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सावधान ! शराब कर रही है गरीबो को बर्बाद !

बदन पर कपडे नहीं ,पेट में अनाज नहीं ,पैर में चप्पल नहीं,होठो से शराब लगी होती है .
गरीबी ,जाती और महंगाई से ज्यादा जो चीज़ देश की जनता के लिए बड़ा खतरा है,वह है शराब .शराब के बढ़ते ठेके और बढती खपत गरीबो को गरीब ही नहीं रख रही ,गरीबो के घरो को गाली,मारपीट ,गुस्से,तोड़-फोड़ का निशाना बना रही है.शराब पर तो हर गरीब अपनी आमदनी के बड़ा हिस्सा खर्च कर ही डालता है,बाद में उसका खामियाजा सहने पर और खर्चना पड़ता है .
आम तौर पर लोग शराब उधार में पीते है, इसलिए असली नकली का सवाल नहीं पूछा जाता .किस ने कितनी पि इसका हिसाब नहीं होता .जहा ४ लोग मिले ,एक दुसरे को उकसाते है और उनका एक लीडर बनकर बाकि को लूट लेता है.परिणामतः होता है की लोग शराब की जगह जहर पीते है और बेमौत मारे जाते है.
जब सब कोई जनता है की शराब बुरी चीज़ है फिर क्यों इसकी इतनी छूट है हमारे यहाँ ,यह बात किसी से छुपी नहीं है की देश में हर साल कितने गरीब जहरीली शराब की वजह से मारे जाते है.
हा यह बात अलग है आमिर लोग इस चंगुल में नहीं आते है ,क्योकि उनके पास पैसे है तो वो महँगी बोतले गटकते है .
क्या हमारे सरकार को कोई ऐसी कानून नहीं बनानी चाहिए जिस से उन निर्दोष गरीबो के घर उजड़ने से बचाया जा सके ?
क्या इतनी शराब की छूट देना फायदेमंद है ?अगर नहीं तो सरकार को जरुर ऐसा कोई कानून बनाना चाहिए जिसमे कुछ शर्ते हो जिन्हें पूरा करने के बाद ही आदमी को शराब छूने की इजाजत हो .
और शराब के दुकानों की संख्या में कमी लानी चाहिए ,शराब को केवल शहरी छेत्र में ही बेचने की इजाजत हो,जिस से गरीब जनता इस से दूर रह सके .

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बदन पर कपडे नहीं ,पेट में अनाज नहीं ,पैर में चप्पल नहीं,होठो से शराब लगी होती है .
गरीबी ,जाती और महंगाई से ज्यादा जो चीज़ देश की जनता के लिए बड़ा खतरा है,वह है शराब .शराब के बढ़ते ठेके और बढती खपत गरीबो को गरीब ही नहीं रख रही ,गरीबो के घरो को गाली,मारपीट ,गुस्से,तोड़-फोड़ का निशाना बना रही है.शराब पर तो हर गरीब अपनी आमदनी के बड़ा हिस्सा खर्च कर ही डालता है,बाद में उसका खामियाजा सहने पर और खर्चना पड़ता है .


रत्नेश भाई प्रणाम, आज Open Books के मन्च से बहुत ही खाश और समाजिक सरोकार के मुद्दे को आपने उठाया है। शराब खराब है इसमे किसी को कोई शक नही होना चाहिए, रह गई इसके असर की बात तो गरीब और अमीर पर इसका व्यापक और अलग अलग प्रभाव पड़ता है, आपने जैसा कि लिखा भी है, अगर किसी कि कमाई १००० प्रति दिन कि है यानि ३०००० प्रति माह और वो माह मे १५०० का शराब पी गया तो वो केवल अपनी कमाई का ५% शराब पर खर्चा कर अच्छे क्वालिटी का शराब पिया जिससे उसके सेहत पर और जेब पर कुछ खाश अन्तर नही आया, पर वही जब एक दिहाड़ी मजदूर जो दिन भर मे १५० मुश्किल से कमाता है, और उसमे से ५० रू घटिया शराब पर लगा देता है तो उसका सेहत और जेब दोनो बर्बाद हो जाता है साथ मे उसका पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है ।

