गणेश जी "बागी"
(घनाक्षरी छंद)
(१)
तीज त्यौहार अपने, देश की पहचान है,
सब जन मिल जुल, त्यौहार मनाइये |
होली,छठ,दीपावली, ईद और दशहरा,
एक दूसरे के संग, खुशियाँ लुटाइये |
पंकज को राखी बांधे, बहना जो परवीना,
सरिता को दिया वचन, सैफ़ जी निभाइये |
प्यार का प्रतीक राखी, आपसी सौहार्द बने,
एकता की डोर "बागी", बाँधिए बंधाइये ||
दो घनाक्षरी :-
(१)
बहना का प्यार राखी, भैया का दुलार राखी,
प्रेम का त्यौहार राखी, ख़ुशी से मनाइये|
घर पर है बहना, नौकरी पर भईया,
ख़ुद घर आइये या, हमें बुलवाइये |
राखी का मौका भईया, आपका है इन्तजार,
फोन कर-कर भैया, हमें ना सताइये |
राखी बंधाई भईया, चाहूँ बस एक वादा,
देश की करोगें रक्षा, वचन निभाइये ||
(२)
कच्चा सूत भेज रही, राखी बड़ी अनमोल,
समझो ना धागा ये तो, बहना का प्यार है |
मैं तो भैया बड़ी दूर, आने से हूँ मजबूर,
याद कर तुम्हें मन, रोता जार-जार है |
तनहा ना समझना, मैं हूँ तेरे आस-पास,
भाई की नज़र देखो, बहना हज़ार है |
वही जो बांधेगी राखी, जिसका ना कोई भाई,
उसको लगेगा जैसे, ख़ुशी ये अपार है ||
घनाक्षरी (हास्य प्रधान)
राखी गई राखी लाने,जो राखी के बाज़ार में,
लग गई भीड़ वहाँ, देखते हज़ार में |
गज़ब देश की है ये, अजब कहानी देखो,
आगे पीछे टी वी वाले, घूमते बेकार में |
मीका वाला दृश्य राखी, फिर कब दिखाओगी,
कोई पूछे बेबी तुम, हो किसके प्यार में |
हँस-हँस, छेड़-छेड़, पूछे छोरें बार-बार,
करोगी कब इन्साफ, "बागी" का बिहार में ||
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श्री अम्बरीश श्रीवास्तव
एक छप्पय:
लेकर पूजन-थाल सवेरे बहिना आई.
उपजे नेह प्रभाव, बहुत हर्षित हो भाई..
पूजे वह सब देव, तिलक माथे पर सोहे.
बाँधे दायें हाथ, शुभद राखी मन मोहे..
हों धागे कच्चे ही भले, बंधन दिल का शेष है..
पुनि सौम्य उतारे आरती, राखी पर्व विशेष है..
(छप्पय छंद : दो रोला (११+१३) व एक उल्लाला (१५+१३) के संयोग से निर्मित छः चरणों वाला अर्ध सम मात्रिक संयुक्त छंद है )
दो कुण्डलियाँ:
(1)
रक्षा बंधन पर्व दे, खुशियाँ शत अनमोल,
बहना-भैया हैं मगन, मीठा-मीठा बोल.
मीठा-मीठा बोल, सभी से बढ़कर आगे.
बंधन सदा अटूट, बने राखी के धागे,
अम्बरीष यह नेह, सदा दे यह ही शिक्षा.
बहना बसी विदेश, करें मिल इसकी रक्षा..
(2)
आई श्रावण-पूर्णिमा, रक्षाबंधन नाम,
जन-जन में उल्लास है, हर्षित अपने राम.
हर्षित अपने राम, खिलाये सिवईं बहना,
सदा रहे खुशहाल,यही हम सबका कहना.
अम्बरीष जो आज, प्रकृति खुशहाली लाई.
सब वृक्षों को बाँध, सभी संग राखी भाई..
........................................................
सच्चा बंधन स्नेह का, जिस पर हमको गर्व.
आने को अब है यहाँ, रक्षा बंधन पर्व,
रक्षा बंधन पर्व, सभी पर्वों से न्यारा,
बँधे स्नेह की डोर, हमें सबसे है प्यारा.
बहना का यह नेह, भले धागा हो कच्चा.
दुनिया में है आज, यही रिश्ता है सच्चा ..
.........................................................
भाई मेरे कुण्डली, सहज स्नेह बरसाय,
बहना का सुन प्रश्न यह मन पुलकित हो जाय.
