छोटे-छोटे राज्यों के निर्माण की मांग तो वर्षों से चली आ रही है, किन्तु झारखंड. उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के गठन के बाद इस तरह की मांग और बढ़ गयी. इसी क्रम में मिथिला राज्य के निर्माण की बात भी है. यह मांग भी वर्षों पुरानी है, परन्तु इसकी सार्थकता पर शायद किसी ने गौर नहीं किया कि इसकी मांग जायज है या नाजायज? मेरी समझ से तो मिथिला राज्य की मांग सर्वथा नाजायज है. उससे ज्यादा जरुरी है मिथिला का सर्वांगीण विकास.
अभी मैं ६ जून से ९ जून तक दरभंगा, १० जून से १३ जून तक बेगुसराय , १४ जून से १६ जून तक समस्तीपुर, १७ और १८ जून को मुजफ्फरपुर तथा १९ जून से २१ जून तक छपरा में था. मुझे लगा कि वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नितीश जी के नेतृत्व में विकास का काम हों रहा है. समस्तीपुर से दरभंगा जाने वाली सड़क में लगभग सभी पूलों का निर्माण कार्य चल रहा था. किन्तु ६ जून को जब मैं बागमती ट्रेन से उतर कर अम्बेसडर कार से बेता चौक जा रहा था मुझे लगा कि मैं खेत में ट्रेक्टर चला रहा हूँ, पूरे शरीर की हड्डी खिसक गई. अगर कोई गर्भवती महिला होती तो शायद गर्भपात हों जाता. मुझे लगा कि दुनिया भर की तमाम गंदगी भी आकर दरभंगा में ही एकत्र कर दी गयी है. मच्छरों की संख्या भी उतनी ही. आखिर इस विकासशील समय में भी दरभंगा का विकास उस रूप में क्यों नहीं हों रहा है जिसकी अपेक्षा की जाती है? क्या मिथिला राज्य की राजधानी बनने के बाद वह विकसित होकर बंगलोर, चेन्नई, लखनऊ या भोपाल के बराबर हों जाएगा या फिर एक और मधु कोड़ा को जन्म देगा जो बची-खुची संपदा और संसाधनों का वारा-न्यारा कर देगा. मिथिला राज्य के पास क्या बचेगा- कोशी और कमला बलान का पानी, हर साल बाढ़ की तबाही, आम, धान, पान, माँछ और मखान की खेती जो पूर्णत: प्रकृति पर निर्भर है, फिर नरेन्द्र मोदी जैसे किसी मुख्यमंत्री से अनुदान या केंद्र सरकार की कृपा-दृष्टि? फिर एक अहम् मुद्दा यह भी है कि चंद्रशेखर राव की तरह भूख हड़ताल या आत्मदाह करने वाले कितने नेता हैं जो मिथिला राज्य की मांग कर रहे हैं? शायद ऐसी स्थिति आने पर सब दुम दबाकर भाग खड़े होंगें, मिथिला में नेता के अभाव के साथ-साथ सामंजस्य की भी कमी है. अभी मैंने दरभंगा की एक कन्या की शादी बेगुसराय के लड़के से करबाई. कन्या पक्ष वाले बार-बार बेगुसराय की बुराई कर रहें थे, जबकि वह भी मिथिला में ही आता है, मुझे काफी बुरा लगा और मैंने कहा कि "श्रीमान! अच्छे बुरे तो सब जगह होते हैं, जिला या स्थान क्या करेगा? क्या काबूल में गधे नहीं होते है? हाँ इतनी बात जरुर है कि मधुबनी की मिट्टी नरम है इसलिए वहां के लोग उदारवादी होते हैं, ज्यों-ज्यों दक्षिण बढ़ते जाएँ त्यों-त्यों मिट्टी कड़ी होती जाती है और उसी हिसाब से उनकी बोली भी कड़ी होती जाती है. लक्खीसराय और मुंगेर की बोली तो और भी कड़ी है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वे बुरे लोग हैं, मुझे तो ऐसा लगता है कि पानी पड़ने पर दक्षिण की मिट्टी काफी लसदार हों जाती है, ठीक उसी प्रकार दक्षिण के लोंगो के साथ पानी की तरह नरमी से पेश आयें तो वे ज्यादा ही लसदार लगेंगे. इस तरह से सम्बन्ध हुआ और लोंगों ने मेरी बात को महसूस किया. इसलिए पहले हमें मिथिला की परिभाषा तय करनी होगी, उसका परिसीमन करना होगा, उनमे एकरूपता लानी होगी, मिथिला की परम्परा को बचाना होगा, मिथिलाक्षर की पढ़ाई को अनिवार्य करना होगा. मिथिला पेंटिंग और बांस तथा सींक से बनी वस्तुओं को कुटीर उद्योग की श्रेणी में लाकर उसको प्रोत्साहित करना होगा, इन सब चीजो को बचाने या इसको बढ़ावा देने वाले कितने लोग हैं? सिर्फ मिथिला राज्य की मांग को लेकर बैठे है. ज़रा सोचिये, गौर करिए, फिर आगे और भी बातें होंगी. शुक्रिया.
(पुन: मैथिली की बजाय हिन्दी में लिखने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ, ऐसा नहीं है कि मुझे मैथिली नहीं आती है? हमारे कुछ मित्रों को मैथिली नहीं आती है उनका ध्यान रखते हुए इस भाषा में लिखी गई है) --
-------------मनोज कुमार झा "प्रलयंकर"
कल्याणपुर, समस्तीपुर
(विगत १२ वर्षों से चेन्नई में )
मोबाइल- ०९८८४६०७३७९