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आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी सर जी, गजब की बारीक नजर की पकड़ से आपने ये कथानक उठाया है, मन गदगद हुआ,
समाज में इस तरह के प्रदूषण और दुरुपयोग को आये दिन हम देखते हैं लेकिन चुप रहते हैं, उस लिहाज से विरोध और सुधार के लिए मासाब का किरदार बहुत फिट बैठकर संदेश दे रहा है।बहुत बहुत हार्दिक बधाई सार्थक लघुकथा के लिए।
हालांकि लघुकथा और संक्षिप्त हो सकती थी मेरे विचार में!
ख़ाकी शब्द में देशप्रेम और देशसेवा के लिए आदर का जो भाव पैदा किया है वह //खाकी की दुर्दशा// तक तो ठीक है, लेकिन आगे " रक्षा कवच है" जैसे उदगार खटकते से हैं, और विषय से भटकते हुए कथानक की धार को कम करते हुये मुझे लग रहे है,। पुनः आपकी बारीक नजर और कथानक को सादर प्रणाम ।
आदाब। रचना पटल पर उपस्थित होकर मार्गदर्शक विवेचना, सराहना और समीक्षा/सुझाव हेतु हार्दिक धन्यवाद मुहतरम जनाब कृष मिश्रा 'जान'गोरखपुरी साहिब। पाठकों को विषय भटकाव लग सकता है.... लेकिन लेखक और क्या-क्या कहना चाहता है... इसके सम्प्रेषण में सफल न हो सका, ऐसा लगा आपकी टिप्पणी से।
खाकी को सलाम करती शानदार लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी
आदाब। रचना पटल पर व लाइव लघुकथा गोष्ठी में हमेशा की तरह सक्रीय सदस्यों में शामिल रहने हेतु व हमें मार्गदर्शित, प्रोत्साहित करते रहने हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।
नववर्ष की इस पहली गोष्ठी में हम सब अपनी सहभागिता निभा सके, यह हमारा सौभाग्य है। लघुकथा विधा प्रेम है। हार्दिक बधाई आप सभी को।
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