For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस बहुत हुआ अब जाने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो, सांस जरा तो आने दो

घुटन भरे इस कमरे मे, जरा धूप तो छंटकर आने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

बहुत सुनी कटाक्ष तेरी, बात-बात पर दुत्कार तेरी

शुल के जैसे बोल तेरे, चुन-चुन कर मुझे हटाने दो

खामोशी में है प्यार मेरा, ना मुझपर कुछ उपकार तेरा

मुझको जो गरजू समजा है, उस भरम को अब मिट जाने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

तूने जो बोला मान लिया, देर लगी पर जान लिया

सदा पास रही पर साथ नहीं, अब झूठे बंधन टूट जाने दो

मेरे अपनों को कोसा है, लफ्ज़ों से दिल को नोंचा है

मेरे जज़्बातों का जो मोल नहीं, तो ये धागा अब टूट जाने दो

बस बहुतहुआ अब जाने दो

तूने सोचा ये खेला है, शादी दो दिन का मेला है

वर्षों में भी मुझे अपना ना सकी, तो घर की ईंटें ढह जाने दो

ना सोचा था ये दिन आएगा, जीवन ये भी दिखलाएगा

आदर मेरे दिल में जो है, उसमे घिन्न नहीं मिल जाने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

सोचा था साथ निभा लूँगा, कड़वा घुंट है पी लूँगा

तूने शब्दो के चोट से जो घाव दिए सब वापस लो

बहुत सहा न समझा ये, अब तुझको नज़रों से पटका ले

अब पहले जैसा अपनापन ना मिल पाएगा जाने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

हर तंज़ सहे अपमान सहा, ना मेरा अपना सम्मान रहा

तुझको सम्हाले रखने मे जो भी खोया वो वापस दो

पहले दिन से ही साफ रहा, तेरी मंजिल कोई और रहा

सब सबकुछ अपना खो बैठा, तू बोल उठी अब जाने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

एक अरसे से मैं जूझ रहा, अंदर जैसे सब टूट रहा

डर है मैं खुदको खो दूंगा, तुम गैर मुझे हो जाने दो

सहने की कोई सीमा हो, दर्द तो थोड़ा धीमा हो

अब सब्र जो मेरा फूटा है, सारा लावा बह जाने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

और जो कुछ दिन संग रहा, थोड़ा भी तेरा रंग रहा

जाने फिर मैं क्या कर जाऊँ, मुझमे इंसान तो रहने दो

प्यार बहुत मैं करता था, तुझसे नफरत ना हो पाएगी,

जहर ना घोलो मेरे मन मे, प्यार ही मन मे रहने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

अलग है अपनी राह सही, तू और कहीं मैं और कहीं

घर भी अब घर रहा नहीं, ये मकान तो रह जाने दो

चल साथ मे दोनों कहते है, अब साथ नहीं रह सकते है

दिल से निकल जाए हम तुम, और द्वार बंद हो जाने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

"मौलिक व प्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

Views: 243

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mayank Kumar Dwivedi on April 3, 2022 at 9:12am

अनुपम सृजन आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service