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चिंतन, लेखन, मनन हैं, यही जीविका काम !
मन-पन्छी उड़ता रहे, कहाँ मिले विश्राम ??
hamaree shubh kamna ke, bandhen bandanvaar shat-shat..
गुड्डो-दादी
संजीव 'सलिल'
*
गुड्डो नन्हीं खेल कूदती.
खुशियाँ रोज लुटाती है.
मुस्काये तो फूल बरसते-
सबके मन को भाती है.
बात करे जब भी तुतलाकर
बोले कोयल सी बोली.
ठुमक-ठुमक चलती सब रीझें
बाल परी कितनी भोली.
दादी खों-खों करतीं, रोकें-
टोंकें सबको : 'जल्द उठो.
हुआ सवेरा अब मत सोओ-
काम बहुत हैं, मिलो-जुटो.
काँटें रुकते नहीं घड़ी के
आगे बढ़ते जायेंगे.
जो न करेंगे काम समय पर
जीवन भर पछतायेंगे.'
गुड्डो आये तो दादी जी
राम नाम भी जातीं भूल.
कैयां लेकर, लेंय बलैयां
झूठ-मूठ जाएँ स्कूल.
यह रूठे तो मना लाये वह
वह गाये तो यह नाचे.
दादी-गुड्डो, गुड्डो-दादी
उल्टी पुस्तक ले बाँचें.
*********************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…