For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 33

कल से आगे .........

गुरुदेव वशिष्ठ और महामात्य जाबालि की आशंका अकारण नहीं थी। दोनों ही चिंतन प्रधान व्यक्तित्व के स्वामी थे और दोनों का ही सामाजिक चरित्र पर विशद चिंदन था।


अगली बार जब वेद घर पहुँचा तो उसने मित्रों के साथ समय व्यतीत नहीं किया था। इस बार उसके पास कुछ विशेष था मंगला को बताने के लिये। अभी दोपहर नहीं हुई थी। वह घर पहुँचते ही सीधा अंदर गया। मंगला घर के आँगन में स्थित कुयें से पानी खींच रही थी। वेद ने सीधे उसकी चोटी में झटका मारते हुये सूचना दी -


‘‘तेरे लिये तो शुभ समाचार है।’’
‘‘क्या ! गुरु जी ने स्वीकृति दे दी ?’’ मंगला को लगा जैसे उसने त्रैलोक्य की सबसे बड़ी निधि पा ली हो, रस्सी उसके हाथ से छूट गयी।’’
इससे पहले कि बाल्टी सहित रस्सी कुयें के अन्दर जाती वेद ने झपट कर उसे थाम लिया और मंगला को चिढ़ाते हुये बोला -
‘‘रही भोंदू की भोंदू ! अभी मुझे ही उतरना पड़ता कुयें में बाल्टी निकालने के लिये। इसी बुद्धि से पढ़ाई करेगी।’’
मंगला खिलखिला कर हँस पड़ी फिर भाई के हाथ से रस्सी पकड़ कर वापस घिर्री में फाँसते हुये बोली - ‘‘आपने समाचार ही ऐसा दिया कि मैं सब कुछ भूल गयी।’’ बाल्टी ऊपर खींच कर कुयें की जगत पर रखते हुये वह आगे बोली- ‘‘क्या कहा गुरुदेव ने ? मैं भी जा सकूँगी गुरुकुल ?’’
‘‘गुरुदेव ने हाँ नहीं कही है।’’
‘‘फिर कैसा शुभ समाचार हुआ ?’’ मंगला बरबस रुआँसी सी हो आई।
‘‘गुरुदेव ने तो अनुमति नहीं दी किंतु महामात्य जाबालि ने अनुमति दे दी है। उन्होंने तुझे अपने घर पर पढ़ने के लिये आमंत्रित किया है। तेरी अन्य सखियाँ भी यदि चाहें तो तेरे साथ जा सकती हैं।’’
‘‘सच भाई !‘‘ मंगला ने वेद का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रखते हुये कहा - ‘‘खा मेरी सौगंध !’’
‘‘तेरी सौगंध !’’
मंगला की साँस अचानक ऐसे चलने लगी थी जैसे बड़ी दूर से भाग कर आ रही हो। चेहरा तमतमा गया था। इतना बड़ा समाचार था यह उसके लिये। उसने तो आशा ही छोड़ दी थी कि उसे भी पढ़ने का अवसर मिल सकता है। हद से हद यही सोचा था कि गुरुदेव यह बता देंगे कि किस शास्त्र में स्त्रियों के लिये अध्ययन का निषेध किया गया है।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे।
उसकी स्थिति देखकर वेद भी हतप्रभ रह गया था। वह थोड़ा सा घबरा गया। उसने भाभी को आवाज लगाई -
‘‘अरे भाभी देखो तो इसे क्या हो गया ?’’ माँ को बुलाना उसने उचित नहीं समझा था। वे अभी हायतौबा मचा देतीं।
भाभी को आवाज लगाने के साथ ही उसने वही बाल्टी जो अभी मंगला ने कुयें से खींची थी, उसके सिर पर उँड़ेल दी। ठंडा-ठंडा पानी सिर पर पड़ते ही मंगला एकदम सिहर उठी। उसने अचकचा कर वेद के चेहरे की ओर देखा। फिर जैसे सामान्य अवस्था में आ गई। उसने वेद के दोनों हाथ पकड़ कर झकझोरते हुये कहा - ‘‘कितनी शुभ सूचना दी भइया यह तो तुमने ! आज अपने हाथ से स्वादिष्ट हलुआ बनाकर खिलाऊँगी तुम्हें, ढेर सारी मेवा पड़ा हुआ।’’
इसी बीच घबराई सी भाभी भी दौड़ती हुई आ गयी। आँगन की स्थिति देख कर वह भी हतप्रभ रह गयी। उसके मुख से हठात निकला -
‘‘यह क्या कीच कर दी सारे आँगन में। अभी कौन सी होलिका आ गयी है जो ... और होली खेलनी ही थी तो मुझे बुला लेते, कहीं बहनों के साथ भी होली खेली जाती है ?’’ इसके साथ ही वह हँसते-हँसते दोहरी हो गयी। बड़ी कठिनाई से वह आगे बोल पाई -
‘‘वैसे हुआ क्या था ? तुम तो रुआँसे से चीख रहे थे और यहाँ तो हलुआ खिलाने की बात हो रही है।’’
‘‘मैं तो सच में घबरा गया था भाभी। यह तो संज्ञाशून्य सी हो गयी थी। ऐसे हाँफ रही थी जैसे जूड़ी चढ़ आई हो। तभी मैंने इसके ऊपर बाल्टी उलट दी।’’
‘‘स्वस्थ तो है अब ?’’
