को थाम लिया|

 

उसके साथी ने उसकी बांह को जोर से पकड़ते हुए कहा, "सोलह घंटों से चल रहे हैं, अब तो पैर उठाने की ताकत भी नहीं बची..."

"लेकिन चलना तो है ही...", उसने उत्तर दिया

"क्यों न कुछ खा लिया जाये?" साथी चलते हुए डगमगा रहा था और उसके स्वर में अधीरता थी|

वह चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाकर बोला "हमारे जवान जो ऊपर भूखे-प्यासे दुश्मन से लड़ रहे हैं, उनके लिये खाना है, हम कैसे खा लें?"

"कुछ खा लेंगे तो ताकत आ जायेगी" बर्फ से परावर्तित होती सूरज की किरणों से परेशान होकर आँखें बंद करते हुए उसके साथी ने उत्तर दिया|

उसने सहमति की मुद्रा में गर्दन हिलाई, अपने कंधे पर लदे हुए थैले को उतारा और उसे खोल कर एक पैकेट निकालने लगा| उसी समय उसे न जाने क्या याद आया, उसने अपने साथी की तरफ देखा और कहा,

"हमने तो कल ही खाया है, वो सारे के सारे चार दिनों से भूखे हैं और तिस पर दुश्मन भी वहीँ है| चल! अब रुकना नहीं..." अंतिम फिर पंक्ति को उसने बहुत जोर से कहा, तब तक बैग पुनः उसके कंधे पर था|

 

यह शब्द कानों में पड़ते ही डगमगाते साथी के भी कदम सध गए और दोनों के पर्वत पर चढ़ने की गति पहले से बहुत तेज़ हो गयी|

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1109

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 23, 2016 at 8:05am

आदरणीय विजय निकोरे जी सर, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और अनुमोदन ने मेरा मनोबल बहुत बढ़ाया है, बहुत-बहुत धन्यवाद आपका|

Comment by vijay nikore on August 22, 2016 at 4:00pm

अति सुन्दर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 17, 2016 at 12:35pm

लघुकथा के इस प्रयास पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीया कांता रॉय जी|

Comment by kanta roy on August 16, 2016 at 12:15pm

वाह ! मन को मन की राह दिखाती हुई  बहुत  खुबसूरत और सार्थक  कथ्य को  चिंतन  दिया  है  आपने   आदरणीय  चंद्रेश  जी . बधाई प्रेषित  है .

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 9, 2016 at 3:47pm

लघुकथा के इस प्रयास को पसंद करने और अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभारी हूँ, आदरणीया नीता कसार जी|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 9, 2016 at 3:46pm

बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी| आपके यह सुझाव सिर-आँखों पर| मैं प्रयास करता हूँ कि इस अनुसार रचना को बदल सकूं| निवेदन है कि ऐसे ही सलाहों से नवाज़ते रहें| सादर, 

Comment by Nita Kasar on July 26, 2016 at 7:54pm
सलाम हमारे सैनिकों के नाम,साथियों की परवाह उनमें जोश भर देती है ।बधाई आपके लिये आद०चंद्रेश छतलानी जी ।
Comment by Shubhranshu Pandey on July 24, 2016 at 10:55pm

आदरणीय चन्देश जी, कुछ बातें जो मुझे ज्यादा स्पष्ट नहीं हो पायीं. आपके कहे अनुसार उन्हे साझा कर रहा हूँ.  

हर जवान का अपना एक बैग होता है जिसमें उसके अपने खाने पीने के साथ अन्य सामान होता है. ये बैग उनके पास हमेशा रहता है. फ़िर जवानों को,सप्लाई के रसद से खाने की क्यों जरुरत आन पडी़? 

"बर्फ से परावर्तित होती सूरज की किरणों से परेशान होकर आँखें बंद करते हुए उसके साथी ने उत्तर दिया|" सेना के जवान ऎसी लम्बी यात्रा पर धूप चश्मा जरुर लगातें हैं. परेशानी को किसी और भाव के साथ प्रगट किया जा सकता है. 

इन बिन्दुओं पर मेरा ध्यान गया था. वैसे मंच के कुछ गुनी जन जो सेना के सम्पर्क में हैं विस्तार से बता सकते हैं. इन बिन्दुओं को ला कर मैं कथा को और वस्तविकता के करीब लाना चाहता हूँ.  सादर.

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 24, 2016 at 10:07pm

आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी सर, इस प्रयास पर आपकी यह टिप्पणी मेरे लिये बहुत मायने रखती है| मैं बहुत शुक्रगुज़ार होऊंगा, यदि आप यह मार्गदर्शन करें कि सेना की तकनीकी दृष्टि से इस रचना में क्या कमियाँ रह गयी हैं? आपका एक इशारा भी बहुत होगा और रचना को उचित करने में काफी सहायता करेगा| सादर,

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 24, 2016 at 10:03pm

लघुकथा के इस प्रयास को पसंद करने और अपनी अमूल्य टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु सादर आभारी हूँ आदरणीया  कल्पना भट्ट दी|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
5 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service