For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फ़ोकट का तमाशा {लघु कथा}

आज फिर कामिनी बाहर गली में आकर चिल्ला रही थी 'कोई भी नही बचेगा, सब को सजा मिलेगी. कानून किसी को नही छोड़ेगा.' सभी अपने अपने घरों से झांक रहे थे. उसका भाई इंदर उसे समझा बुझा कर भीतर ले जाने का प्रयास कर रहा था.

अपनी बहन की इस दशा से वह बहुत दुखी था. बड़ी मुश्किल से समझा बुझा कर वह उसे भीतर ले गया. कुछ देर तक अपने अपने घरों से बाहर झांकने के बाद सब भीतर चले गए.

कभी कामिनी भी एक सामान्य लड़की थी. एक कंपनी में नौकरी करती थी. कुछ ही समय में विवाह होने वाला था. अपने आने वाले भविष्य को लेकर वह बहुत खुश थी. उसका होने वाला पति एक अच्छी नौकरी में था. परिवार भी बहुत अच्छा था. अतः वह आने वाले दिनों के सुखद स्वप्न देखने लगी थी.

किंतु उसके सारे सपने बिखर गए. एक दिन जब वह दफ्तर से घर लौट रही थी तब कुछ रईसजादों ने उसे जबरन अपनी कार में बिठा लिया. रात भर उसे नोचने खसोटने के बाद सड़क पर फेंक दिया. लड़के वालों ने विवाह से इंकार कर दिया.

इतने पर भी उसने हिम्मत नही हारी. अपने भाई इंदर के साथ मिलकर कानूनी लड़ाई के ज़रिए इंसाफ पाने का प्रयास किया. पुलिस स्टेशन के चक्कर मेडिकल जांच उसके बाद कोर्ट में प्रतिपक्षी वकील के भद्दे सवाल कुछ भी उसके हौंसले को तोड़ नही सका. लेकिन वह लड़के रसूखदार खानदानों के थे. पैसे की ताकत ने साबित कर दिया कि घटना के समय कोई शहर में नही था. सब बाइज़्ज़त बरी हो गए.

कामिनी यह आघात सह नही पाई. वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. अब अक्सर वह इस तरह चीखने चिल्लाने लगती थी.

मोहल्ले वालों के लिए यह आए दिन का तमाशा था. किंतु कामिनी के लिए यह उसके मन की व्यथा थी.

प्रस्तुत रचना मौलिक व अप्रकाशित  है 

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 21, 2016 at 7:58pm
समसामयिक परिदृश्य से कथानक लेते हुए गंभीर मुद्दा उठाया है आपने। बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए। अपने टिप्पणी अभ्यास के तहत कुछ सुझाव देना चाहता हूँ-1- यह पंक्ति आगे भाव पुनरावृत्ति के कारण हटायी जा सकती है- // उसका भाई इंदर उसे समझा बुझा कर भीतर ले जाने का प्रयास कर रहा था.//, 2- फ्लैशबैक तकनीक को स्पष्ट करने के लिए 'कभी कामिनी भी' वाले वाक्य के पहले लिखा जा सकता है कि भाई अपनी बहन के अतीत को याद करता हुआ बहुत भावुक हो गया-....3- अंत में शीर्षक वाली पंक्ति के बजाय किसी का कोई तीखा तंज करता संवाद रखा जा सकता है।
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 12, 2016 at 10:33am

धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2016 at 12:13pm

आदरनीय कभी ये बात काल्प्निक भी रही होगी , अब तो हर समय के लिये सामयिक हो गई है । अच्छी कथा कही , हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2016 at 11:41am
कानून तो बिकाऊ है न जाने कितनी कामिनी इंसाफ के लिये लड़ते लड़ते मर गई अच्छी सामयिक कहानी है इसका अंत किसी सार्थक संदेश के साथ पंच लाइन को लेकर होता तो औऱ बेहतर होती बहुत बहुत बधाई आपको.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service