क्या इतनी शराब की छूट देना फायदेमंद है ?अगर नहीं तो सरकार को जरुर ऐसा कोई कानून बनाना चाहिए जिसमे कुछ शर्ते हो जिन्हें पूरा करने के बाद ही आदमी को शराब छूने की इजाजत हो .
और शराब के दुकानों की संख्या में कमी लानी चाहिए ,शराब को केवल शहरी छेत्र में ही बेचने की इजाजत हो,जिस से गरीब जनता इस से दूर रह सके


बात शराब पीने कि छुट देने कि नही है, बात ये है कि शराब से होने वाली मौतो के प्रति आम आदमी को जागरूक कैसे किया जाय, अधिकतर मौत अवैध जहरीली शराब पीने से होती है, जो कही ना कही पुलिस के नाक के नीचे चल रही होती है, अगर प्रशासन चाह ले तो ये सब अवैध शराब की फैक्टरिया एक दिन मे बन्द हो सकती है,
दुकान केवल कम कर देने से तो अवैध धन्धेबाज सब की चान्दी हो जायेगी,

कुछ मेरे समझ से उपाय---

१- आम आदमी को शराब के बूराई और नुकसान के प्रति जागरूक एवं sikchhit करना
२- अवैध शराब के कारोबारियो पर रोक लगाना,
३- जिस एरिया मे जहरिली शराब का केस आये उस एरिया के थाना प्रभारी पर कार्यवाही करना ।
bahut sahi mudda uthaya hai aapne ratnesh bhai.....sharab sahi me hamare samaj ki bahut bari burayi hai....ameer log to mahange daaru peete hain usse unlogo ko kuch nahi hota hai.....lekin gareeb log jo iske aadi hpo chuka hai wo bemaut maare jaa rahe hain....unke ghar barbaad ho jaa rahe hain....sharab ke wajah se hi jo bhi unke paas thodi bahut jameen ya paise jo bhi rahte hain saaf ho jate hain....
hamare sarkaaar ko chahiye ki wo sharab jaisi kharab chij ko poori tarah se banned kar de...tab hi samaj ka kuch bhala ho sakta hai................
etna badhiya mudda uthawe khatir bahut bahut dhanyabaad....
hum fer kuch likhab lekin tab tak baaki log ke bhi raay dekh lee ki kaa raay baa....okra baad hum fer se kuch likhab................
ganesh bhaiya ye baat main manta hu ki maut sirf jahrili sarab pine se hoti hai.lekin baat yaha sirf maut ki nahi hai balki sarab se hone wale nuksan se hai.aap ek baat bataiye ki sarab se advantage kya hai ...........lekin disadvantage infinite jo ki 90% garibo par effective hai.
ye baat alag hai ki sarab se gov ko kaphi fayda ho rahi hai, jis se ki dino-din sarab ke dukano me badhotari ho rahi hai.
बात शराब पीने कि छुट देने कि नही है, बात ये है कि शराब से होने वाली मौतो के प्रति आम आदमी को जागरूक कैसे किया जाय, अधिकतर मौत अवैध जहरीली शराब पीने से होती है, जो कही ना कही पुलिस के नाक के नीचे चल रही होती है, अगर प्रशासन चाह ले तो ये सब अवैध शराब की फैक्टरिया एक दिन मे बन्द हो सकती है,

to maine bhi yahi batane ki kosis ki hai iske prati thos kadam uthani chahiye hamare prasasan/sarkar ko.
agar hum baat jahrili sarab ki na kare to .....bhi dher sari nuksane hai sarab se.
aur main aapse yah janana chahunga ki agar sarab ki dukan kholne ke liye ,ya kharidne ke liye kuchh condition lgaye jaye to fayda nahi hoga .....aaj ke date me 12 saal ka ladka jata hai aur dukan se achhi bottle kharid ke le aata hai.to main in sari chijo ko avoid karne ki baat kar raha hu.
aur ek chij aur sarab dukan harsambhav town se bahar kholne ki hi ijajat di jaye....jaisa ki aaplog roj paper me dekhte honge ki ....aaj yaha mohalla me sarab dukan kholne ka birodh hua....kal waha hua....
aur main aapke is baat se bilkul sahmat hu ki awaidh sarab ki bhathio ko band karwane se garibo ko jyada fayda hoga.aur yah tabhi sambhav hai jab hum aur aap is ke liye katibadh ho aur prasasan sath de......aur prasasan tabhi saas leti hai jab uper se koi order aati hai.