‘‘लक्षित नहीं हो रही आपको ?
‘‘वह तो हो रहा है। होली खेलने की ललक उठ आई होगी तभी अस्वस्थता का नाट्य स्वांग कर लिया होगा ? अरे मुझे बुला लिया होता नंदरानी, अपने भइया को क्यों कष्ट दिया। मैं तो ऐसा पक्का रंग डालती कि जन्मान्तर तक नहीं धुलता।’’
‘‘क्या भाभी ! आपको तो परिहास के सिवा कुछ सूझता ही नहीं कभी !’’ मंगला ने बुरा नहीं माना था भाभी की बातों का। इस समय तो वह सातवें आसमान पर थी, बुरा मानने का अवकाश ही नहीं था, ‘‘बोली- बात ही ऐसी प्रसन्नता की है भाभी कि .... अब क्या कहूँ ... आपको भी खिला दूँगी हलुआ चलो।’’ मंगला की प्रसन्नता हँसी बन कर उसके चेहरे से फूटी पड़ रही थी। इसे भाभी ने भी लक्ष्य किया।
‘‘बन्नो मेरी ! सो तो मैं खाऊँगी ही, किन्तु अब बात तो बताओ। क्या महाराज दशरथ ने अपना सारा राजपाट तुझे ही सौंप दिय, जो तेरा रोम-रोम ऐसे नाच रहा है ?’’
‘‘अरे नहीं भाभी, भैया कह रहे हैं कि महामात्य जाबालि ने मुझे पढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा है कि मैं अपनी सखियों को भी साथ ला सकती हूँ, चलोगी आप मेरे साथ ?’’
‘‘अरी बन्नो ! जरा धीरज रख। तेरी अम्मा महामात्य की भी महामात्य हैं। अभी उनसे तो अनुमति ले लो पहले। फिर मुझे न्योता बाँटना।’’
मंगला के उत्साह का गुब्बारा जैसे एकदम फूट गया। जैसे अंतरिक्ष की ऊँचाई पर उड़ते किसी विहंगम को अचानक ब्याध ने अपने तीर से बींध दिया हो। मंगला की उन्मुक्त सरिता सी मचलती हँसी की धारा को अचानक जैसे रेत ने लील लिया।
‘‘भाभी बड़ी अभागी हो तुम। मेरी रत्ती भर प्रसन्नता सही नहीं गयी। कुछ काल मुझे ऐसे ही हँस लेने देतीं तब याद दिलातीं अम्मा की।’’ खिलखिलाती मंगला रुँआसी हो आई थी।
‘‘मेरी बन्नो ! मैं कोई तेरी बैरी हूँ ? हम दोनों ही मिलकर छिटकी जुन्हाई सा नाचेंगी पर अभी पहले अम्मा को मनाने की जुगत सोचो। तुम भी वेद लाला।’’
‘‘मुझे तो कोई मार्ग नहीं दिखता।’’ वेद बोला - ‘‘पिताजी को तो मनाया जा सकता है किंतु अम्मा ... असंभव। वे तो डुकरिया पुराण की कुलाधिपति हैं। वे नहीं स्वीकृति देने वाली।’’
‘‘कर लो उपहास, यदि अम्मा ने सुन लिया कहीं तो कहीं ठौर नहीं मिलेगा। डुकरिया पुराण की कुलाधिपति !’’ भाभी कहती जा रही थी और मुँह पर धोती रखे हँसे जा रही थी।
वेद भाभी की बात पर इस स्थिति में भी मुस्कुरा उठा। ‘‘आप भी पंडिता हो गयीं भाभी।’’
‘‘बात तुम्हारी सच्ची है वेद लाला ! हैं तो अम्मा ऐसी ही। अब सोचो उन्हें कैसे मनायेंगे। सबसे बड़ी बात कहेगा कौन उनसे ?’’
‘‘मैं नहीं कहूँगा।’’
‘‘तो क्या मैं कहूँगी ? मुझे तो वे पका कर खा जायेंगी और डकार भी नहीं लेंगी।’’
‘‘कह दो ना ! मेरी प्यारी भाभी ! इतना सहयोग नहीं करोगी अपनी ननद का ?’’ कहती हुई मंगला भाभी से लिपट गयी।
‘‘सौ बार ना ! मेरे कहने से तो अनुमति मिलती होगी तो नहीं मिलेगी। उन्हें यही लगेगा कि मैं तुझे उकसा रही हूँ।’’ भाभी ने मंगला की ठोढ़ी पकड़ कर उसकी आँखों में झांकते हुये कहा।
‘‘तो मैं फिर कैसे कहूँगी ? मुझे क्या छोड़ देंगी वे ?’’
‘‘एक ही मार्ग है, वेद लाला ही बात करें।’’
‘‘क्या ?’’ वेद चिटकते हुये बोला जैसे पैर के नीचे साँप आ गया हो।
‘‘सुनो तो पूरी बात। अम्मा से नहीं, बाबा से बात करो पहले। वे एक बार मान भी सकते हैं।’’
वेद ने बहुत ना-नुकुर की। किंतु अंततः यही तय हुआ कि वेद बाबा से बात करेगा। मंगला उसके पीछे-पीछे साथ में रहेगी। यदि बाबा क्रोधित हुये तो वेद सारा दोष मंगला पर मढ़कर स्वयं को सुरक्षित कर लेगा। फिर जो भी हो मंगला जाने, मंगला भुगते।

क्रमशः

मौलिक एवं अप्रकाशित

- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

ajay sharma shared a profile on Facebook
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service