For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल्ली से वृन्दावन की दूरी लगभग 139 किलोमीटर है, इसलिए परिवार संग सुविधा से जाने के लिए हमने एक ट्रैवलर बुक की ,जो ठीक 6.30 बजे सुबह पहुँच गई , 7 बजे हम इस में सवार होकर कुछ सदस्यों को पटेलनगर से लेकर  निकल पड़े इस धार्मिक सफ़र पर | सुंदर श्याम के भजनों के संग ,सुहानी ठंडी ठंडी पवन का आनंद लेते हुए हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगे|

 


                   कुछ नाश्ते की इच्छा हुई तो गुलशन के ढाबे की याद आई ,इसलिए हमने मुरथल में रुक कर पेट पूजा की ,कुछ देर सुस्ताने के बाद हम पुनः अपने गंतव्य कि ओर चल दिए , मधुर संगीत ने जैसे सफ़र आसान कर दिया ,हँसते गाते हम 1.30 बजे के लगभग वृन्दावन पहुँच गए |

   'कृष्ण सुदामा धाम' वृन्दावन  में पहले से ही कमरे बुक थे ,इसलिए जाकर कुछ स्नैक्स लिए और  सब कुछ देर के लिए  आराम करने लगे ,कृष्ण सुदामा धाम की बालकोनी से कृपालु जी महाराज के 'प्रेम मंदिर' का मनमोहक दृश्य देखा |

 

        आओ दोस्तो ,श्री कृष्ण के मंदिरों  की शुरुआत एक प्राचीन मंदिर से करते हैं श्री बांके बिहारी मन्दिर ,वृन्दावन |वृन्दावन उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले की धार्मिक नगरी है जिसमें यह मंदिर वृन्दावन धाम के सुंदर एवं प्राचीन इलाके में स्थित है |इसका निर्माण स्वामी हरिदास ने 1864 में करवाया था |

श्री बांके बिहारी मन्दिर 

                       

                   4 बजे हम श्री बांके बिहारी जी मंदिर के दर्शन के लिए दोबारा से ट्रैवलर में बैठ कर निकल पड़े ,ट्रैवलर को सड़क किनारे रोक कर,हम पैदल ही पुरातनता की  याद दिलाती संकरी गलिओं से होते हुए मंदिर की तरफ बढने लगे ,जो कृष्ण गीतों से फाल्गुनी रंगों में रंगी अपनी तरफ आकर्षित कर रहीं थी|

 

        जैसे जैसे मंदिर के प्रांगन की तरफ बढने लगे ,एक डर सा हवा में तैरने लगा ,बहुत भीड़ थी श्रदालु अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे | तभी एक भक्त बोला आगे बंदर हैं किसी का चश्मा ले गए हैं संभल कर चलना ,उन सबसे बचते बचाते अंदर पहुंचे तो लगा किसी पुरातन विभाग की कोई इमारत में आ गए हैं ,बहुत सारे मंदिर के रक्षक घुमा फिरा कर बांके बिहारी के दर्शनों के लिए सब को आगे बढ़ा रहे थे ,मंदिर में यहाँ बांके बिहारी जी की प्रतिमा स्थापित थी बिल्कुल अँधेरा था,जैसा कि बताया जाता है ,बांके बिहारी जी से आँखें मिल जाएँ तो वो आपके साथ ही चल पड़ते हैं ,इसीलिए मंदिर में अंधेरा रहता है और पर्दा बार बार हटाया जाता है|

श्रीबाँकेबिहारी जी के दर्शन सम्बन्ध में प्रचलित कहानियां :---

       एक बार एक भक्तिमती ने अपने पति को बहुत अनुनय–विनय के पश्चात वृन्दावन जाने के लिए राजी किया। इसलिए वो श्रीबिहारी जी के निकट रोते–रोते प्रार्थना करने लगी कि– 'हे प्रभु में घर जा रही हुँ, किन्तु तुम चिरकाल मेरे ही पास निवास करना उस समय श्रीबाँकेविहारी जी एक गोप बालक का रूप धारण कर घोड़ागाड़ी के पीछे आकर उनको साथ लेकर ले जाने के लिये भक्तिमति से प्रार्थना करने लगे। इधर पुजारी ने मंदिर में ठाकुर जी को न देखकर उन्होंने भक्तिमति के प्रेमयुक्त घटना को जान लिया एवं तत्काल वे घोड़ा गाड़ी के पीछे दौड़े।

          एक समय उनके दर्शन के लिए एक भक्त महानुभाव उपस्थित हुए। वे बहुत देर तक एक-टक से इन्हें निहारते रहे। रसिक बाँकेबिहारी जी उन पर रीझ गये और उनके साथ ही उनके गाँव में चले गये। बाद में बिहारी जी के गोस्वामियों को पता लगने पर उनका पीछा किया और बहुत अनुनय-विनय कर ठाकुरजी को लौटा-कर श्रीमन्दिर में पधराया। 

ऐसे ही अनेकों कारण से श्रीबाँकेबिहारी जी के झलक दर्शन अर्थात झाँकी दर्शन होते हैं।

      बहुत अधिक भीड़ होने के कारण मैं आगे जाकर मंदिर में झांक भी नहीं सकी ,कुछ लोग प्रभु के बन्दों को रिश्वत देकर प्रभु दर्शन करते पाए गए | मंदिर में फोटो लेने कि अनुमति नहीं थी ,खराब प्रबंधन और बंदरों के प्रकोप के कारण हमने मोबाइल ना निकालना ही सही समझा|

     आगे इसकी जानकारी के बारे में बताती हूँ और कुछ तस्वीरें भी आप तक पहुंचाती हूँ , जो मुझे गूगल बाबा से मिली ...