मन पुलकित हो जाय, मिले अब ऐसी बहना,
आँगन में हो आज, चहकती जैसे मैना.
अम्बरीष यह सोंच, आँख भी भर-भर आई,
बहना नेह-दुलार, हमें भी मिलता भाई..
......................................................
बहना की सुधि लीजिये, उसे भेजिए प्यार.
रक्षा बंधन आ रहा, खुशियों का त्यौहार ..
अदभुत है त्यौहार यह, हमें आज है गर्व..
भाई बहन के स्नेह का, बड़ा अनोखा पर्व..
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श्री योगराज प्रभाकर
पाँच घनाक्षरी छंद
(१)
मेरी जो कलाई पर, धागा बाँधा प्रेम वाला
इसकी सदा ही मैं तो, आन को निभाऊँगा !
जिन राहों से तू चल, मेरे घर तक आए
तेरी उन्हीं राहों पर, पलके बिछाऊँगा !
आँखें तेरी पीठ पर, सदा ही रहेंगी मेरी
जब तू पुकारेगी मैं, दौड़ा चला आऊँगा !
जिस दर जाके बसी, जिनके तू संग जुड़ी,
उस पूरे कुनबे की, खैर मैं मनाऊँगा !
(२)
घर में बेगाने गई, बस में पराये हुई,
तेरी मजबूरियों का, मुझे अहसास है !
बापू चुपचाप लेटा, बैठी है उदास अम्मा,,
गुम हुआ घर से तो, जैसे उल्लास है !
मिली है संदूक में से, तेरी कपडे की गुड्डी
तेरे नहीं आने से वो, बहुत उदास है !
बात भले चली गई, अगले बरस पर,
पूरी होगी आस मेरी, मुझे विश्वास है !
(३)
सोने रंगी राखी में है, प्यार सारा बाँधा हुआ
सुन्दर कलाई पर, इसको सजाईए !
आपने कहा था भय्या, दूँगा साड़ी ज़री वाली
राखी बंधवानी है तो, वादा वो निभाईए !
देवरानी ताने मारे, जेठानी करे ठिठोली,
अगले बरस खुद, घर मेरे आईए !
मेरे लिए जिंदगी का, तोफा सब से बड़ा ये
हम एक माँ के जाये, इसे न भुलाईए !
(४)
पैदा होने दी न जाती, पेट ही में मारी जाती,
कभी सुनो जग वालो, उसके प्रलाप को !
बच न सकेंगी फिर, आने वाली नस्लें भी,
नहीं झेल पाएंगी वो, इस महाश्राप को !
सूनी रह जाएंगीं ये, भाइयों की कलाईयाँ,
मिल जुल कर सब, रोकें इस पाप को !
जब रानी झांसी कोई, बहना रही न कोई,
कौन राखी बांधेगा तो, शिवा को प्रताप को !
(५)
सारी जिंदगी ही मुझे, मान ये रहेगा सदा,
तेरे घर मिल मुझे, सदा ही सम्मान है !
रहा रखवाला सदा, मेरी आबरू का भय्या ,
तेरी ही मैं बहना हूँ, मुझे अभिमान है !
जब तक धरती है, तेरी जिंदगानी रहे
तुम्ही से तो भय्या मेरी, आन बान शान है !
भेजूं मैं दुआएं सदा, लिख के हवायों पर
आजहनी बापू का तू , आखरी निशान है !
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श्री रवि कुमार गुरु
७ घनाक्षारियां
(१).
पर्व रक्षा बंधन का, खुशियाँ है लेके आया,
राखी बांधे बहनिया, भय्या मुस्कात हैं !
पूछती है बहना ये, तोफा कैसा दोगे भाई,
आरती दिखाते बोली, क्या तुम्हारे हाथ हैं ?
राखी बांधूंगी मैं नहीं, पापा से बोल मैं दूंगी,
चाकलेट देता नहीं, खाली मेरा हाथ है !
आपस के झगडे ये, अच्छे नहीं बहना री,
सबसे सौगात बड़ी, अपना ये साथ हैं !
(२)
सावन का मास आया, भय्या मोरे नहीं आए,
राखी बांधूंगी मैं किसे, मन घबराए हो !
कहे तू रुलाए भाई, काहे तू सताए भाई
पावन पर्व हैं आजा , बहना बुलाए हो !
नहीं मांगूंगी खजाना, खाली हाथ चले आना,
भय्या मेरे पास आजा, जिया खिल जाए हो !