Ganesh Jee "Bagi" said:
बदन पर कपडे नहीं ,पेट में अनाज नहीं ,पैर में चप्पल नहीं,होठो से शराब लगी होती है .
गरीबी ,जाती और महंगाई से ज्यादा जो चीज़ देश की जनता के लिए बड़ा खतरा है,वह है शराब .शराब के बढ़ते ठेके और बढती खपत गरीबो को गरीब ही नहीं रख रही ,गरीबो के घरो को गाली,मारपीट ,गुस्से,तोड़-फोड़ का निशाना बना रही है.शराब पर तो हर गरीब अपनी आमदनी के बड़ा हिस्सा खर्च कर ही डालता है,बाद में उसका खामियाजा सहने पर और खर्चना पड़ता है .


रत्नेश भाई प्रणाम, आज Open Books के मन्च से बहुत ही खाश और समाजिक सरोकार के मुद्दे को आपने उठाया है। शराब खराब है इसमे किसी को कोई शक नही होना चाहिए, रह गई इसके असर की बात तो गरीब और अमीर पर इसका व्यापक और अलग अलग प्रभाव पड़ता है, आपने जैसा कि लिखा भी है, अगर किसी कि कमाई १००० प्रति दिन कि है यानि ३०००० प्रति माह और वो माह मे १५०० का शराब पी गया तो वो केवल अपनी कमाई का ५% शराब पर खर्चा कर अच्छे क्वालिटी का शराब पिया जिससे उसके सेहत पर और जेब पर कुछ खाश अन्तर नही आया, पर वही जब एक दिहाड़ी मजदूर जो दिन भर मे १५० मुश्किल से कमाता है, और उसमे से ५० रू घटिया शराब पर लगा देता है तो उसका सेहत और जेब दोनो बर्बाद हो जाता है साथ मे उसका पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है ।

क्या इतनी शराब की छूट देना फायदेमंद है ?अगर नहीं तो सरकार को जरुर ऐसा कोई कानून बनाना चाहिए जिसमे कुछ शर्ते हो जिन्हें पूरा करने के बाद ही आदमी को शराब छूने की इजाजत हो .
और शराब के दुकानों की संख्या में कमी लानी चाहिए ,शराब को केवल शहरी छेत्र में ही बेचने की इजाजत हो,जिस से गरीब जनता इस से दूर रह सके


बात शराब पीने कि छुट देने कि नही है, बात ये है कि शराब से होने वाली मौतो के प्रति आम आदमी को जागरूक कैसे किया जाय, अधिकतर मौत अवैध जहरीली शराब पीने से होती है, जो कही ना कही पुलिस के नाक के नीचे चल रही होती है, अगर प्रशासन चाह ले तो ये सब अवैध शराब की फैक्टरिया एक दिन मे बन्द हो सकती है,
दुकान केवल कम कर देने से तो अवैध धन्धेबाज सब की चान्दी हो जायेगी,

कुछ मेरे समझ से उपाय---

१- आम आदमी को शराब के बूराई और नुकसान के प्रति जागरूक एवं sikchhit करना
२- अवैध शराब के कारोबारियो पर रोक लगाना,
३- जिस एरिया मे जहरिली शराब का केस आये उस एरिया के थाना प्रभारी पर कार्यवाही करना ।
Ratnesh bhai, main aap ki saari baato sey itfaak rakhta hu, mainey suruwat hi kiya hai "शराब खराब है इसमे किसी को कोई शक नही होना चाहिए" mai ya koi bhi samajhdar byakti sharab ko achha nahi kah sakta hai, aur jab sharab Kharab hai to advantage ki baat hi nahi uthati, ha agar phir bhi govt key view sey dekha jaay to rajaswaa ki prapti hoti hai,aek yahi advantage hai, par badaley mey govt ko Health Care mey paisa kharch karna padtaa hai,
Sharab ki nayi dukano ko kholaney aur purani ko chalaney key liyey kuch guideline pahaley sey hi tay hai, par sawaal yey uthata hai ki kya kaanoon bana bhar deney sey uskaa impliment ho pata hai, mili bhagat sey Patna jaisey sahar mey bhi khuleyaam kanoon ki dhajiyaa udaatey huwey educational Institute, Dharmik asthan, Bank aadi key bilkul bagal mey sharab ki dukaney khuli hai aur colony walo key birodh key bawjood pichaley kai saalo sey dhadaley sey chal rahi hai yey dukaney,

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