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आज सवेरे
था मौसम का मिजाज़
भी कुछ खुशनुमा-सा,
थी हल्की सी धूप
और ज़रा सा एहसास भी ठंड का,
थी दफ़्तर की छुट्टी
तो आज मन ने लगाई अपनी अर्ज़ी
इस मौसम का लुत्फ़ उठाएँ
समंदर किनारे सैर कर आएँ I

कंधे पर एक दरी उठाए
हाथ में लिए एक किताब
पहुँचा किनारे पर समंदर के,
तो देखा मैंने,
था आज समंदर
कुछ उदास,
खुद में खोया
चुपचाप
हो जैसे खुद से नाराज़ I

क़तरा क़तरा जुटाकर हिम्मत
थामे लहरों का हाथ
रखा उसके सामने ये सवाल,
कि क्या है तेरी परेशानी ?
क्यूँ हो यूँ बेहाल ?
कहा सागर ने,
यूँ तो मैं हूँ अथाह
अनगिनत लहरें खुद मे समाए
जो है इतनी शक्तिशाली
कर सकती हैं विध्वंस,
किंतु,
ना है मेरे जीवन में इतनी शीतलता
कि भरकर एक गिलास
बुझा सकूँ
दो सूखे होठों की प्यास,
है बना मेरा व्यवहार
इतना कठोर
कि मिटा ना पौउँ
किसी जीवन का एक छोटा सा दाग I

समंदर की बातों में डूबा,
उसकी परेशानियों मे भीगा,
वापस लौट ही रहा था
कि पड़ी मेरी नज़र
एक छोटे से सीप पर,
था वो फुदकता
उछलता कूदता
बड़ा ही खुश,
हो ज़रा चकित
फिर एक बार ये सवाल उठाया
क्या है तेरी खुशी का राज़ ?

सीप मुस्कुराया,
चेहरे पर उसके गर्व नज़र आया
वो बोला,
यूँ तो हूँ मैं बहुत ही छोटा
और ना है मेरा कोई मोल,
किंतु है गुण मुझमें निराला
बना सकता हूँ मोती अनमोल I

इन दोनों की बातों ने
दिया झकझोर,
और सीख ये लेकर बढ़ा घर की ओर,
कि बढ़ना हो तो गुणों में बढ़ो,
आकार से नहीं,
दूसरों को आगे बढ़ाने में भी
है एक अदभुत खुशी I
आगे आओ, हाथ बढाओ I

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Comment

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Comment by Veerendra Jain on November 21, 2010 at 6:31pm
Ganesh ji... Bahut bahut aabhar..aap itni bariki se avlokan kar comments dete hain ki mann prasann ho jata hai...aage bhi aise hi utsahvardhan karte rahiyega..please...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 21, 2010 at 10:27am
ना है मेरे जीवन में इतनी शीतलता
कि भरकर एक गिलास
बुझा सकूँ
दो सूखे होठों की प्यास,
बेहद सटीक और उम्द्दा, साथ ही समुन्द्र के साथ सीप की भी बात करना ..........
यूँ तो हूँ मैं बहुत ही छोटा
और ना है मेरा कोई मोल,
किंतु है गुण मुझमें निराला
बना सकता हूँ मोती अनमोल,

बहुत ही प्रेरणा दायक लगा, बेहतरीन बिचारों के ताल मेल के साथ सुंदर अभिव्यक्ति |बधाई इस सुंदर काव्य कथा हेतु |

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