सबको दे रघुराई, एक प्यारा प्यारा भाई ,
ताकि ये जहान सारा, खुशियाँ मनाए हो !
(३)
राखी के पवन पर्व , आओ ये कसम खाएं ,
तोहफे में बहनों को , आजादी दिलाएंगे !
गली और नुक्कड़ों पे, खड़े सब लफंगों को ,
सौंपेंगे पुलिस को या, मार के भगायेंगे !
एक बार मौका देंगे, उनको सुधरने का,
फिर खोज खोज कर, राखी बंधवाएंगे !
ऐसा गर हो गया तो , बहने भी खुश होंगी,
फिर हम साथ साथ , खुशिया मनाएंगे !
(४)
सावन महीना आया, फोन किया बहना ने
चार दिन पहले ही, भैया हम आयेंगे !
पिंकी भी बहुत खुश, अमन मचाये शोर ,
दोनों का ये कहना है, मामा घर जायेंगे !
जीजा जी के लिए सूट, बहना के लिए साड़ी ,
बच्चों को खिलोने ढेरों, हम दिलवाएंगे !
जो कहेगी लेके देंगे, बस तुम चली आना,
तेरी राहों भैया भाभी, पलकें बिछायेंगे !
(५)
भूल से ही बाँधी चाहे, राखी कान्हा की कलाई ,
जब कोई नहीं साथ, वो ही आया भाई हैं !
भाई हो तो कृष्णा सा, आया जो पुकार सुन
जिसने पाँचाली की भी , इज्जत बचाई हैं !
कंस भी था एक भाई, बहना को कैदी किया,
भानजे के हाथों मरा, कड़वी सच्चाई है !
एक भाई रावण था, सुन झूठ बहना का,
भूल ऐसी कर बैठा, लंका भी गंवाई है ! ,
(६)
भाई बहाना का नाता, पावन पुनीत बड़ा,
इतिहास में भी पढ़ी, इसकी बड़ाई हैं !
भाई जब नहीं आए , परेशान बहना हो ,
भाई आने पर फिर, ख़ुशी घर आई है !
राखी का त्यौहार आया, खुश भाई बहना हैं,
माता पिता की भी आँखें, आज मुस्काई हैं !
जिस घर बहना न, पूछे उन्हें जाके कोई,
कितनी अखरती हैं , सूनी जो कलाई हैं !
(७)
सावन के महीने में, आता ये पावन पर्व ,
सभी के हर्षित मन , दे रहे बधाई जी !
कहूँ ओर हरियाली , तन पर हरी साडी ,
बहना ने हरी चूड़ी, खूब खनकाई जी !
भय्या का संदेसा पाके, भागी भागी चली आई,
आशीषों के दुआयों के, थाल लेके आई जी !
बहना को आते देख, भय्या को लगे है ऐसे,
गया हुआ बचपन, साथ लेके आई जी !
....................................................
मेहरी के डरे काहे , तुहू नाही आईला हो ,
तोहरे खातिर जिया , घबराए ला नु हो !
मति दिह कुछु मोहे ,चुपे चुपे चली आवा ,
भइया तोहरे लगे , मन रहेला नु हो !
भउजी के समझाव , उन्कारो त भाई बाटे ,
भाई लगे नाही आवे , त बुझाये ला नु हो !
जहिया उ बुझिहन , मनवा में ख़ुशी होई ,
बड़ी मुस्किल से ख़ुशी , इ भेटायेला नु हो !
...................................................
गावं के बजरिया में , बहिना दुकनिया में ,
चुनी चुनी राखी लेली , भाई के बढाई हो !
फिर जाली बहिना हो , हलूवाई दुकनिया ,
भरी झोला ख़रीदे ली , लडुआ मिठाई हो !
रिक्सा के बोली दिहली , सूबे सूबे आइहा तू ,
पहिला ही गाड़िया से , आइहन भाई हो !
ले के तू चली आइहा , हमारे दुआरिया पे ,
रखिया बाधी भाई के , देहब मिठाई हो ,
......................................................
(1)
सावन में बहना को , भैया का रहे इंतजार ,
भैया आयेंगा जरुर , पूरा विश्वास हैं !
सावन शिव भक्तो का, सबसे हैं प्यारा मास
सुनेंगे भोले भंडारी , यही लगी आस हैं !
पास पास रहे ख़ुशी, सदा रहे दूर गम ,
भैया जो दुलारा मेरा , बहना के पास हैं !
रक्षा बंधन के दिन , मिलेगी सारी खुशियाँ ,
बहना लिए आरती , आज दिन खास है !
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(2)
आज रक्षा बंधन हैं , यारों पर्व हैं रक्षा का ,
माँ भारती की रक्षा की, शपथ उठाएंगे ,
जान चली जाये भले, आँच नहीं आने देंगे ,
दुश्मन याद करेंगे , ये वादा निभाएंगे !
बहना तो बहना हैं , ये माँ भारती माँ मेरी ,
समझ ले वैरी अब, उसको मिटायेंगे !
चाहे जितना भी लूटो , पांच बरसों के लिए,
अगले चुनाव में तो , तुझको भगायेंगे ,
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श्री सौरभ पाण्डेय
(छंद - दोहा)
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नाजुक धागा भर नहीं, राखी है विश्वास ।
सात्विकता संदर्भ ले, धर्म-कर्म-सुख-आस ॥
प्रकृति के उद्येश्य और दर्शन के मत एक |
सुत-कन्या आधार-बल, राखी मध्य विवेक ||
राखी बस धागा नहीं, उन्नत भाव प्रतीक |
गर्वीले भाई रखें, बहना को निर्भीक ||
आन मान सम्मान का, रक्षाबन्धन पर्व |
धर्म-पताका ले बढें, भाई-बहन सगर्व ||
मान रखो, हे माधवा, तारो हर दुख-ताप |
ज्यौं बाँधे राजा बली, त्यौं मैं बाँधूँ आप ||
भाई बल परिवार का, तो बहना शृंगार |
कठिन समय दुर्दम्य पल, मिलजुल हो उद्धार ||
एक बहन कर्णावती, कुँवर हुमायूँ एक |
मुँहबोली आक्रांत जब, पंथ रहा ना टेक ||
रिश्ता सुगम बनाइये, मध्य न आवे देह |
बेटी-बेटे रत्न दो, दोनों पर सम-स्नेह ||
छायी हो हरसूँ खुशी, हों रिश्ते मज़बूत |
घर-घर में किलकारते दीखें बेटी-पूत ||
राखी भरी कलाइयों के हैं अर्थ सटीक |
लीक छोड़ भाई चलें, बहना खींचे लीक ||
नन्हें-नन्हें हाथ में नन्हीं राखी बाँध |
मुँह मीठा बहना करे - "मेरा भाई चाँद" ||
बाबू सोचे क्या करूँ, क्या दूँ राखी गिफ़्ट ?
दोनों दीदी के लिये माँ-दादी से लिफ़्ट !!
जबसे बहना जा बसी जहाँ बसे घनश्याम |
राखी बिना कलाइयाँ तबसे उसके नाम ||
मेरे मन की मान थी, मन की ईश सुनाम |
मन से मन को तारती, बहना याद तमाम ||
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प्रस्तुत सवइये पर सुधी गुणी-जनों की दृष्टि पड़े तो यह उचित अर्थ पा जाय --
बहिना कहती मनमोहन से जिनके शुभ नाम कई जपतीं
बलदाउ यहाँ लख ठाढ़ भए अब राखि लिये कितनी सहतीं
कउ बाँधि रखो घनश्याम मनोहर जो न बँधें सबही कहतीं
अति क्रोधित है बहिना शुभदा लइ राखि कहो कितनी रुकतीं
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श्रीमती शन्नो अग्रवाल
आया है राखी का फिर से पावन त्योहार
छिपा हुआ है इसमें भाई-बहिन का प्यार l
जीवन तो यादों की बन गया एक कहानी
इस रिश्ते को जोड़े धागे की एक निशानी l
मिलेगी तुमको मेरी राखी ऐसा है विश्वास
मान हमेशा रखेगी मेरा करूँगी ऐसी आस l
माँग रही हूँ दुआ यहाँ पर प्रभु करें कल्यान
बंधी रहे ये डोर हमेशा जब तक मुझमे जान l
मन में करके याद मुझे तुम ये राखी बंधवाना
दीदी ने भेजी है राखी सोच के खुश हो जाना l
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श्री अरुण कुमार पाण्डेय "अभिनव"
नेह पुष्प की पांखुरी रक्षा का अनुबंध |
भाई बहन के प्रीत की मधुर सुवासित गंध ||
ये धागे अनमोल हैं नीले पीले लाल |
प्रेम तिलक में फब रहा हर भाई का भाल |
मुझ बहना की प्रीत का नहीं है कोई मोल |
नेग में भैया दो मुझे बस दो मीठे बोल ||
पैसों से मत मापिये भाई बहन का प्यार |
स्नेह का रक्षा सूत्र है आशीषों का हार ||
अब तो हर त्यौहार पर चढ़ा बाजारी नूर |
कैडबरी सब खा रहे भूल के मोतीचूर ||
रक्षा के इस पर्व पर धर दोहों का वेश |
अभिनव सबको दे रहा शुभकामना सन्देश ||
_____________________________
डॉ संजय दानी
इस साल कलाई सूनी रह जायेगी,
बीमार बहन शायद ही बच पायेगी।
एक बरस के भांजे का ,क्या होगा कल,
कौन लगायेगा उसके रुख पे काजल।
जीजू ,दूजी शादी की कोशिश में है,
भांजे का बचपन यारो गर्दिश में है।
ऐसे में क्या राखी क्या रक्षा- बंधन,
क्या पूजा पाठ,ख़ुदा क्या, कैसा,भगवन।
ऐसी पापी किस्मत मैंने पाई है,
छोटी बहन को कांधा देता भाई है।
प्यारी बहना को आग दे कर आया हूं,
घर में दो मुट्ठी ख़ाक ले कर आया हूं।
रक्षा का फ़र्ज़ अगर हम न निभा पायें,
तो फिर बहना से राखी क्यूं बंधवायें।
अब ये बोझ मुझे मरते तक है सहना,
अच्छा होता न होती मेरी बहना।
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श्री नविन सी चतुर्वेदी
छन्द - कुण्डलिया
विषय - राखी
(1)
बहना की दादागिरी, भैया की मनुहार.
ये सब ले कर आ रहा, राखी का त्यौहार
राखी का त्यौहार, यार क्या कहने इस के
वो राखी सरताज, बीस बहना$ हों जिस के
ठूंस ठूंस तिरकोन*, मिठाई खाते रहना
फिर से आई याद, हमें राखी औ बहना
(2)
सबसे पहले जो सगी - बहन, उसे अधिकार
उस के पीछे साब जी लाइन लगे अपार
लाइन लगे अपार, तिलक लगवाते जाओ
गिन गिन के फिर नोट तुरंत थमाते जाओ
मॉडर्न डिवलपमेंट हुआ भारत में जब से
ये अनुपम आनंद छिन गया यारो सब से @
*मथुरा में समोसे को तिरकोन कहा जाता है [त्रिकोण जैसा दिखने के कारण]
$ अपनी बहन, चाची, काकी, भुआ, मौसी और मामियों की लड़कियां मिला कर बीस बहनें भी होती थीं किसी किसी के
@ सुख भरी यादों के बीच दुखांत तो है, पर समय की सच्चाई भी यही है
____________________________________
श्री संजय मिश्रा "हबीब"
दो कुण्डलिया chhand
(१)
जीवन बगिया में यही, खुशियों की पहचान
दीदी तेरा प्रेम ज्यों, भगवत का वरदान
भगवत का वरदान, रहे जीवन में हरदम
और जले बन दीप, मिटाता राहों के तम
मनाय तेरा भाइ, कलाई में राखी बन
छलके तेरा प्यार, महकने लगता जीवन.
(२)
तेरे मेरे नेह का, यह पावन त्यौहार
दीदी देख मना रहा, आज सकल संसार
आज सकल संसार, कलाई बनी है उपवन
मन में है उत्साह, लौट के आया छुटपन
मनाय तेरा भाइ, बढे यह सांझ सवेरे
सुबह सदा मुसकाय, राह में मेरे तेरे.
...................................................
खट-मीठ यादों की फुहारें रिमझिम liye
बहना के नयनों में मचल रहा प्यार hai
छुट्टियों में भाई मेरा आयेगा उछाह liye
भाई संग आने वाला राखी का तेवहार hai
भाई है सिपाही रक्षा देश की वो करता hai
सीमाओं में दिन-रात लेकर हथियार hai
आके गाँव खूब धमाचौकड़ी मचाएगा वो
माँ और बाबा को भी उसका ही इंतज़ार है.
बीरसिंह आयेगा खबर मिली बिंदिया को
सपनों में उसके होने लगा विसतार है
शहर से पिक्चर देख आने की भी योजना
दोस्तों ने किया हुआ पहले से ही तैयार है
टी. वी. ने दिखाया, घुसपैठियों से लड़ाई में
भाई के भी नाम का शहीदों में शुमार है
माता, बाबा, दोस्त, सारा गाँव ही तो सन्न खडा
आँखों से बहना के बहा, राखी का त्यौहार है.
........................................................
आया राखी का त्यौहार, लाया हर्ष भी अपार
छाई है बहार धरा, सौरभ उडात है.
खुशियों का खलिहान, छूने लगा आसमान
बादलों का भीगा गान, अम्बर सुनात है.
थाली भी सजाये रखे, राखियाँ मंगाए रखे,
बहना की अंखियों में, प्यार मुसकात है.
भाई बड़ा भाग वाला, हाथों अपने निवाला
बहना खिलाये जाए, हृदय जुडात है.
_____________________________
आचार्य श्री संजीव वर्मा "सलिल"
घनाक्षरी रचना विधान :
आठ-आठ-आठ-सात, पर यति रखकर, मनहर घनाक्षरी, छन्द कवि रचिए.
लघु-गुरु रखकर, चरण के आखिर में, 'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिये..
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम, गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए.
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण- 'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए..
*
सावन में झूम-झूम, डालों से लूम-लूम, झूला झूल दुःख भूल, हँसिए हँसाइये.
एक दूसरे की बाँह, गहें बँधें रहे चाह, एक दूसरे को चाह, कजरी सुनाइये..
दिल में रहे न दाह, तन्नक पले न डाह, मन में भरे उछाह, पेंग को बढ़ाइए.
राखी की है साखी यही, पले प्रेम-पाखी यहीं, भाई-भगिनी का नाता, जन्म भर निभाइए..
*
बागी थे हों अनुरागी, विरागी थे हों सुहागी, कोई भी न हो अभागी, दैव से मनाइए.
सभी के माथे हो टीका, किसी का न पर्व फीका, बहनों का नेह नीका, राखी-गीत गाइए..
कलाई रहे न सूनी, राखी बाँध शोभा दूनी, आरती की ज्वाल धूनी, अशुभ मिटाइए.
मीठा खाएँ मीठा बोलें, जीवन में रस घोलें, बहना के पाँव छूलें, शुभाशीष पाइए..
*
बंधन न रास आये, बँधना न मन भाये, स्वतंत्रता ही सुहाये, सहज स्वभाव है.
निर्बंध अगर रहें, मर्याद को न गहें, कोई किसी को न सहें, चैन का अभाव है..
मना राखी नेह पर्व, करिए नातों पे गर्व, निभायें संबंध सर्व, नेह का निभाव है.
बंधन जो प्रेम का हो, कुशल का क्षेम का हो, धरम का नेम हो, 'सलिल' सत्प्रभाव है..
*
संकट में लाज थी, गिरी सिर पे गाज थी, शत्रु-दृष्टि बाज थी, नैया कैसे पार हो?
कर्मावती महारानी, पूजतीं माता भवानी, शत्रु है बली बहुत, देश की न हार हो..
राखी हुमायूँ को भेजी, बादशाह ने सहेजी, बहिन की पत राखी, नेह का करार हो.
शत्रु को खदेड़ दिया, बहिना को मान दिया, नेह का जलाया दिया, भेंट स्वीकार हो..
*
महाबली बलि को था, गर्व हुआ संपदा का, तीन लोक में नहीं है, मुझ सा कोई धनी.
मनमानी करूँ भी तो, रोक सकता न कोई, हूँ सुरेश से अधिक, शक्तिवान औ' गुनी..
महायज्ञ कर दिया, कीर्ति यश बल लिया, हरि को दे तीन पग, धरा मौन था गुनी.
सभी कुछ छिन गया, मुख न मलिन हुआ, हरि की शरण गया, सेवा व्रत ले धुनी.
बाधा दनु-गुरु बने, विपद मेघ थे घने, एक नेत्र गँवा भगे, थी व्यथा अनसुनी.
रक्षा सूत्र बाँधे बलि, हरि से अभय मिली, हृदय की कली खिली, पटकथा यूँ बनी.
विप्र जब द्वार आये, राखी बांध मान पाये, शुभाशीष बरसाये, फिर न हो ठनाठनी.
कोई किसी से न लड़े, हाथ रहें मिले-जुड़े, साथ-साथ हों खड़े, राखी मने सावनी..
................................................................................................
दोहा सलिला:
राखी साखी स्नेह की
संजीव 'सलिल'
*
राखी साखी स्नेह की, पढ़ें-गुनें जो लोग.
बैर द्वेष नफरत 'सलिल', बनें न उनका रोग..
