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मैंने देखा है जहाँ में लोग दो तरह के है

हाँ यहाँ पर हर किसी को रोग दो तरह के है

एक को लगता है जैसे सब देवता के हाथ है

एक को लगता सबकुछ दानवो के साथ है

 

मन के विश्वास को कोई आस्था बता रहा

दूसरा अपने भरम को सत्य से छिपा रहा

लोगों के आस्था का यहाँ हो रहा व्यापार है

हर गली में पाखंडियों का लग रहा बाज़ार है  

 

अंधकार में है भटकता ज्ञान जिसको है नहीं

और कोई ज्ञान को ही सत्य मानता नहीं

नब्ज़ पकड़ी है ठगों ने बेबस इंसान की

अपना घर भर रहे सब पैसो से हराम की

 

कोई खुदको देवी माँ का शिष्य है बता रहा

कोई खुद हीं कृष्ण बनकर गीता है सुना रहा

कोई खेलता खोपड़ी से हड्डियां जला रहा

निम्बू और कपूर का कोई टोटका बता रहा

 

फैला कर जटाएं कोई शिष्यता बढ़ा रहा

और कोई खुद ही अपनी महिमा को गा रहा

अपनी चालाकियों पर इनको अभिमान है

खुदको समझते ये सब देवता समान है

ये चरस है इस नशा का ना कोई इलाज़ है

लग गयी जो किसी को तो ना बुझे वो प्यास है

आँख मूंदे चल पड़ा जो तू किसी के बात पर

आँखे तेरी तब खुलेंगी जो पहुँचेगा तू घाट पर

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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Comment

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Comment by AMAN SINHA on April 1, 2022 at 9:27am

आदरणिय समर कबीर साहब, 

हौंसला बढाने के लिये तहे दिल से आपका धन्यवाद । 

Comment by Samar kabeer on April 1, 2022 at 6:51am

जनाब अमन सिन्हा जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें I 

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