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देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !

अकेल शेरनी
देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !
दूर अकेल रहेगी कैसे , आँखों की पुतली हमारी !
माँ बाप को घर में छोड़कर , सपने ले चली दुलारी !
यों मिलती रही कामयाबी , खिलती जाती फुलवारी !
जब कामयाब हो कर  निकली , बैरी राहों में आये !
देख कर अकेल शेरनी को , राहों में जाल बिछाए !
तडपती रही शिकार बनकर , बेबस पर  रहम न आये !
वर्मा  गयी वो इस दुनिया से , कैसे आंसू ना  आये !
श्याम नारायण वर्मा

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on January 5, 2013 at 8:45am

सामयिक घटना को सुंदरता से शब्दों में गुंथा है. वाह!

Comment by SUMAN MISHRA on January 4, 2013 at 5:14pm

एक पिता के सच्चे शब्द,,,,बहुत सुंदर

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