भोजपुरी लघु कथा : जिवुतिया के वरत
रामजियावन मुह लटकवले घरे लउट अइलन अउर उदास होके चउकी प ओलर गइलन, सुरसतिया तनी धिरही से कहलस "काहे चल अइनी जी, गाड़ी घोड़ा आज नइखे चलत का ? ना हो अइसन बात नईखे, राम जियावन तनिक बोझिल मन से बोलले, हम त कामो पर गइल रही, पर ठिकदरवा कामे बन कर दिहले बा, कहत बा कि आज मजदूर दिवस ह, काम करवला पर सरकार डाण लगा दिही, गाडियों भाड़ा लाग गईल आ कामो ना मिलल, दिन में त काम चल जाई पर रतिया में लईकवन के का खियावल जाई ? एतना बात कहत-कहत रामजियावन के आँख लोरा गईल | सुरसतिया धीर धरावत बोललस, ऐ जी रौआ उदास मत होई, केहू तरे दिन के खोराकी से दू रोटी बचा के हम लइकन के खिया देब, आ हमनी दुनो बेकत बुझ लेवल जाई कि आज *जिवुतिया के वरत ह |
*जिवुतिया वरत : बाल बच्चा के सलामती खातिर बिना पानी, अन्न के भूखे रहे वाला वरत/पूजा
हमार पिछुलका पोस्ट => भोजपुरी ग़ज़ल ( गणेश जी "बागी" )
Tags:
मोनिका जी, सराहना हेतु आभार !
राउर इ कहानी पढ़ी के अपने आप आँखी लोरा गइल ....इ आज के बिलकुल सचाई ब़ा जब आदमी के बिना बरतो के बरत करके परेला
गणेश बेटा
आशीर्वाद
आपकी लघु कथा पढ़ी दो तीन बारथोड़ी थोड़ी समझ आयी
क्षमा याचना एक दिन आ जावेगी समझ हिंदी भी समझ नहीं आती थी 'कृपया इ-पत्र भेझते रहें
धन्यवाद आपकी गुड्डो दादी चिकागो अमेरिका से
गणेश बागी जी आपने कुछ ही शब्दों में गरीबी का भरपूर चित्रण किया है कथा दो तीन बार पढने में पूरी समझ में आ गई |बहुत बहुत बधाई इस सार्थक लघु कथा के लिए |
atyant hee maarmik......katu satya
आभार राज भाई ।
आदरणीय गणेश जी ये कहानी दुबारा पढ़ी ,बहुत ही मार्मिक दिल तक सीधे पंहुचने वाली बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती हुई कहानी है। मजदूर दिवस की बधाई |
गरीब लोग के त रोजे उपवास के तीज आ तेवहार होत रहेला....... .इहे सही भारत के तस्वीर ह..। एखरा के नकारल नइखे जा सकत।
'जिवुतिया के वरत' नामक लघुकथा में बागी जी ने लगभग 100 शब्दों में इतना कुछ कह दिया है कि पाठक अवाक रह जाता है. दिहाड़ी मजदूरों की प्रतिदिन की त्रासद परिस्थितियों का बड़ा प्रभावशाली दृश्य प्रस्तुत किया गया है. मजदूर दिवस की पृष्ठभूमि में एक मजदूर की भूखे पेट रहने की विवशता सचमुच एक आयरनी है. कहानी का अंत हर संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित करने वाला है. बधाई.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |