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आदरणीय साहित्य प्रेमियों

सादर वन्दे,

"ओबीओ लाईव महा उत्सव" के 23 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले 22 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 22 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की, जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक २३   

विषय - "मेरे सपनों का भारत"

आयोजन की अवधि- 7 सितम्बर शुक्रवार से 9 सितम्बर रविवार तक  

तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपनी कल्पना को हकीकत का रूप, बात बेशक छोटी हो लेकिन घाव गंभीर करने वाली हो तो बात का लुत्फ़ दोबाला हो जाए. महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: -

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- २३ में सदस्यगण  आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ  ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो बुधवार 7 सितम्बर लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

 

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"महा उत्सव"  के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

(सदस्य कार्यकारिणी)

ओपन बुक्स ऑनलाइन  

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Replies to This Discussion

आप ही से तो मिला है ये समझने का ज्ञान---एकता और भाई चारे ही में है भारत की शान !
सौ टके की बात
वाह वाह
सुन्दर
है
हि
ला





जी
भारत माता  
लिए चंडी रूप ,
आँखों में दहकते शोले ,
मुख में  ज्वालामुखी ,
अपनों से दुखी ,
क्या ऐसा ही था ,
मेरे सपनो का भारत ,
जिसे देखो लुट रहा है ,
हर कोई चाहे खंडित ,
हमको चाहने वाले
कहाँ गए ओ सब बिभूति ,
 क्या ऐसा ही था ,
मेरे सपनो का भारत ,
कोई ऐसा दीखता नहीं
जिसमे साहस का संचार हो ,
गंगा यमुना वाली सस्कृति ,
जो किसी का बिचार हो ,
रुंधे गले  का दर्द  ...
क्या ऐसा ही था ,
मेरे सपनो का भारत ,
पुरानी  दास्तान ,
मेरा  मन ,
इस  वक़्त  हैं मगन ,
भारत था सोने की चिड़ियाँ ,
हा ऐसा ही था ,
मेरे सपनो का भारत ,

भाई रविजी,

मेरे हिसाब से कवि दो प्रकार के होते हैं, एक वो जिन्हें कविता लिखने में महारत होती है और वे किसी भी विषय पर थोड़ा सा विचार बनाकर उसे कविता का रूप दे देते हैं। दूसरा वह कवि होता है जो अपने अंदर के ही विचारों को सरस और सरल प्रवाह के साथ कहता है..और वह कविता बन जाती है...उसके लिए शब्दों का चयन मायने नहीं रखता...उसको तो अपने विचार प्रेषित करने होते हैं।।

आपके विचारों से मैं भलीभाँति परिचित हूँ...इस रचना के माध्यम से आपने एक सच्चे देशभक्त, समाजसेवी के हृदय के उद्गार को व्यक्त किया है...सुंदरतम..रचना..बधाई।।

धन्यवाद पाण्डेय जी

सहयोग हेतु आभार आदरणीय प्रभाकर जी :-)

मै प्रभाकर जी के कथन से सहमत हूँ

रवि कुमार जी हार्दिक बधाई

बहुत सुन्दर बातें कहीं हैं आपने भाई रवि जी. भारत माता का यूं क्रोधित होना बेवजह नहीं है, वह दर्द आपकी कविता से झलक रहा है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

धन्यवाद सर जी

वाह रवि जी वाह ........बहुत खूबसूरत व भावात्मक अभिव्यक्ति दी है आपने ! बहुत बहुत बधाई मित्र !

धन्यवाद सर जी

धन्यवाद सर जी

वाह वाह, इस रचना को देखने के बाद लगता है कि जब रचना पर समय दी जाय तो रचना में कैसे निखार आ जाती है, भाव बेहतरीन, बहुत बहुत बधाई आदरणीय रवि जी | उम्मीद करते है आगे भी आप इसी प्रकार रचनाओं पर समय देने के बाद प्रस्तुत करते रहेंगे |

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