 

    श्रीहरिदास स्वामी विषय उदासीन वैष्णव थे। उनके भजन–कीर्तन से प्रसन्न हो निधिवन से श्री बाँकेबिहारीजी प्रकट हुये थे। स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1536 में भाद्रपद महिने के शुक्ल पक्ष में अष्टमी के दिन वृन्दावन के निकट राजापुर नामक गाँव में हूआ था। इनके आराध्यदेव श्याम–सलोनी सूरत बाले श्रीबाँकेबिहारी जी थे। इनके पिता का नाम गंगाधर एवं माता का नाम श्रीमती चित्रा देवी था। हरिदास जी, स्वामी आशुधीर देव जी के शिष्य थे। इन्हें देखते ही आशुधीर देवजी जान गये थे कि ये सखी ललिताजी के अवतार हैं

        संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदासजी को बिहारीजी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा को गोद से बाहर निकाला गया। यही सुन्दर मूर्ति जग में श्रीबाँकेबिहारी जी के नाम से विख्यात हुई यह मूर्ति मार्गशीर्ष, शुक्ला के पंचमी तिथि को निकाला गया था। अतः प्राकट्य तिथि को हम विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मनाते है।

श्री बाँकेबिहारी जी निधिवन में ही बहुत समय तक स्वामी जी द्वारा सेवित होते रहे थे। फिर जब मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया, तब उनको वहाँ लाकर स्थापित कर दिया गया। सनाढय वंश परम्परागत श्रीकृष्ण यति जी, बिहारी जी के भोग एवं अन्य सेवा व्यवस्था सम्भाले रहे। फिर इन्होंने संवत 1975 में हरगुलाल सेठ जी को श्रीबिहारी जी की सेवा व्यवस्था सम्भालने हेतु नियुक्त किया। तब इस सेठ ने वेरी, कोलकत्ता, रोहतक, इत्यादि स्थानों पर श्रीबाँकेबिहारी ट्रस्टों की स्थापना की। इसके अलावा अन्य भक्तों का सहयोग भी इसमें काफी सहायता प्रदान कर रहा है।

 

                   स्वामी हरिदास जी संगीत के प्रसिद्ध गायक एवं तानसेन के गुरु थे।एक दिन प्रातःकाल स्वामी जी देखने लगे कि उनके बिस्तर पर कोई रजाई ओढ़कर सो रहा हैं। यह देखकर स्वामी जी बोले– अरे मेरे बिस्तर पर कौन सो रहा हैं। वहाँ श्रीबिहारी जी स्वयं सो रहे थे। शब्द सुनते ही बिहारी जी निकल भागे।किन्तु वे अपने चुड़ा एवं वंशी, को बिस्तर पर रखकर चले गये।

झाँकी का अर्थ:---

                     श्रीबिहारी जी मन्दिर के सामने के दरवाजे पर एक पर्दा लगा रहता है और वो पर्दा एक दो मिनट के अंतराल पर बन्द एवं खोला जाता हैं, इसलिए बिहारी जी के झांकी दर्शन की व्यवस्था की गई ताकि कोई उनसे नजर ना लड़ा सके | 

                    यहाँ एक विलक्षण बात यह है कि यहाँ मंगल आरती नहीं होती। यहाँ के गोसाईयों का कहना हे कि ठाकुरजी नित्य-रात्रि में रास में थककर भोर में शयन करते हैं। उस समय इन्हें जगाना उचित नहीं है।  श्रीबाँकेबिहारी जी मन्दिर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन  श्रीबाँकेबिहारी जी वंशीधारण करते हैं। केवल श्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं एवं जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला–आरती होती हैं । जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं । और चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है |

    मेरी सलाह है की आपको इस मंदिर के बारे में पूरी जानकारी नेट से मिल जाएगी इसलिए वहां जाकर अपने प्रभु विश्वास को ठेस न पहुंचाएं |

एक सुझाव :---

            वहां के प्रशासन से एवं प्रबंधकों से हमारा अनुरोध है कि वहां की पुरातनता में दखल न करते हुए उसके प्रांगन का भव्य निर्माण किया जाए ताकि विश्व भर से आये श्रद्धालुओं को हिन्दू धर्म की अच्छी छवि देखने का मौका मिले ,दान राशि और बढ़ जाने से निश्चय ही वो आसपास की जमीन खरीद कर इस भव्य निर्माण को कर सकते हैं |

 वृन्दावन यात्रा भाग 2.क्रमशः ....

Views: 2794

Replies to This Discussion

बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत की गई व्रंदावन यात्रा के पन्नों मे मै तो खो सी गई । बहुत बढ़िया सरिता जी हार्दिक आभार ।

आदरणीय annpurana जी आपका स्वागत है आपने इसे पढ़ा और मेरी post को सार्थक किया 

हार्दिक आभार 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service