For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभी साहित्य प्रेमियों को सादर वन्दे !

 

जैसा कि आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "ओबीओ लाईव महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में प्रस्तुत है :

 

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  १३

इस बार महा उत्सव का विषय है "मौसम  "  


आयोजन की अवधि :- मंगलवार ८ नवम्बर २०११  से गुरूवार १० नवम्बर २०११  तक


महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: 


  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

 

 अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १३ जो कि तीन दिनों तक चलेगा उसमे एक सदस्य आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ   ही प्रस्तुत कर सकेंगे | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध और गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकेगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा और जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी |


(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ८ नवम्बर लगते ही खोल दिया जायेगा )


यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

Views: 16146

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

Avinash ji, shukraguzaar hoon ke aapko humari koshish acchi lagi.

saadar,

aradhana

//मेरे मौसमों को

मेरा ही रहने दो
कि इतना वक़्त नहीं 
कि सालों इंतज़ार करूँ.//

आदरणीया आराधना जी ! दिल को झकझोरती हुई आपकी उपरोक्त कविता ने निःशब्द सा कर दिया है ! जीवन के विभिन्न मौसमी पक्षों को समाहित किये हुए तलवार की तीखी धार सी इस कविता के लिए मात्र तीन शब्द  ही दे पा रहा हूँ .....

वाह वाह वाह ......

आदरणीय अंबरीश जी,

खूबसुररती मौसमों की हम उनमें खुद ही तो डालते हैं ना...किसी मौसम मे खुश किसी में गमगीन...और कितने रंग होते हैं उनके अलहदा...जैसे इंद्रधनुष हर रंग नही समा सकता अपने में...एक साल हर मौसम का समावेश नही कर सकता,
आपकी प्रशंसा हमारे लिए बहुत मायने रखती है...सहयोग बना रहे,
सादर,
आराधना

 

भाई आराधना, कहाँ से शुरु करूँ? जिस आसानी और इत्मिनान से आपने उद्वेलित भावनाओं में शब्द भरे हैं, आपकी पूरी कविता को विमुग्धकारी बना गया है. अद्भुत !  जब हम लहरों की सोचते हैं तो उसके प्रवेग को भी उस सोच में नत्थी किये रहते हैं, कुछ ऐसा ही आपकी कहन के साथ होने लगा है.

 

तृणाग्र पर अँटकी शबनम की बूँद होती है न, उनींदी-सी ! सपनीली-सी!! बरबस चित्त को मोह लेने वाली होती है. लेकिन उसके वज़ूदोअंदाज़ पर रीझ-रीझ जाने वालों में से कितने ये समझ पाते हैं, कि, निरंकुश शरद की चिलचिलाती रातों के कितने बूझे-अनबूझे दंश झेलती हुई वो बूँद अलस्सुबह मुस्कुरती हुई खूबसूरती बिखेर रही है ! तमाशाई तो बस तमाशाई हैं न !

 

मौसम को बिम्ब में रख आपने उस मनोहारी बूँद की ’आह’ को अपेक्षित स्वर दिया है. कविता का एक शब्द अन्यथा नहीं है.

हार्दिक बधाई.

 

भाई सौरभ जी, आपकी तो प्रशंसा भी अद्भुत काव्य है.

जीवन हम सब को मिला है, हम सब जीते हैं...पर कभी-कभी जीवन भी हमें जी लेता है और तब उसकी संवेदना समझ आती है... नही तो अपनी पीडाओं के परे नज़र ही कब जाती है... ये सब उन्ही क्षणों की जाया हैं... 

जी, अगली बार घड़ी की रफ़्तार पर विशेष ध्यान देते हुए चाय पी जाएगी,

आपका सहयोग बस बना रहे,

सादर,

आराधना

 

 

जो इतने ही मौसम सुने हैं
तो हम से सुनो
कि हर रोज़-ओ-शब
गुज़रते हैं हम 
हज़ार मौसमों से..............
bahut khubsoorat khayalaat se piroyi hui aapki
ye peshkash bahut khoob hai Aradhana ji bus padh kar barbas wah nikal gayi

Siya ji,

bahut dhanyawaad aapka itne khubsoorat shabdon ke liye...

हमने हर मौसम
साल में
हज़ार बार देखा है.
दूर अँधेरे में कोई अत्यधिक वेग से आती हुई तीर सी सनसनाती ह्रदय में पैठ बनाती हुई यह रचना यक़ीनन बेहद खुबसूरत बन पड़ी है, क्या कहे आराधना जी, सिर्फ आपको बधाई और कुछ नहीं |

बागी जी, 
सर्वप्रथम नमस्कार. जितनी संवेदना से हमने लिखा उतनी संवेदना से आपने पढ़ा है...बहुत शुक्रिया और सहयोग देते रहिए...आपलोगो का स्नेह है के हम कुछ लिख पाए हैं..
सादर
आराधना

बहुत सुन्दर कविता कही है आराधना जी, बधाई स्वीकार कीजिये !

खूबसूरत कविता 

दर्द का मौसम जिसने देखा, दिखे हैं उसे अक्सर हजारों मौसम

ओह!

आदरणीय आराधना जी...

जाने कितनी चीखों को अपने भीतर समेटे हुए भी  निःशब्द कर देती है आपकी रचना....

सादर बधाई स्वीकारें....

 

 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को बहुत सुंदर वर्णन दोहों में किया है। हार्दिक बधाई।"
5 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय शिज्जु शकूर जी चित्र पर सुंदर दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
43 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपकी इस सार्थक प्रस्तुति के कई भाव-शब्द तार्किक हैं। जबकि कुछ छंदों की…"
49 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहा छंद गर्मी में है वायरल, नया नवेला ट्रेंड।प्यास कहे बोतल सुनो,तुम ही सच्ची फ्रेंड।। पानी भी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचनात्मकता पर मंच को कभी संदेह रहा ही नहीं है। बस  शिल्प और विधान को लेकर सचेष्ट हो…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सुझावों को सम्मान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी."
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"घटिया बोतल में बिके, दूषित गंदा नीर| फिर भी पीते लोग हैं, बात बड़ी गम्भीर||// जी बहुत सही बात। खाली…"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"प्रतिक्रिया और सुझाव के लिए हार्दिक आभार आदरणीय। पंक्ति यूँ करता हूँ: तापमान को टाँकना, चाहे जितने…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"छिपन छिपाई खेलता,सूरज मेघों संग। गर्मी के इस बार कुछ, नर्म लग रहे रंग।। -- प्रदत्त चित्र पर क्या…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर ........ वाह, सूरज को…"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जलता सूरज जेठ का, खींचे सारा नीर। एक घूंट से क्या बुझे, तृष्णा है गंभीर।।// वाह. बहुत सुन्दर..…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service