For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यंग्य - उपाधि मिलने की वाहवाही

‘उपाधि’ देने की परिपाटी बरसों से है। बदलते समय के साथ यह परिपाटी अब पूरे रंग में है। पहले आप कुछ नहीं होते हैं। उपाधि मिलते ही आप रातों-रात उपलब्धि की सभी उंचाई पार लगा लेते हैं। हर तरफ बस वाहवाही रहती है। जब हर कहीं सम्मान मिले और नाम के आगे चार चांद लग जाए। ऐसी स्थिति में कौन नहीं चाहेगा, किसी उपाधि से सुशोभित होना। उपाधि पाने का कीड़ा जब काटता है, उसके बाद उपाधि छिनने की करामात भी करनी पड़ती है। माथे पर उपाधि की मुहर लगते ही एक अलग पहचान बनती है। आने वाली पीढ़ी भी उपाधि के सहारे ही जानती हैं कि वे कितने गहरे पानी में हैं और इससे उबरने, ऐसी शख्सियत बनने जोड़-तोड़ के साथ हाथ-पैर भी मारना पड़ता है।
खुद को उपाधि से सुशोभित करने की ललक न जाने कब से मन में समाया हुआ है। जब किसी को उपाधि लेते देखता व सुनता हूं तो मेरे तन-बदन में आग लग जाती है, शरीर में जलन, इस कदर बढ़ जाती है कि उस उपाधि को छिनने का मन करता है, क्योंकि यही खेल तो चल रहा है। कारण भी है, मुझमें क्या कमी है, जो उपाधि नहीं मिल सकती। इतना तो जानता हूं कि उपाधि मिलने के बाद मेरा कद जरूर बढ़ जाएगा।
वैसे मैं इतना जानता हूं कि किसी भी तरह से मेरा कद उंचा नहीं है। न शरीर से और न धन से, बस थोड़ी बहुत लिख-पढ़कर कद उंचा करने की कोशिशें जारी हैं। मकसद, एक ही है, ‘उपाधि’ मिल जाए। उपाधि भी ऐसी हो, जिसके बाद अपना अनजाना चेहरा किसी पहचान का मोहताज न हो। जिस जगह से गुजरो, वहां चार लोग जान-पहचान के मिल जाए। वहां खुद को मिली महान उपाधि की वाहवाही किए बगैर कोई न रह सके। तब देखो, कैसे सीना चौड़ा हो जाएगा।
ये तो मैं देखते रहता हूं कि कैसे उपाधि रेवड़ी की तरह बंट रही है। कुछ दिनों पहले भी ऐसी ही खबरें आईं, इसके बाद मेरा मन एक बार फिर चहक उठा। बरसों से मन में दबी उपाधि पाने की चाहत, फिर जाग गई। अब चिंता सताने लगी कि इस बेचैन मन को कैसे मनाउं ? मेरा मन रह-रहकर उपाधि के सपने देखते रहता है। आखिर वो पल कब आएगा, जब मेरा मन शांत होगा और मुझ जैसे अभागे को कोई उपाधि मिलेगी ?
मैं सोचता हूं कि उपाधि पाने की कतार में न जाने कब से लगा हूं, मेरा नंबर क्यों नहीं आता। जरूर कुछ न कुछ गड़बड़झाला है, नहीं तो कैसे मैं इस उपलब्धि से महरूम रहता ? ये तो निश्चित ही किसी की साजिश होगी, क्योंकि बिना किसी के टांग खींचे, ऐसा संभव नहीं है। नेता तो बात-बात में साजिश की दुहाई देते हैं, मैं किस बात की दुहाई दूं। मुझे तो कारण ही समझ नहीं आ रहा है। बस, मैं खुद को हर कोण से उपाधि पाने के काबिल मानता हूं। ये अलग बात है कि देने वाले मुझे काबिल नहीं मानते।
मेरे मन में इस बात पर कोफ्त होती है कि चलो, मैं तो काबिल नहीं हूं, मगर जिन्हें मिलता है, वे कितने काबिल होते हैं। बस, उपाधि, पद के पीछे भागती है और देने वाले उपलब्धि के पीछे। अपने पास कोई उपलब्धि नहीं है। जो है, उसे कोई मानने को तैयार नहीं है। अब इसमें मेरा क्या दोष है। मैं तो मानता हूं, मुझमें हर खूबी है और उपाधि का हकदार भी हूं।
मुझे हर तरह से वाहवाही लेनी है। मुझमें बुखार चढ़ा है कि कैसे भी करके एक उपाधि हासिल करनी ही है। जैसे अन्य लोग उपाधि पा लेते हैं, मुझे भी किसी भी तरह से उपाधि लेनी ही है। हालांकि, मुझे शार्टकट का रास्ता नहीं आता। यदि कोई रास्ता हो और उपाधि दिलाने कोई मदद कर सके तो उनका आभारी रहूंगा। इसके बाद फिर क्या है, मैं वाहवाही के सागर में डूबकी लगाता रहूंगा।

राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 074897-57134, 098934-94714, 099079-87088

Views: 374

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2011 at 2:51am

उपाधियाँ कैसी भी हों, उनके रेवड़ी-बाँट हश्र पर लेखक का व्यंग्य सटीक है.  नाम और प्रसिद्धि के पीछे मतवाले हुए जा रहे समाज में ’को बड़ छोट कहत अपराधू..’ की दशा व्याप्त है.

राजकुमारजी का यह सफल प्रयास जागरुक और सुधी पाठकों की दृष्टि से अवश्य गुजरे, इन शुभकामनाओं के साथ उन्हें मेरी ढेर सारी बधाइयाँ.

 

Comment by monika on September 2, 2011 at 2:08am

बहुत बढ़िया. अब इतना प्रयास कर ही रहे है तो उपाधि तो ज़रूर मिल ही जाएगी और जब आपको मिल जाए तो हमें भी दिलवा दीजिएगा. अजी एसी उपाधि तो सभी चाहते हे हम भी उन्ही कतार मे खड़े हे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
22 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service