*
रेशम धागे में बसा, कोमलता का भाव.
स्वर्ण-राखियों में मिला, इसका सदा अभाव..
*
राखी रिश्ता प्रेम का, नहीं स्वार्थ-परमार्थ.
समरसता का भाव ही, श्रेष्ठ- करे सर्वार्थ,,
*
मन से मन का मेल है, तन का तनिक न खेल.
भैया को सैयां बना, मल में नहीं धकेल..
(ममेरे-फुफेरे भाई-बहिन के विवाह का समाचार पढ़कर)
*
भाई का मंगल मना, बहिना हुई सुपूज्य.
बहिना की रक्षा करे, भैया बन कुलपूज्य..
*
बंध न बंधन में 'सलिल', यदि हो रीत कुरीत.
गंध न निर्मल स्नेह की, गर हो व्याप्त प्रतीत..
*
बंधु-बांधवी जब मिलें, खिलें हृदय के फूल.
ज्यों नदिया की धार हो, साथ लिये निज कूल..
*
हरे अमंगल हर तुरत, तिलक लगे जब माथ.
सिर पर किस्मत बन रखे, बहिना आशिष-हाथ..
*
तिल-तिल कर संकट हरे, अक्षत-तिलक समर्थ.
अ-क्षत भाई को करे, बहिना में सामर्थ..
*
भाई-बहिन रवि-धरा से, अ-धरा उनका नेह.
मन से तनिक न दूर हों, दूर भले हो गेह..
......................................................
दोहा सलिला:
अलंकारों के रंग-राखी के संग
संजीव 'सलिल'
*
राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
संकट में भाई सदा, पहलें आयें याद..
राखी= पर्व, रखना.
राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..
अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..
हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..
कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना.
गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
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श्री बृज भूषण चौबे
राखी जब बहना ने, बांधी भाई कलाई पे
कही न जात मन मे, होत जो उल्लास है ,
बंधन ना है ये छोटा, न धागा बस रेशम
ये तो रिश्ता एसा जो, हर रिश्तों मे खास है ,
बहन की है प्रार्थना, भाई विरवान बने
करे जग की रक्षा ये, मन मे यही आस है ,
द्रौपदी पुकारे बिच, सभा मे झुकाए सिर
आकर बचाए लाज, जो मथुरा निवास है ,
नेह मे बंधा राहे ये, पावन रिश्ता सदा
भाई -बहना के लिए, खास सावन मास है !!!.
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श्री आशीष यादव
कभी सोचा बितती क्या, दिल पे उस बहना के|
जिसका पूरी दुनिया में, नहीं कोई भाई है||
कभी सुनी आह औ' कराह उस भाई की भी|
राखी के दिवस जिसकी, सूनी ये कलाई है||
नहीं है सहोदर कोई, मेरी भी बहना पर|
देखो ये बांह मेरी, रक्षा से भर आई है||
जब पूरी बसुधा को, अपना कुटुंब कहें|
गैर को बहन मानने में, क्या बुराई है||
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श्री अतेन्द्र कुमार सिंह "रवि"
गीतिका :-
१-
अबकी रक्षाबन्धन पर,फिर रंग दिखेंगे वही
आरती ले थाल में दो कर भी रहेंगे वही
कितना पावन पर्व है ये, संग-संग मनेंगे वही
राखी और कलाई के , रिश्ते बनेंगे वही
२-
इसी पल का हर बहना, राह है तकती रही
भाई है परदेश में जब, पतिया लिखती रही
राखी भर लिफाफे में, व्यथा यूँ कहती रही
कब आवोगे ओ भईया, सांस तो थमती रही
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श्री आलोक सीतापुरी
कुण्डलिया
१.
'राखी' है सुंदर सरस, सावन का त्यौहार,
भाई बहनों में भरे, सावन प्यार अपार,
सावन प्यार अपार, वीर की सजी कलाई,
बहनों को उपहार दे रहे प्यारे भाई,
कहें सुकवि आलोक, साल भर की लो राखी|
दीदी है ससुराल, चलो बँधवाएं राखी ||
२.
रक्षा बंधन है परम, पावन पर्व महान,
भ्राता भगिनी में बढ़े, श्रद्धा युत सम्मान,
श्रद्धा युत सम्मान, करे बहनों का भैया,
भौतिक युग में आज, बना है मित्र रुपैया,
कहें सुकवि आलोक, यही पौराणिक शिक्षा|
भाई देकर प्राण, करे बहनों की रक्षा||
हरिगीतिका:
१
सावन पुरातन प्रेम पुनि-पुनि, सावनी बौछार है,
रक्षा शपथ ले करके भाई, सर्वदा तैयार है|
यह सूत्र बंधन तो अपरिमित, नेह का भण्डार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है||
२
बहना समझना मत कभी यह बन्धु कुछ लाचार है,
मैंने दिया है नेग प्राणों का कहो स्वीकार है |
राखी दिलाती याद पावन, प्रेम मय संसार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है||
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श्री धर्मेन्द्र शर्मा
मन राखी को खोजता, जोहत कब से बाट
डाकघर का डाकिया, सोय पसारे खाट !
सूनी थाली हाथ की, सूना है घर बार
उड़ता है परफ्यूम सा, इस डोर का प्यार!
बेटी पूछे बाप से, क्यों इतने उदास,
राखी के इस पर्व पर, बहना नाही पास !
______________________________________
श्री प्रमोद वाजपेई
शास्त्रोक्त छन्दों में आकार में सबसे छोटा यह छन्द बरवै कहलाता है। दो चरणों के इस मात्रिक छन्द के प्रत्येक चरण में उन्नीस मात्राएं होती हैं व 12 - 7 पर यति होती है, एवं चरणान्त में पताका यानि गुरु-लघु होते हैं।
प्रस्तुत हैं पाँच बरवै
बरस बाद आया फिर,
ये त्यौहार।
पर बहनों पर रुके न,
अत्याचार।।
बहनें शुचिता का हैं,
पुण्य प्रतीक।
इनका पूजन अपना,
कर्म पुनीत।।
प्रण कर निर्मित करिए,
देश महान।
बहन बेटियों का ना,
हो अपमान।।
कोई अबला अब ना,
करे विलाप।।
हर मजलूम बहन के,
भाई आप।।
धी के बिन नहिं चलता,
जगत विधान।
करिए इसका रक्षण,
अरु सम्मान।।
__________________________________
डॉ ब्रिजेश कुमार त्रिपाठी
कच्चे धागों में निहित, भाई बहन का प्यार
राखी ने रक्खा सदा बहनों का ऐतबार
कर्मवती ने भेज कर राखी संग आदेश
वीर हुमायूँ को दिया एक गज़ब सन्देश
दौड़ा आया वह वहां जहाँ बहादुर शाह
रक्षा करलूं बहन की, मन में थी यह चाह
सर्व धर्म सम भाव का फैले जहाँ प्रकाश
भा-रत जैसे देश से पूरे जग को आस
चलो मनाये हम सभी रक्षा बंधन आज
कन्या-शिशु रक्षित जहाँ, वहीँ सशक्त समाज
(भा माने प्रकाश और रत यानि लगे हुए अर्थात प्रकाश की साधना में लगे हुए )
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नोट :- प्रस्तुत काव्य संकलन केवल मुख्य पोस्ट में प्रस्तुत की गई रचनाएँ है, इसके अतिरिक्त टिप्पणियों और टिप्पणियों के प्रतिउत्तर में लिखी गई रचनाएँ शामिल नहीं किया गया है, संपूर्ण आनंद प्राप्ति हेतु मूल पोस्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें |
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अनूठे आयोजन की समस्त रचनाओं को फिर से पढ़कर आनंद आ गया...
सादर आभार स्वीकारें आदरणीय बागी भाई जी...
आदरणीय मंच को रक्षाबंधन पर्व की सादर बधाईयाँ...
जय ओ बी ओ
इस आयोजन को पुनः पढ़कर बहुत शांति मिली ...........सादर धन्यवाद .............आप सभी को श्रावणी पर्व की शुभकामनाएं.......सादर
ओ बी ओ पर प्रेषित पिछले साल के रक्षाबंधन की रचनाओं को फिर से यहाँ देखकर/पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है. सभी सदस्यों को रक्षाबंधन की ढेरों शुभ कामनायें !
स्वागत है आदरेया शन्नो जी ! आप को भी श्रावणी पर्व की शुभकामनाएं.......सादर
धन्यबाद..अम्बरीश जी. आपको सपरिवार अनेकों शुभकामनायें.
कुछ दिनों से अधिक व्यस्तता के कारण ओ बी ओ पर आना नहीं हुआ आज सभी की रचनाएं पढ़ी सभी को एक स्थान पर देखकर पढने में भी आसानी हुई सभी की रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |
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